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‘भद्रलोक’ के बंगाल में ‘जात-पांत’ की राजनीतिक दस्तक
अजय विद्यार्थी कोलकाता : राजनीतिक हिंसा, वामपंथी और दक्षिणपंथी विचाराधाराओं की लड़ाई का केंद्रबिंदु रहे ‘भद्रलोक’ की छवि वाले पश्चिम बंगाल में अब ‘जात-पात’ की राजनीति की दस्तक महसूस की जाने लगी है. अल्पसंख्यक की राजनीति के लिए महशूर बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की गढ़ में भाजपा ने घुसपैठ करने के लिए सात फीसदी अनुसूचित […]
अजय विद्यार्थी
कोलकाता : राजनीतिक हिंसा, वामपंथी और दक्षिणपंथी विचाराधाराओं की लड़ाई का केंद्रबिंदु रहे ‘भद्रलोक’ की छवि वाले पश्चिम बंगाल में अब ‘जात-पात’ की राजनीति की दस्तक महसूस की जाने लगी है. अल्पसंख्यक की राजनीति के लिए महशूर बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की गढ़ में भाजपा ने घुसपैठ करने के लिए सात फीसदी अनुसूचित जातियों, 22 फीसदी अनुसूचित जनजातियों के वोटबैंक में घुसपैठ के साथ-साथ आदिवासी (ओरांव, टिग्गा, तिर्के, टोटो), गोरखा, कामतापुर, राजवंशी, मतुआ (नामशुद्र समुदाय), बांग्लादेश से बंगाल आये हिंदू शरणार्थियों और हिंदुत्व का सहारा लिया है.
16-18 लोकसभा सीटों पर अल्पसंख्यकों का प्रभाव : अल्पसंख्यक वोट बैंक अभी भी बंगाल की राजनीति पर हावी है. आखिर क्यों न हो ? राज्य के कुल मतदाताओं में से करीब 30 फीसदी लोग अल्पसंख्यक हैं और वह राज्य की लगभग 16-18 लोकसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. उत्तर बंगाल में रायगंज, कूचबिहार, बालुरघाट, मालदह उत्तर, मालदह दक्षिण, मुर्शिदाबाद और दक्षिण बंगाल में डायमंड हार्बर, उलुबेड़िया, हावड़ा, बीरभूम, कांथी, तमलुक, जयनगर जैसी संसदीय सीटों पर मुस्लिमों की आबादी अधिक है.
दक्षिण बंगाल की राजनीति में मतुआ फैक्टर
बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में बांग्लादेशी शरणार्थियों के संगठन मतुआ महासंघ का आविर्भाव बंगाल की भद्रलोक की राजनीति में दलित और जात-पात की राजनीति की दस्तक मानी जाती है. तृणमूल ने सबसे पहले मतुआ संप्रदाय के महत्व को पहचाना और मतुआ महासंघ की प्रधान दिवंगत वीणापाणि देवी (बड़ो मां) के पुत्र मंजुल कृष्ण ठाकुर को सांसद बनाया, लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा ने मंजुल कृष्ण ठाकुर को अपने पाले में करने में सफलता प्राप्त की थी.
बड़ो मां के बड़े बेटे दिवंगत कपिल कृष्ण ठाकुर की पत्नी ममता बाला ठाकुर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस की सांसद हैं, जबकि छोटे बेटे मंजुल कृष्ण ठाकुर व उनके पुत्र शांतनु ठाकुर को भाजपा ने अपने खेमे में किया है. हाल में ‘बड़ो मां’ के निधन के बाद तृणमूल और भाजपा की बीच खींचतान स्पष्ट हो गयी है.
गोरखा, राजवंशी, कामतापुरी और दलित फैक्टर
उत्तर बंगाल की दार्जिलिंग, कूचबिहार, अलीपुरदुआर, जुलपाईगुड़ी और रायगंज क्रमश: गोरखा, राजवंशी, कामतापुरी और आदिवासी बहुल हैं, जबकि दक्षिण बंगाल का झाड़ग्राम, मेदिनीपुर, पुरुलिया, बांकुड़ा और विष्णुपुर आदिवासी व दलित बहुल है. विशेषज्ञों के मुताबिक आरएसएस ने आदिवासी और दलित इलाकों में काफी काम किया है.
इसकी वजह से आरएसएस की शाखाओं की संख्या दुगनी हो गयी हैं. गोरखाओं के समर्थन से भाजपा के उम्मीदवार एसएस अहलुवालिया दार्जिलिंग से विजयी हुए थे. दार्जिलिंग में 50% से ज्यादा आबादी गोरखाओं की है. दार्जिलिंग में सुभाष घीसिंग व विमल गुरुंग के नेतृत्व में अलग गोरखालैंड की मांग राष्ट्रीय मुद्दा बन चुकी है. भाजपा ने गोरखा मूल के राजू सिंह बिश्ट को और टीएमसी ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के अमर राय को खड़ा किया है.
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