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अमरीका पहुंचने में लगे दो महीने और फिर 74 दिनों की भूख हड़ताल

<p>74 दिनों से टेक्सस के एल पासो शहर में भूख हड़ताल पर बैठे दो भारतीयों को आप्रवासियों के लिए बनाए गए हिरासत केंद्र से जल्द रिहा किया जा सकता है.</p><p>33 वर्षीय अजय कुमार और 24 वर्षीय गुरजंत सिंह को दक्षिणी सीमा पर हिरासत में लिया गया था और वे दोनों एक साल से हिरासत केंद्र […]

<p>74 दिनों से टेक्सस के एल पासो शहर में भूख हड़ताल पर बैठे दो भारतीयों को आप्रवासियों के लिए बनाए गए हिरासत केंद्र से जल्द रिहा किया जा सकता है.</p><p>33 वर्षीय अजय कुमार और 24 वर्षीय गुरजंत सिंह को दक्षिणी सीमा पर हिरासत में लिया गया था और वे दोनों एक साल से हिरासत केंद्र में हैं. </p><p>उत्तर भारत से उन्हें अमरीका-मेक्सिको सीमा पहुंचने में पूरे दो महीने का समय लगा था वे दोनों हवाई, समुद्री और ज़मीनी मार्ग से यहां तक पहुंचे थे. उन्होंने यह कहते हुए शरण की मांग की है कि अगर वे घर वापस गए तो उन्हें राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी सताएंगे.</p><p>अजय की याचिका अमरीकी आप्रवासन अपील बोर्ड के पास लंबित है. वहीं गुरजंत की याचिका आप्रवासन जज ने ख़ारिज कर दी है जिसे वही चुनौती दे रहे हैं. उन्होंने मांग की है कि उनकी याचिका की सुनवाई ‘निष्पक्ष और तटस्थ न्यायाधीश’ करें.</p><p>पिछले सप्ताह तक दोनों भारतीय अपनी हिरासत को लेकर भूख हड़ताल पर थे, उनकी मांग थी कि जब तक आप्रवासन जज उनके मामले की सुनवाई कर रहे हैं तब तक उन्हें रिहा किया जाए. अमरीकी आप्रवासन अधिकारियों के पास यह शक्ति है कि वे शरण मांगने वाले व्यस्कों के मामले की सुनवाई तक उन्हें रिहा करने या हिरासत में रखने का फ़ैसला ले सकते हैं.</p><h1>7,000 भारतीयों को भेजा गया वापस</h1><p>अमरीकी बोर्डर पेट्रोल ने इन दोनों लोगों समेत नौ हज़ार भारतीयों को हिरासत में लिया था. 2017 के मुक़ाबले ये संख्या तीन गुना थी. इसमें अधिकतर लोग उत्तर भारत के पंजाब और हरियाणा राज्य के थे जबकि कुछ गुजरात राज्य के थे.</p><p>शरण मांगने वालों में अधिकतर संख्या भारतीयों की है लेकिन उनकी मांग रद्द कर दी गई है. आंतरिक सुरक्षा विभाग के अनुसार, 2015 से 2017 के बीच 7,000 भारतीयों को अमरीका से वापस भेजा गया था. </p><p>इन मामलों पर क़रीबी नज़र रखने वाले एल पासो टाइम्स के पूर्व संपादक रोबर्ट मूर के अनुसार, हिरासत केंद्र में एल पासो में आप्रवासन और शुल्क अधिकारी लगातार भेदभाव करते हैं, लेकिन अधिकारियों ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था.</p><p>एक महीने के बाद अजय और गुरजंत सिंह ने भूख हड़ताल शुरू की थी. एक कोर्ट ने आदेश दिया था कि दोनों को ज़िंदा रखने के लिए उन्हें ज़बरदस्ती खाना खिलाया जाए.</p><p>अजय कुमार ने कोर्ट से कहा था, &quot;एक नर्स लंबी ट्यूब लेकर आई और डॉक्टर ने कहा, ‘खाओ वरना हम यह तुम्हारी नाक में डाल देंगे.’ मैंने मना कर दिया तो वह ट्यूब डालने लगे. जब तक मेरी नाक सूज नहीं गई तब तक उन्होंने ये तीन बार किया.&quot;</p><p>गुरजंत का हिरासत केंद्र में 17 किलो वज़न घटा है और उन्होंने कहा कि उन्हें ज़बरदस्ती खाना खिलाया गया जो बेहद दर्दनाक और अपमानजनक था.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49670239?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ब्रिटेन में बदली प्रवासी नीति, भारतीय छात्रों को मिलेगा फ़ायदा</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49742495?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी से हिंदुओं के लिए बंद दरवाज़े खोलेगा सीएबी?</a></li> </ul><figure> <img alt="भारतीय" src="https://c.files.bbci.co.uk/13507/production/_109011197_31f7b245-0553-4066-82e3-a6f4ec0ba4a4.jpg" height="415" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> <figcaption>2017 में अमरीकी बोर्डर पेट्रोल ने 9,000 से अधिक भारतीयों को हिरासत में लिया था</figcaption> </figure><h1>नली से खाना देना ख़तरनाक</h1><p>गुरजंत सिंह के वकील जेसिका माइल्स ने कहा, &quot;मेरे मुवक्किल ने बताया कि यह प्रक्रिया प्रताड़ित करने वाली है. यह प्रक्रिया भूख हड़ताल करने वालों के सामने की गई, यह और अपमानजनक था. कई सप्ताह के लिए यह ट्यूब लगी छोड़ दी गई जिसके कारण बेचैनी और दर्द था. मेरे मुवक्किल ट्यूब के दर्द और भूख हड़ताल के कारण कई हफ़्तों तक सो नहीं पाए.&quot;</p><p>&quot;मैंने पहले भी भूख हड़ताल करने वालों की पैरवी की है और मैं हैरान हूं कि गुरजंत सिंह की स्थिति चिंताजनक थी. मैंने डॉक्टरों से उनकी स्थिति का जायज़ा लेने के लिए कहा तो उन्होंने बताया कि उसकी दिल के दौरे से मौत हो सकती है.&quot;</p><p>वकीलों का कहना है कि ज़बरदस्ती कुछ खिलाने से नाक से ख़ून बहता है और उल्टी हो सकती है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि इसको प्रताड़ना माना जा सकता है और यह मेडिकल तौर पर अनैतिक है. </p><p>आप्रवासन अधिकारियों का कहना है कि ज़बरदस्ती खाना आप्रवासियों की सेहत और सुरक्षा के लिए दिया जाता है. लंबे समय तक भूखा रहने से लोगों की सेहत और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर ख़तरा मंडराता रहता है. </p><p>अजय कुमार का कहना है कि वह हरियाणा के एक किसान परिवार से हैं और वह राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी में हैं जबकि राज्य में हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी बीजेपी की सत्ता है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-48774991?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">आप्रवासी बाप-बेटी की ऐसी तस्वीर आपको हिलाकर रख देगी</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49325949?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">अमरीका: ग्रीन कार्ड पाना होगा और मुश्किल</a></li> </ul><p>अजय की वकील लिंडा कोरशाडो ने कहा, &quot;उनका कहना है कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उनकी बहन पर तेज़ाब से हमला किया था और अमरीका के हिरासत केंद्र में रहने के दौरान उनके पिता की हत्या कर दी गई.&quot;</p><p>&quot;जब आप हिरासत केंद्र में होते हैं तो आपके दावों की पुष्टि कर पाना मुश्किल होता है.&quot;</p><p>गुरजंत का कहना है कि वह पंजाब से हैं और उन्होंने अपने वकील से कहा था कि वह ‘एक राजनीतिक दल के साथ जुड़े हुए थे और उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण उन्हें कई दफ़ा पीटा गया था, उन्हें धमकी दी गई थी कि अगर वह मुख्य विपक्षी दल में शामिल नहीं होते तो उनकी हत्या कर दी जाएगी.'</p><p>यह अभी तक साफ़ नहीं है कि एल पासो के हिरासत केंद्र में कितने भारतीय हैं लेकिन फ़रवरी में वकीलों ने क्षेत्र का दौरा किया था तो उन्होंने पाया कि 200 ऐसे लोग हिरासत में हैं जिनके उपनाम भारतीय हैं.</p><p>न्यूयॉर्क स्थित दक्षिण एशिया अमरीकी लीडिंग टूगेदर समूह की लक्ष्मी श्रीधरन का कहना है, &quot;हिरासत केंद्रों में रह रहे शरण मांगने वाले लोगों की कई समस्याएं हैं जिनमें भाषा, धार्मिक स्थानों का न मिलना, चिकित्सा उपेक्षा, एकांत कारावास, ज़बरदस्ती खाना खिलाना और शरण की मांग की प्रक्रिया में देरी शामिल है.&quot;</p><h1>क्यूबा, बांग्लादेश के लोगों ने भी की भूख हड़ताल</h1><p>एल पासो में आप्रवासन वकीलों ने कहा कि भूख हड़ताल अब आम बात हो रही है.</p><p>वकीलों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस साल सीमा से हिरासत में लिए गए 13 भारतीयों ने खाना खाने से इनकार कर दिया था और उन्हें ज़बरदस्ती नली से खाना दिया गया. चिकित्सा क्षेत्र में नैतिकता की बात को लेकर इसका विरोध भी हुआ.</p><p>एडवोकेट विज़िटर्स विद इमिग्रेंट्स इन डिटेंशन नामक समूह की एक स्वयंसेवक मारग्रेट ब्राउन वेगा ने कहा, &quot;रिहाई की कोई संभावना न नज़र आने के कारण हिरासत में लिए गए लोगों में भूख हड़ताल का चलन बढ़ा है.&quot;</p><p>पहले भी हिरासत केंद्र में क्यूबा, बांग्लादेश, कैमरून, वेनेज़ुएला और निकारागुआ से आने वाले ग़ैर-क़ानूनी प्रवासियों ने भूख हड़ताल की है. आमतौर पर कुछ ही सप्ताह में उनकी भूख हड़ताल समाप्त हो गई लेकिन भूख हड़ताल पर गए इन भारतीयों की भूख हड़ताल ऐसा लगता है सबसे लंबे समय तक चली.</p><p>अप्रैल में भी दो भारतीयों ने 74 दिनों तक भूख हड़ताल की थी और उन्हें ज़बरदस्ती खाना खिलाया गया था. एल पासो हिरासत केंद्र में आठ महीने रहने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया था. </p><p>मूर कहते हैं, &quot;इन लोगों के प्रदर्शनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली. ख़ासकर के तब जब फ़ेडरल जजों ने हिरासत में लिए गए लोगों को ट्यूब के ज़रिए खाना खिलाने का आदेश दिया.&quot;</p><p>22 वर्षीय जसवीर सिंह और 23 वर्षीय राजनदीप सिंह बताते हैं कि दिन में तीन बार ज़बरदस्ती कुछ खिलाना ‘दर्दनाक और अमानवीय’ था.</p><p>चिकित्सा की दृष्टि से स्वस्थ होने के बाद अजय कुमार और गुरजंत सिंह को एल पासो में स्थानीय प्रायोजकों के साथ रहने की अनुमति दे दी जाएगी. हालांकि, उनकी आवाजाही प्रतिबंधित रहेगी और उनके पैर में एक इलेक्ट्रोनिक मॉनिटरिंग मशीन लगा दी जाएगी जिससे प्रशासन उनकी आवाजाही पर नज़र रख सकेगा. </p><p>एक प्रायोजक ने मुझे बताया, &quot;वह जब तक यहां रहना चाहें उनका स्वागत है. हमने उनके लिए एक डॉक्टर ढूंढा है जो उनके स्वास्थ्य की जांच करेगा.&quot;</p><p>कोरशाडो कहती हैं, &quot;अजय अपनी अपील पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं और अच्छा महसूस कर रहे हैं लेकिन साथ ही वह बहुत चिंतित हैं. वह भारत लौटने को लेकर डरे हुए हैं.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a 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