डॉ कायनात काजी
सोलो ट्रेवलर
आप स्पेन का फेमस टोमाटीना फेस्टिवल के बारे में तो जानते ही होंगे, जिसमें पूरा शहर टमाटर फसल का उत्सव मनाता है. इस फेस्टिवल की सुंदरता देखकर कितने ही लोगों का मन किया होगा कि क्यों ना हम भी ऐसे किसी फेस्टिवल का हिस्सा बनें और अपने हॉलीडे को यादगार बना लें. अब मायूस होने की जरूरत नहीं है. हमारे देश में भी इसकी परिपाटी चल निकली है. मैं बात कर रही हूं हाल ही में हुए कॉर्न फेस्टिवल की, जिसकी धूम चारों तरफ है.
यह गुजरे जमाने की बात हो गयी है, जब मक्के की रोटी और सरसों का साग दोनों केवल पंजाब की पहचान हुआ करते थे. आज मक्का से 50 से भी ज्यादा किस्म के व्यंजन बनाये जा सकते हैं. अगर इस बात का विश्वास ना हो, तो आप कॉर्न फेस्टिवल में हिस्सा जरूर लीजिये. यहां पर आपको कॉर्न से बने एक से एक अनोखे व्यंजन देखने को मिलेंगे. कॉर्न फेस्टिवल सतपुड़ा की सुंदर वादियों में बसा मध्य प्रदेश का तीसरा सबसे बड़ा शहर छिंदवाड़ा में आयोजित होता है. छिंदवाड़ा मक्का की खेती में अग्रणी है. छिंदवाड़ा में दो हजार गांव हैं, जहां अधिकतर किसान और आदिवासी हैं. खेती पर निर्भर इन लोगों के लिए खेती करना साधना करने जैसा है. यही कारण है कि यहां का मक्का बहुत ही स्वाद वाला होता है. छिंदवाड़ा पूरे देश और पड़ोसी देशों को कॉर्न यानी मक्का एक्सपोर्ट करता है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मक्का के महत्व को समझा और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का बीड़ा उठाया. इसी संदर्भ में छिंदवाड़ा में पिछले वर्ष से कॉर्न फेस्टिवल का आयोजन शुरू हुआ. इस साल यह आयोजन 13-14 दिसंबर को संपन्न हुआ है.
ढाई लाख पेंटिंग का कीर्तिमान
सही मायने में यह एक लोकोत्सव है. यह उत्सव है किसानों का, आदिवासियों का, छिंदवाड़ा के हर उस नागरिक का, जिसे अपनी धरती से प्रेम है. इस उत्सव को सफल बनाने के लिए पूरा जिला अपनी पूरी ताकत से जुड़ा हुआ है. यहां बच्चों से लेकर युवाओं और महिलाओं के बीच एक अनोखी होड़ लगी हुई है. यहां हर इंसान इस फेस्टिवल को सफल बनाने में जुटा हुआ है. इस की शुरुआत यहां के ढाई लाख स्कूली बच्चों ने कॉर्न की पेंटिंग बनाकर की. यह भी एक बड़ा कीर्तिमान है.
किसान भी और विज्ञान भी
कॉर्न फेस्टिवल की आभा देखने लायक थी. एक बड़ा-सा सभागार किसानों से खचाखच भरा हुआ था, तो दूसरी ओर मक्का से जुड़े उत्पादों और तकनीकों की प्रदर्शनी लगायी गयी थी. यहां किसान और जनता तो थे ही, लेकिन यहां पर वैज्ञानिकों को भी बुलाया गया था. देश-विदेश से आये ये वैज्ञानिक किसानों को मक्का की उन्नत खेती के गुर सिखाने के लिए जमा हुए थे. इन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पूरी दुनिया में खाद्यान्न की श्रेणी में गेहूं-चावल के बाद मक्का विश्व में तीसरे स्थान पर आता है. इसलिए जरूरत है कि हम मक्का की और उन्नत किस्म को विकसित करें और उन्हें बाजार में उपलब्ध कराएं.
तकनीकी पक्ष पर बल
इस फेस्टिवल में तकनीकी पक्ष पर विशेष बल दिया जाता है. इसके लिए ग्राउंड के एक और कृषि में उपयोग होनेवाले आधुनिक उपकरणों की प्रदर्शनी भी लगायी जाती है. इस बार फेस्टिवल में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने एक एप लांच किया, जो किसानों को हिंदी भाषा में कृषि से जुड़ी जानकारी, बाजार के साथ लिंकेज और तकनीकी सहायता देने में मददगार साबित होगा. गौरतलब है कि इस एप को बनानेवाले युवा का संबंध छिंदवाड़ा से ही है. इस एप के माध्यम से किसान कृषि में लगनेवाले बड़े कृषि उपकरणों को किराये पर भी ले सकेंगे.
मक्के के अंतरंगी स्वाद
ग्राउंड के एक तरफ फूड कोर्ट है, जहां पर 50 से ऊपर व्यंजनों की स्टॉल लगाये जाते हैं. स्टॉल लगानेवाला और कोई नहीं है, बल्कि छिंदवाड़ा की महिलाएं ही हैं. एक तरफ वहां की शहरी महिलाएं कॉर्न का फ्यूजन विशेष बनाकर लोगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्वाद से परिचय कराती हैं, वहीं दूसरी ओर पातालकोट की रसोई में यहां के आदिवासी समाज की महिलाएं मक्का के आदिम स्वाद को परोसती हैं. पातालकोट की रसोई में भोजन पूरी तरह ऑर्गेनिक तरीकों से परोसा जाता है. हरे-हरे ढाक के पत्तों की बनी प्लेट और दोनों में परोसा जानेवाला यह भोजन आपको उंगलिया चाटने पर मजबूर कर देगा. यहां पर परोसे जानेवाली हर डिश में मक्का का होना लाजमी है, फिर चाहे वह पूरी हो या रोटी हो, हलवा हो या सब्जी हो, बड़ी हो या फिर मंगोड़ी हो. मैं यकीन के साथ कहूंगी कि यहां से पहले कहीं पर भी आप ने मक्का के इतने विभिन्न स्वाद नहीं चखे होंगे.