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दो प्याजा का राजसिक जायका

प्रो पुष्पेश पंत मनुष्य का आहार बदलते ऋतुचक्र के अनुकूल होना चाहिए और साथ ही व्यक्ति के स्वभाव के भी अनुकूल होना चाहिए. पितृपक्ष और नवरात्रि में तामसिक भोजन पारंपरिक रूप से वर्जित है. इस दौरान सात्विक भोजन का आनंद लेने का कोई विकल्प नहीं. इस लंबे अंतराल के बाद बेचारी जिह्वा का राजसिक स्वादिष्ट […]

प्रो पुष्पेश पंत
मनुष्य का आहार बदलते ऋतुचक्र के अनुकूल होना चाहिए और साथ ही व्यक्ति के स्वभाव के भी अनुकूल होना चाहिए. पितृपक्ष और नवरात्रि में तामसिक भोजन पारंपरिक रूप से वर्जित है. इस दौरान सात्विक भोजन का आनंद लेने का कोई विकल्प नहीं. इस लंबे अंतराल के बाद बेचारी जिह्वा का राजसिक स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए तरसना स्वाभाविक है. मनुष्य का आहार बदलते ऋतुचक्र के अनुकूल होना चाहिए. और साथ ही व्यक्ति के स्वभाव के विपरीत नहीं होना चाहिए.
हमारे पुरखों ने शायद इसलिए व्रत-उपवास में शाकाहार और फलाहार का विधान निर्धारित किया था, ताकि हम शरद ऋतु में गरिष्ठ पकवानों का आनंद लेने के लिए शरीर को चुस्त-दुरुस्त बना सकें!
समझदारी इसी में है कि जब छूट मिले तो हम खान-पान का अनुशासन भंग न करें. सामिष आहार में अति न करें और धीरे-धीरे ही उन कोरमों, कलियों और सालनों की तरफ लौटें, जो चाहे-अनचाहे अदृश्य हो गये थे. इसी संदर्भ में हमें ‘दो प्याजा’ उल्लेखनीय लगता है.
पूर्व सैलाना नरेश महाराजा दिग्विजय सिंह का मानना है कि यदि मांस में प्याज ही नहीं, कोई भी सब्जी मिला कर पकाएं, तो वह व्यंजन ‘दो प्याजा’ बन जाता है. लेकिन सब इससे सहमत नहीं हैं. कुछ की राय है कि मांस की मात्रा से दोगुना ज्यादा प्याज डाल कर पकाया व्यंजन ही इस उपाधि का अधिकारी है. अन्य का कहना है कि यह नाम दोगुना प्याज इस्तेमाल करने की वजह से नहीं, वरन पकाते वक्त दो बार प्याज डालने के कारण दिया गया है.
पुराने किस्सागो इस व्यंजन का नाता ‘मुल्ला दो प्याजा’ नामक किंवदंतियों में मशहूर पात्र से जोड़ते हैं, तो व्यावहारिक बावर्ची इसरार करते हैं कि हकीकत यह है कि इस नायाब व्यंजन का मजा दो तरह के प्याज के इस्तेमाल से पैदा होता है.
दो तरह के प्याज की गुत्थी भी कम उलझी नहीं. दो तरह का मतलब लाल और हरी प्याज समझें या बारीक कटी पहले भून ली गयी और कच्ची प्याज का पर्याय मानें? विशेषज्ञों की इस बहस से घबरा कर हमारे एक मित्र ने सभी नुस्खों को एक साथ इस्तेमाल कर बेचारे दो प्याजा को चूं-चूं के मुरब्बे में बदल डाला. हालांकि ईमानदारी का तकाजा यह है कि हम कबूल करें कि कुल मिलाकर यह प्रयोग दर्शनीय न सही, जायकेदार जरूर था.
यह न सोचें कि शाकाहारी व्यंजन दो प्याजा की पदवी नहीं पा सकते. भिंडी दो प्याजा, कटहल दो प्याजा और आलू दो प्याजा को बहुत सारे रेस्तरां अपने मेनू में जगह दे चुके हैं. एक प्रयोगप्रेमी शैफ का दावा है कि वह ‘तीन प्याजा’ का आविष्कार कर चुके हैं- दोगुना, दो तरह की प्याज को दो तरह से दो बार बरतने के साथ इस पाकविधि में वह सिरके के गुलाबी नशे में डूबी नन्ही गोल प्याज को भी काम लाते हैं. प्याज को प्राथमिकता देने के कारण अरसे से बिसराया बेचारा मांस उपेक्षित ही रह जाता है!
प्याज हमारी सेहत के लिए फायदेमंद है, क्योंकि यह ‘डिऑक्सीडेंट’ और हमारे शरीर में घातक मुक्त ‘रेडिकल्स’ पर अंकुश लगाता है. पर मांस के साथ प्याज का उपयोग खासे कौशल की दरकार रखता है. प्याज यदि ठीक से न भुना हो, तो कलिया रांधना बेकार हो सकता है, जल गया तो नतीजा और भी निराशाजनक सामने आता है. प्याज किस मिकदार में डाली जाये, अनुभव सिद्ध ज्ञान की देन है. संतुलन के अभाव में नमकीन व्यंजन मिठास का पुट ग्रहण करता है, जो सभी को रास नहीं आता.
दिल्ली और भोपाल के ‘इस्टू’ एक तरह से ‘दो प्याजा’ ही हैं, जिनमें मिठास को संतुलित करने के लिए दही का प्रयोग किया जाता है.
रोचक तथ्य
पूर्व सैलाना नरेश महाराजा दिग्विजय सिंह का मानना है कि यदि मांस में प्याज ही नहीं, कोई भी सब्जी मिला कर पकाएं, तो वह व्यंजन ‘दो प्याजा’ बन जाता है.
कुछ की राय है कि मांस की मात्रा से दोगुना प्याज डाल कर पकाया व्यंजन ही इस उपाधि का अधिकारी है.
पुराने किस्सागो ‘दो प्याजा’ का नाता ‘मुल्ला दो प्याजा’ नामक किंवदंतियों में मशहूर पात्र से जोड़ते हैं.

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