23.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अयोध्या फ़ैसले को स्वीकार क्यों करना पड़ा कांग्रेस को?: नज़रिया

<figure> <img alt="राहुल गांधी, सोनिया गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/B320/production/_109665854_gettyimages-1173101110.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>यह शायद एक असाधारण संयोग है कि ‘अयोध्या विवाद’ जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी पार्टी है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस. जनवरी 1885 में फ़ैज़ाबाद कोर्ट में पहली बार ‘जन्म स्थान’ को लेकर क़ानूनी मुक़दमा दायर किया गया और उसी वर्ष दिसंबर में भारतीय […]

<figure> <img alt="राहुल गांधी, सोनिया गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/B320/production/_109665854_gettyimages-1173101110.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>यह शायद एक असाधारण संयोग है कि ‘अयोध्या विवाद’ जितना पुराना है, उतनी ही पुरानी पार्टी है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस. जनवरी 1885 में फ़ैज़ाबाद कोर्ट में पहली बार ‘जन्म स्थान’ को लेकर क़ानूनी मुक़दमा दायर किया गया और उसी वर्ष दिसंबर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय हुआ.</p><p>आज़ादी के बाद, कांग्रेस का नज़रिया पार्टी के भीतर दो तरह के झुकावों से स्पष्ट होता है.</p><p>पहला ये कि कांग्रेस में रूढ़िवादी/परंपरावादी लोग थे. भले ही इनकी संख्या बड़ी थी, फिर भी उनका रूढ़िवाद न तो सांप्रदायिक था और न ही मुसलमानों के प्रति किसी भी दुर्भावना का सूचक.</p><p>इन परंपरावादी कांग्रेसियों का विचार था कि मुसलमानों का विरोध किए बिना भी हिंदू भावनाओं का सम्मान किया जाना संभव है. और गोविंद बल्लभ पंत के नेतृत्व में इन नेताओं ने वास्तव में अपनी इसी सोच का रास्ता अख़्तियार किया.</p><figure> <img alt="अयोध्या" src="https://c.files.bbci.co.uk/755E/production/_109664003_84cc6643-30ff-4d19-8536-8b02bb17e9e4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>सरदार पटेल के प्रतिनिधित्व वाले एक अन्य धड़े का स्पष्ट तौर पर यह मानना था कि आज़ाद भारत एक ऐसा आधुनिक राष्ट्र हो, जहां अल्पसंख्यक या बहुसंख्यकों की भावनाओं का विचार किए बगैर क़ानून का पालन किया जाना चाहिए.</p><p>लिहाज़ा, जब 22-23 दिसंबर 1949 को चुपके से रामलला की मूर्तियां फ़ैज़ाबाद की बाबरी मस्जिद में स्थापित की गईं, पंत के नेतृत्व वाली यूनाइटेड प्रॉविन्स सरकार ने हिंदू समुदाय के लिए उपद्रवी (साज़िशकर्ता) शब्दावली का उपयोग किया.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46034951?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सरदार पटेल के ख़ानदान के बारे में कितना जानते हैं आप?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50404468?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">’सिर्फ़ आस्था के आधार पर ही कोर्ट ने नहीं दिया अयोध्या फ़ैसला’: रामलला के वकील</a></li> </ul><figure> <img alt="सरदार पटेल" src="https://c.files.bbci.co.uk/100BE/production/_109662756_650f4f01-1530-41f5-be7d-393ee6c7c2ea.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>इस शब्द का उपयोग सरदार पटेल के गले से नहीं उतरा और उन्होंने 9 जनवरी 1950 को पंत को चिट्ठी लिखी.</p><p>इसमें सरदार पटेल ने राज्य में शासन के पहले सिद्धांत को दोहराते हुए लिखा, &quot;बलपूर्वक इस तरह के विवाद का निपटारा करने का सवाल ही नहीं उठता. ऐसे मामले में क़ानून-व्यवस्था की ताक़तों को किसी भी कीमत पर शांति बनाए रखनी होगी. लिहाज़ा शांतिपूर्ण और ठोस तरीकों का पालन किया जाना चाहिए. हमले की स्थिति में दबाव में आकर की गई एकतरफ़ा कार्रवाई का समर्थन नहीं किया जा सकेगा.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50393302?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पूरी ज़मीन हिंदू पक्ष को देना ग़लतः लिब्रहान आयोग के वकील</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50414522?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अयोध्या फ़ैसले से बाबरी मस्जिद तोड़ने वालों की मांग पूरी: जस्टिस गांगुली </a></li> </ul><figure> <img alt="आज़ादी" src="https://c.files.bbci.co.uk/14EDE/production/_109662758_466b7b38-a3f5-43ca-b040-76200ce363e2.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>अयोध्याः आज़ादी के कुछ वर्षों बाद तक</h3><p>हालांकि, आज़ादी के उन शुरुआती दिनों में राष्ट्रीय नेताओं के पास ज़ाहिर तौर पर इस परिचित विवाद से कहीं अधिक महत्वपूर्ण मुद्दे थे. तब राष्ट्रीय स्तर के बड़े नेता जहां संविधान को अंतिम रूप देने में व्यस्त थे वहीं इस बात को लेकर आश्वस्त भी थे कि इस मुद्दे को आने वाले दशकों में धर्मनिरपेक्ष तरीकों से निबटा लिया जाएगा.</p><p>जैसा कि उम्मीद की जा सकती थी, अयोध्या मामले में क़ानूनी प्रक्रिया शुरू हुई और एक तरह से यथास्थिति को बरकरार रखने का आदेश दिया गया और कोर्ट के आदेश से विवादित स्थल पर ताला लगा दिया गया.</p><p>नेहरू का भारत अपने अस्तित्व में आ रहा था. सिद्धांत, सर्वमान्य विचार, समाजवाद, अनेकता, धर्मनिरपेक्षता ने एक तरह से बौद्धिक अजेय शक्ति प्राप्त कर ली थी.</p><figure> <img alt="विवादित स्थल के नज़दीक खुदाई" src="https://c.files.bbci.co.uk/E2BE/production/_109664085_f0e6c9d8-2b00-41b2-8436-0a846155c321.jpg" height="549" width="976" /> <footer>KK MUHAMMED</footer> <figcaption>विवादित स्थल के नज़दीक खुदाई</figcaption> </figure><p>हिंदू महासभा और नवगठित भारतीय जनसंघ जैसी ‘धार्मिक/सांप्रदायिक’ ताक़तें खुद को हिंदू बहुमत की स्पष्ट आवाज़ के तौर पर स्थापित नहीं कर सकीं. इन संगठनों ने 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में बेहद ख़राब प्रदर्शन किया था.</p><p>वहीं दूसरी तरफ तब की राजनीति और चुनावों में सफलता पर अपनी अच्छी पकड़ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लगातार बनाए रखी. ऐसा लगता था कि कांग्रेस संचालकों को बहुसंख्यक समुदाय की पार्टी बनने और साथ ही मुसलमानों की भावनाओं और उनके नेताओं को पार्टी में समायोजित करने में महारत हासिल थी.</p><p>जब तक कांग्रेस मज़बूत, प्रभावी और एकजुट थी, तब तक देश में सांप्रदायिक और धार्मिक ताक़तें राष्ट्रीय पटल पर कभी उभरकर नहीं आ सकीं.</p><figure> <img alt="इंदिरा गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/1A46/production/_109662760_47a49df4-bfc3-4d42-a618-01580eb95dfd.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>जब इंदिरा को मिली चुनौती</h3><p>हालांकि 1967 में चौथे आम चुनाव के बाद जब नेतृत्व को लेकर कांग्रेस आंतरिक विवाद में उलझी तब पार्टी ने धर्मनिरपेक्षता पर अपनी स्पष्टता खो दी.</p><p>दूसरी तरफ धार्मिक हिंदू राजनीतिक ताक़तों ने आज़ाद भारत में पूर्व राजा-महाराजाओं को मिलने वाले (क्षतिपूर्ति) वित्तीय लाभ (प्रिवी पर्स) को संसद में बहस के लिए सूचीबद्ध करवाया और इंदिरा गांधी सरकार को संविधान में संशोधन करके इस व्यवस्था को ख़त्म करना पड़ा.</p><p>सामंती और सांप्रदायिक संगठनों के साथ आने से इसमें नेहरूवादी व्यवस्था को बड़ी चुनौती देने की क्षमता थी, लेकिन इंदिरा गांधी जल्द ही, एक बार फिर गणतंत्र के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव को बहाल करने में कामयाब हो गईं.</p><figure> <img alt="राजीव गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/8F76/production/_109662763_174137a2-4fcc-41fb-8f5d-4038650ee264.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>राजीव गांधी की अदूरदर्शिता</h3><p>राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांतों पर अपनी रणनीतिक स्पष्टता खोनी शुरू कर दी. युवा और अनुभवहीन प्रधानमंत्री जो किसी भी प्रकार की राजनीतिक विसंगतियों से अछूते थे, अपने सलाहकारों के आसक्त हो गए, जिन्हें गांधी-नेहरू विरासत का कोई पता ही नहीं था.</p><p>जिन्हें अब तक इंदिरा गांधी ने दूर रखा हुआ था उन सभी ताक़तों को एक अवसर दिखने लगा.</p><figure> <img alt="नागपुर में संघ का मुख्यालय" src="https://c.files.bbci.co.uk/4A66/production/_109664091_b7b5f69b-4f74-40e5-a9f6-94f58ce74866.jpg" height="649" width="976" /> <footer>PTI</footer> <figcaption>नागपुर में संघ का मुख्यालय</figcaption> </figure><p>1984 के चुनावी अभियान में, बड़े पैमाने पर इनकी ग़लत सलाह के बावजूद मिली भारी सफलता में कांग्रेस ने बहुसंख्यक भावनाओं का ही ध्यान रखा. हालांकि बीजेपी को तब केवल दो सीटें ही मिली थीं. लेकिन संघ परिवार कांग्रेस की उस प्रचंड जीत से एक निश्चित निष्कर्ष पर पहुंचा होगा कि अगर कांग्रेस ऐसा कर सकती है तो वे क्यों नहीं कर सकते. </p><p>और तो और, एक अव्यावहारिक प्रधानमंत्री और उनके गैर-सैद्धान्तिक सलाहकारों के झुंड की तरफ से जल्द ही उन्हें (संघ को) मौका मिलने वाला था.</p><figure> <img alt="Ayodhya" src="https://c.files.bbci.co.uk/130DE/production/_109664087_ba9ed3b2-a4b2-461d-8b37-b40412aa154b.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>राजीव गांधी की लगातार नाकामी</h3><p>शाह बानो की घटना हुई. इसके बाद फ़रवरी 1986 में अयोध्या में ताला खोला गया. अचानक, सांप्रदायिक बहस, सांप्रदायिक गतिविधियां शुरू हो गईं और सांप्रदायिक लोग सम्मानजनक बन गए. राजीव गांधी की ग़लतियों और उनके ग़लत अनुमानों की वजह से एक बार फिर अयोध्या विवाद उभरकर सामने आ गया और जिसकी शर्तें बाद में संघ परिवार ने तय की.</p><p>इंदिरा गांधी के राजनीतिक सचिव एमएल फोतेदार ने ‘द चिनार लीव्स’ में दुख के साथ लिखते हैं, &quot;इंदिराजी के साथ बहुत नज़दीकी के साथ काम करने के बावजूद मैं यह नहीं समझ पाया कि राजीव कुछ ऐसा कर रहे थे जो नेहरू-गांधी परिवार के स्वभाव से मेल नहीं खाता था.&quot;</p><figure> <img alt="अयोध्या" src="https://c.files.bbci.co.uk/4156/production/_109662761_65870483-5389-4d0f-8e40-8161cc090453.jpg" height="351" width="624" /> <footer>Reuters</footer> </figure><h3>अयोध्या मुद्दे पर संघ का कब्ज़ा </h3><p>जहां एक तरफ राजीव गांधी अपने लिए सही स्थिति की तलाश कर रहे थे तो दूसरी तरफ संघ परिवार पुरानी खाज को पुनर्जीवित करने को लेकर दृढ़ संकल्प थी कि ‘यह ज़मीन हिंदुओं की है और हिंदू तय करेंगे संवैधानिक व्यवस्था हिंदुओं को संतुष्ट करने के लिए कैसे काम करेगी’. </p><figure> <img alt="पीवी नरसिम्हा राव" src="https://c.files.bbci.co.uk/EA20/production/_109663995_897323df-aba7-464d-b524-413dc3ba1f6a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>जब राजीव गांधी के बाद पीवी नरसिम्हा राव पहले कांग्रेस अध्यक्ष और फिर प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने यह महसूस किया कि थकाऊ और दिवालियेपन की कगार पर पहुंच चुकी अर्थव्यवस्था को सुधारना भारत की प्राथमिकता होनी चाहिए. </p><p>उन्हें दो मोर्चों पर एक साथ लड़ने के लिए कांग्रेस के भीतर से ही ताक़त या समर्थन नहीं प्राप्त था. उन्होंने अयोध्या में भीड़ को बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराने दिया. 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद को गिराया जाना पहले से जाना हुआ परिणाम था.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50357962?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मोहन भागवत बोले, ‘अतीत की सभी बातें भुलाकर, साथ मंदिर निर्माण करना है'</a></li> </ul><figure> <img alt="congress" src="https://c.files.bbci.co.uk/17EFE/production/_109664089_94413512-d923-4f49-90c3-8729d4f3840f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं</h3><p> कांग्रेस तब से ही बीजेपी और उसके सांप्रदायिक एजेंडे का सामना करने के लिए अपनी धर्मनिरपेक्ष महत्वाकांक्षा को उठाने का साहस नहीं जुटा पाई. </p><p>अयोध्या की गेंद को सुप्रीम कोर्ट के पाले में रखने को लेकर कांग्रेस स्वयं ही राज़ी थी. लिहाज़ा, इसने संतुष्टि जताते हुए अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को स्वीकार करते हुए कहा कि कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान किया जाना चाहिए.</p><figure> <img alt="अयोध्या" src="https://c.files.bbci.co.uk/18660/production/_109663999_22c17b2e-c8e9-42fe-b868-78bb8645a074.jpg" height="989" width="976" /> <footer>RAM DUTT TRIPATHI-BBC</footer> </figure><p>2014 के लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने ‘एके एंटनी थीसिस’ को मान लिया कि यह बुरी हार इसी वजह से हुई क्योंकि पार्टी ने खुद को कथित तौर पर गैर हिंदू संगठन बना लिया है.</p><p>इसलिए जब सर्वोच्च न्यायालय ने यह फ़ैसला दिया कि मंदिर वहीं बनेगा तो कांग्रेस के पास अदालती निर्णय को स्वीकारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. यह आज भी राजीव गांधी की ग़लतियों और उनकी अज्ञानता का भुगतान कर रही है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> करें. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong> और</strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi"> ट्विटर</a><strong> पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)</strong></p>

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें