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फ़िनलैंड हवा से प्रोटीन कैसे बना रहा?

<figure> <img alt="Solein powder" src="https://c.files.bbci.co.uk/4211/production/_110431961_solein-powder.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Mikael Kuitunen/ Solar Foods</footer> </figure><p>फ़िनलैंड के वैज्ञानिक हवा से प्रोटीन बना रहे हैं. उनका दावा है कि इस दशक में ये सोयाबीन के दामों को टक्कर देगा.</p><p>प्रोटीन का उत्पादन मिट्टी के बैक्टीरिया से होता है जो बिजली के ज़रिए पानी से अलग हुए हाइड्रोजन से बनता है.</p><p>शोधकर्ताओं […]

<figure> <img alt="Solein powder" src="https://c.files.bbci.co.uk/4211/production/_110431961_solein-powder.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Mikael Kuitunen/ Solar Foods</footer> </figure><p>फ़िनलैंड के वैज्ञानिक हवा से प्रोटीन बना रहे हैं. उनका दावा है कि इस दशक में ये सोयाबीन के दामों को टक्कर देगा.</p><p>प्रोटीन का उत्पादन मिट्टी के बैक्टीरिया से होता है जो बिजली के ज़रिए पानी से अलग हुए हाइड्रोजन से बनता है.</p><p>शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर बिजली सौर या हवा की ऊर्जा से बनती है तो ये खाना बनाने में ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन शून्य के बराबर होगा. </p><p>अगर उनका सपना सच होता है तो खेती से जुड़ी कई मुश्किलें सुलझाने में दुनिया को काफ़ी मदद मिल सकती है.</p><p>जब मैं बीते साल हेल्सिंकी स्थित सोलर फूड के प्लांट गया तो शोधकर्ता इसके लिए फंड जुटा रहे थे. </p><p>अब उनका कहना है कि उन्होंने क़रीब 5.5 मिलियन यूरो का निवेश पाने की राह बना ली है. उनका अनुमान है कि बिजली की क़ीमत को देखते हुए इस दशक के अंत तक या साल 2025 तक इसकी लागत भी सोया के उत्पादन में होने वाले खर्च के आसपास होगी. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-50972814?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पिछले एक दशक में कहां से कहां पहुंची तकनीक </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-50332007?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भारत की यह सस्ती तकनीक पहाड़ी इलाक़ों में बचाएगी कई जानें</a></li> </ul><figure> <img alt="A soya farmer handles soybeans" src="https://c.files.bbci.co.uk/176A9/production/_110431959_058607918-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><h1>स्वाद की कमी?</h1><p>मैंने इस महंगे प्रोटीन आटे जिसे सॉलेन भी कहा जाता है, के अनाज को चखा लेकिन उसमें कोई स्वाद नहीं था. यही वैज्ञानिकों की योजना है.</p><p>वो हर तरह के खाने को स्वाद के बिना रखना चाहते हैं. </p><p>आइसक्रीम, बिस्कुट, पास्ता, नूडल्स, सॉस या ब्रेड को रीइनफोर्स करके पाम ऑयल जैसा प्रोडक्ट बनाया जा सकता है. खोजकर्ताओं का कहना है कि इसका इस्तेमाल बेहतरीन मीट या मछली तैयार करने के लिए भी किया जा सकता है. </p><p>इसका इस्तेमाल करके वर्षावन इलाकों में जानवरों को सोया की फसलें तबाह करने से भी रोका जा सकता है. </p><p>अगर चीज़ें प्लान के मुताबिक रहीं, जो कि लग रही हैं, दुनिया में प्रोटीन उत्पादन की मांग और आपूर्ति को अनुमानित वक़्त से सालों पहले पूरा किया जा सकता है. </p><p>लेकिन, ये उन तमाम सिंथेसाइज़्ड खानों के प्रोजेक्ट में से एक है जो भविष्य में बतौर विकल्प उपलब्ध हो सकते हैं.</p><p>फर्म के सीईओ पासी वैनिक्का ने यूके की क्रैनफ़ील्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है और फिनलैंड की लप्पीनरांटा यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-50936332?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">उत्तर प्रदेश पुलिस के ‘त्रिनेत्र’ से अपराधी गिरफ़्त में आएंगे?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-fut-50972179?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">आप किसे वोट डालें, तय करेगा रोबोट!</a></li> </ul><figure> <img alt="Pasi Vainikka" src="https://c.files.bbci.co.uk/2334/production/_110421090_mediaitem110421089.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>उन्होंने बताया कि ये आइडिया मूल रूप से स्पेस इंडस्ट्री के लिए साल 1960 के दशक में आया था.</p><p>उन्होंने माना कि उनके प्लांट का काम कुछ धीमा चल रहा है लेकिन वो कहते हैं कि इसे 2022 तक तैयार कर लिया जाएगा. निवेश का पूरा निर्णय साल 2023 में आएगा और सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो पहली फैक्ट्री साल 2025 में शुरू हो जाएगी.</p><p>वो कहते हैं, ”अब तक हम सब बहुत अच्छा कर रहे हैं. ”</p><p>एक बार हम रिएक्टरों को जोड़कर पहले एक जैसे कारखाने को बड़े पैमाने पर बनाते हैं. हवा और सौर ऊर्जा जैसी अन्य स्वच्छ तकनीक में बड़े सुधारों को भी ध्यान में रखते हैं. हमें लगता है कि हम 2025 तक उत्पादन के मामले में सोया को टक्कर दे सकते हैं.</p><p>सॉलेन बनाने के लिए पानी से इलेक्ट्रोलिसिस के ज़रिए हाइड्रोजन को अलग किया जाता है. हाइड्रोजन, हवा से ली गई कार्बन डाइऑक्साइड और खनिज पदार्थ बैक्टीरिया को खिलाए जाते हैं, जिससे प्रोटीन बनता है.</p><p>वो कहते हैं कि सबसे अहम फैक्टर है बिजली की कीमत. फर्म को उम्मीद है कि जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोत मिलेंगे, इसकी कीमत कम होती जाएगी. </p><p>इस तकनीक की प्रगति देखकर पर्यावरण कैंपेनर जॉर्ज मॉनबिओ ने भी सराहना की है. जॉर्ज धरती पर भविष्य को लेकर चिंता जताते हैं लेकिन वो यह भी कहते हैं कि सौर ऊर्जा की मदद से बनने वाले खाने से उन्हें उम्मीद है. </p><figure> <img alt="Cattle grazing in a field" src="https://c.files.bbci.co.uk/12889/production/_110431957_040056759-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>भविष्य के लिए उम्मीद?</h1><p>उन्होंने कहा, ”खाद्य उत्पादन दुनिया को भीषण नुकसान पहुंचा रहा है. मछली पकड़ना और खेती बाड़ी मुख्य तौर पर जैव विविधता और वन्य जीवों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण हैं. खेती बाड़ी जलवायु परिवर्तन भी बड़ी वजह है.”</p><p>”लेकिन नाउम्मीदी के इस दौर में खेतीबाड़ी रहित खाद्य पदार्थ वो संभावनाएं पैदा कर रहे हैं जिनसे ना सिर्फ लोगों को बल्कि धरती को भी बचाया जा सकता है. प्लांट बेस्ड फूड का रुख करके हम प्रजातियों और जगहों को भी बचा सकते हैं.”</p><p>थिंक टैंक रीथिंकएक्स ने एक शोध में यह भविष्यवाणी की है कि साल 2035 तक इस तरह से बनाया गया प्रोटीन जानवरों से मिलने वाले प्रोटीन के मुक़ाबले 10 गुना सस्ता होगा. </p><p>यह भी अनुमान है कि इसकी वजह से पशुधन उद्योग पूरी तरह बंद होने के भी आसार हैं. हालांकि, आलोचकों की शिकायत होगी कि अपने उत्पाद को ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल में लाने की धुन में मांस उत्पादकों की क्षमता का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा. </p><p>कृषि और खाद्य क्षेत्र से जुड़े जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए नए समाधान निकालने के लिए शीर्ष वैज्ञानिक अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थानों का एक संघ बनाया गया है.</p><p>पिछले साल पेश किए गए एक पेपर में निष्कर्ष निकाला गया था कि भूमि उपयोग के मामले में सोया की तुलना में माइक्रोबियल प्रोटीन बनना कई गुना अधिक बेहतर है और इसके लिए पानी का इस्तेमाल भी बेहद कम होता है.</p><p>हालांकि, इसके अलावा एक वजह सांस्कृतिक भी है जैसे बहुत से लोग लैंब चॉप्स खाना पसंद करते हैं या जो खाना इसकी तरह दिखता हो. </p><p>क्रैनफील्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर लियोन टेरी ने बीबीसी न्यूज़ को बताया कि इस तरह के खाद्य पदार्थों में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ रही है.</p><p>उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में काम में तेज़ी आई है और सिंथेटिक खाद्य पदार्थों में निवेश बढ़ा है. लेकिन, वो यह सवाल भी उठाते हैं कि क्या ऐसे उत्पाद को लोग इस्तेमाल करना चाहेंगे?</p><p><strong>यह भी पढ़ें</strong><strong>:</strong></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-50972814?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पिछले एक दशक में कहां से कहां पहुंची तकनीक </a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-50796761?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या किचन गार्डन जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला कर सकता है?</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/science-50503061?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">खाने की वो चीज़ जो साइनाइड से भी ज़्यादा ज़हरीली है</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के 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