<figure> <img alt="RCEP" src="https://c.files.bbci.co.uk/FF2F/production/_109472356_gettyimages-1061367342.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन, न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अडर्न और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी RCEP की सिंगापुर में आयोजित बैठक में.</figcaption> </figure><p>अंतरराष्ट्रीय ट्रेड में पिछले कुछ सालों में जिन साझेदारियों की सबसे ज़्यादा चर्चा हुई है उनमें प्रस्तावित रीज़नल कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनोमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी है. हालांकि यह अब तक ज़मीन पर नहीं उतर पाई है लेकिन कई चीज़ों के कारण सुर्ख़ियों में है. </p><p>इसमें असोसिएशन ऑफ़ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स यानी आसियान के 10 सदस्य शामिल हैं और साथ में भारत, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड हैं. </p><p>इसको लेकर केंद्र सरकार के उच्च-स्तरीय सलाहकार समूह ने अपनी राय दे दी है. उसका मानना है कि भारत को इस प्रस्तावित आरसीईपी में शामिल हो जाना चाहिए. इस समूह का कहना है कि भारत के आरसीईपी में से बाहर रहने का सवाल नहीं उठता है ‘क्योंकि इसके कारण भारत एक बड़े क्षेत्रीय बाज़ार से बाहर हो जाएगा.'</p><p>इस समूह की अध्यतक्षता सुरजीत भल्ला कर रहे हैं जो प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति के सदस्य रहे हैं. उनका कहना है कि इससे रुपया स्थिर रहेगा साथ ही सीमा शुल्क और कॉर्पोरेट टैक्स में भी कमी आएगी. </p><p>एशिया-प्रशांत के इन 16 देशों के पास वैश्विक जीडीपी का एक तिहाई हिस्सा है. अगर यह सफल रहा तो आरसीईपी 3.4 अरब लोगों का मार्केट बन जाएगा. </p><p>लेकिन इन 16 देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक विषमता बहुत बड़ी है. कुछ विषमताएं ऐसी हैं जो बाधा हैं. ऑस्ट्रेलिया अमीर देश है जहां की प्रति व्यक्ति न्यूनतम जीडीपी 55 हज़ार डॉलर से ज़्यादा है. कंबोडिया प्रति व्यक्ति 1,300 डॉलर के साथ आख़िरी नंबर पर है. </p><p>दूसरी तरफ़ भारत के बारे में कहा जा रहा है कि उसके लिए आरसीईपी किसी चुनौती से कम नहीं है. भारत की सबसे बड़ी चिंता इलेक्ट्रॉनिक डेटा शेयरिंग और लोकल डेटा स्टोरेज की मांग है. </p><p>सुरक्षा कारणों, राष्ट्र हित और गोपनीयता के लिहाज़ से इसे साझा करना आसान नहीं है. पर्यवेक्षकों का मानना है कि इन ज़रूरतों के कारण कई तरह की दिक़्क़ते आएंगी. </p><p>स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत अगर इसमें शामिल होता है तो घरेलू उत्पाद बुरी तरह से प्रभावित होंगे. एसबीआई की रिपोर्ट तब आई है जब RCEP की अहम बैठक थाईलैंड में चल रही है. सात सालों की लंबी बातचीत के बाद नंवबर में इस पर फ़ैसला आना है. </p><p>एसबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है, ”2018-19 में आरसीईपी के 15 में से 11 सदस्य देशों के साथ भारत का घाटे का व्यापार रहा. भारत का 2018-19 में व्यापार घाटा 184 अरब डॉलर का था. आरसीईपी के देशों से भारत का आयात 34 फ़ीसदी था और निर्यात महज 21 फ़ीसदी था.” </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49880555?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भागलपुरी सिल्क उद्योग के बुनकर अब पापड़ बना रहे हैं</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-50198701?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">महातिर के बयान से पाम ऑयल आयात पर असर पड़ेगा?</a></li> </ul><figure> <img alt="दवाएं" src="https://c.files.bbci.co.uk/DA09/production/_109471855_gettyimages-1176401062.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>भारत के सामने असली चुनौती</h1><p>भारत के लिए इसमें और भी कई तरह की चुनौतियां हैं. ट्रेड यूनियन, सिविल सोसाइटी और स्वदेशी समूहों की अपनी-अपनी आपत्तियां हैं. ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड से डेयरी उत्पादों के आयात को लेकर सबसे बड़ी आपत्ति है. </p><p>इसके अलावा जेनरिक दवाइयों की सुलभता के साथ, खनन मुनाफ़ा, पानी, ऊर्जा, परिवहन और टेलिकॉम के निजीकरण भी बड़ी अड़चने हैं. इसके साथ ही आर्थिक विषमता भी एक मुद्दा है. </p><p>आरसीईपी देश आपसी मतभेदों को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन चुनौतियां ख़त्म नहीं हुई हैं. इस महीने बैंकॉक में कई बैठकें हुई हैं. जिन मुद्दों पर अभी सहमति नहीं बन पाई हैं, वे हैं डेयरी उत्पाद, ई-कॉमर्स और प्रत्यक्ष निवेश. </p><p>आरसीईपी 16 देशों के बीच एक कारोबारी समझौता है जिसके तहत सदस्य देश आयात और निर्यात में टैरिफ़ कम करेंगे या पूरी तरह से ख़त्म कर देंगे. बिना कोई शुल्क वाले कारोबार को बढ़ावा दिया जाएगा. </p><figure> <img alt="उद्योग" src="https://c.files.bbci.co.uk/12829/production/_109471857_gettyimages-1176191988.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>देश में क्या है डर</h1><p>लेकिन भारत में इसे लेकर मैन्युफ़ैक्चरर्स और यहां तक कि किसानों के बीच भी डर है. फ़्री ट्रेड अग्रीमेंट को लेकर भारत का अतीत का अनुभव ठीक नहीं रहा है. भारत का इन सभी देशों के साथ घाटे का व्यापार है और हर साल बढ़ता जा रहा है.</p><p>इन देशों में भारत का कुल निर्यात 20 फ़ीसदी है जबकि आयात 35 फ़ीसदी है. अमरीका से जारी ट्रेड वॉर के बीच चीन आरसीईपी की वकालत कर रहा है. चीन भारत में बड़ा निर्यातक देश है. केवल चीन के साथ ही भारत का व्यापार घाटा बहुत बड़ा है. </p><p>हर साल चीन इलेक्ट्रिकल मशीनरी, उपकरण, प्लास्टिक उत्पाद, इस्पात, एल्युमीनियम, कृत्रिम फाइबर और फर्नीचर भारतीय बाज़ार में जमकर बेचता है. डर है कि अगर आरसीईपी डील हुई तो चीन के ये उत्पाद भारतीय मार्केट में और बढ़ जाएंगे. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50185824?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भारत में बिज़नेस करना आसान पर निवेश कहां है?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49916706?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">बांग्लादेश यूं बन रहा दक्षिण एशिया का नया टाइगर</a></li> </ul><figure> <img alt="नरेंद्र मोदी" src="https://c.files.bbci.co.uk/1839B/production/_109472299_gettyimages-1066904526.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>अतीत के अनुभव</h1><p>2006 के बाद भारत ने आक्रामक रूप से द्विपक्षीय व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर करना शुरू किया था. भारत ने पहली बार श्रीलंका से 2000 में फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट किया था. इसके बाद भारत ने मलेशिया, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया से द्विपक्षीय व्यापार समझौते किए. </p><p>डेटा देखें तो साफ़ पता चलता है कि इन समझौतों से भारत का व्यापार घाटा कम होने के बजाय बढ़ा है. नीति आयोग ने दो साल पहले फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट वाले देशों के साथ व्यापार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का आयात बढ़ा है और निर्यात कम हुआ है.</p><p>घरेलू मैन्युफ़ैक्चरिंग उद्योंगों में से एक धातु उद्योग फ़ॉरेन ट्रेड अग्रीमेंट यानी एफ़टीए से सबसे अधिक प्रभावित हुआ है. एक रिपोर्ट के अनुसार, धातु के लिए एफ़टीए टैरिफ़ में 10 फ़ीसदी की कमी के कारण आयात 1.4 फ़ीसदी बढ़ा है.</p><p>बाज़ार के विश्लेषकों के अनुसार, आरसीईपी के कारण कृषि वस्तुओं पर अधिक नकारात्मक असर पड़ेगा. इनमें दुग्ध उत्पाद, काली मिर्च और इलायची शामिल हैं. इस समय श्रीलंका से काली मिर्च और इलायची का सबसे सस्ता आयात हो रहा है और आसियान देश केरल के किसानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं. </p><p>यही मामला रबर किसानों के साथ के साथ है क्योंकि वियतनाम में रबर सस्ते दामों पर उपलब्ध है जिसके कारण इंडोनेशिया का उद्योग ठप हो रहा है. नारियल के किसान भी चिंतित हैं क्योंकि नारियल तेल केक फ़िलीपींस और इंडोनेशिया से आता है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49567097?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इस्पात नगरी टाटा में क्यों छीन रहीं नौकरियां </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/magazine-50069979?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ज़्यादा ग़रीब कहां- भारत-नाइजीरिया में टक्कर</a></li> </ul><figure> <img alt="भारत का दूध उद्योग" src="https://c.files.bbci.co.uk/2857/production/_109472301_gettyimages-76740020.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>डेयरी उद्योग पर पड़ेगा प्रभाव</h1><p>अगर ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के दुग्ध उत्पाद (डेयरी प्रॉडक्ट्स) बाज़ार में आते हैं तो यह घरेलू डेयरी सेक्टर को प्रभावित करेगी. </p><p>प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच जब 11 अक्टूबर को महाबलिपुरम में मुलाक़ात हुई तब समझा जा रहा था कि भारत और चीन के बीच व्यापार घाटे पर बात होगी.</p><p>2013-14 और 2018-19 के बीच भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 36 अरब डॉलर से बढ़कर 53 अब डॉलर हो गया था. अब, भारत के कुल व्यापार घाटे में चीन का हिस्सा आधा है.</p><p>नीति आयोग की 2017 रिपोर्ट में एक दिलचस्प बात यह थी कि कैसे बाज़ार में चीन की एंट्री व्यापारियों के लिए पूरी तस्वीर बदल सकती है. आसियान देशों और चीन के बीच फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट होने के बाद साल 2016 में आसियान के छह देशों (इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, वियतनाम, फिलीपींस, सिंगापुर) के साथ चीन का व्यापार 54 अरब डॉलर के घाटे से उलट 53 अरब डॉलर सरप्लस का हो गया था. </p><p>प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात से पहले दोनों देशों के बीच 120 एमओयू पर हस्ताक्षर हुए जिसको लेकर काफ़ी चर्चाएं हुईं. इन समझौतों में भारत से चीनी, रासायन, मछली, प्लास्टिक, दवाएं और उर्वरक के निर्यात शामिल हैं. </p><p>अब यह देखा जाना है कि यह कितना महत्वपूर्ण है और इससे कितना व्यापार घाटा कम करने में मदद मिलेगी.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें 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मोदी RCEP में गए तो भारत पर क्या असर पड़ेगा?
<figure> <img alt="RCEP" src="https://c.files.bbci.co.uk/FF2F/production/_109472356_gettyimages-1061367342.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>कंबोडियाई प्रधानमंत्री हुन सेन, न्यूज़ीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अडर्न और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी RCEP की सिंगापुर में आयोजित बैठक में.</figcaption> </figure><p>अंतरराष्ट्रीय ट्रेड में पिछले कुछ सालों में जिन साझेदारियों की सबसे ज़्यादा चर्चा हुई है उनमें प्रस्तावित रीज़नल कॉम्प्रिहेंसिव इकॉनोमिक पार्टनरशिप यानी आरसीईपी है. हालांकि […]
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