राजद:टिकट बंटवारे से तेज प्रताप फातमी सहित कई गुस्सा
राज्य में महागठबंधन के घटक दलों के बीच लोकसभा सीटों का बंटवारा हो चुका है. सीटों की हेरफेर और टिकट नहीं मिलने से नेताओं और कार्यकर्ताओं में उदासीनता है. हर लोकसभा क्षेत्र में प्रत्याशियों को उन्हें जोड़ने की चुनौती है. दर्जन भर से अधिक बेटिकट हो चुके नेताओं को साथ लाना एक और बड़ी समस्या है. ऐसे में महागठबंधन में बेटिकट हो चुके प्रत्याशियों के रुख का असर प्रत्याशियों की जीत पर असर डालेगा.
पटना : महागठबंधन के सबसे बड़े सहयोगी राजद को आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर अपनों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. पार्टी सुप्रीमो लालू प्रसाद के बड़े बेटे व पूर्व मंत्री तेज प्रताप टिकट बंटवारे से नाराज हैं. अपने एक्शन सेवे इसे बता भी चुके हैं. इधर, पार्टी के वरिष्ठ नेता व दरभंगा से तीन बार सांसद रहे एमए फातमी खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार भी कर चुके हैं. राजद 19 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है. पार्टी ने पप्पू यादव को छोड़ अपने सभी मौजूदा सांसदों को टिकट दिया है. प्रत्याशियों का नाम घोषित होने के पहले तक रोजाना पार्टी कार्यालय व राबड़ी देवी के सरकारी आवास पर दावेदारों व उनके समर्थकों की भीड़ लगी रहती थी.
एमए फातमी दरभंगा व मधुबनी से टिकट के प्रवल दावेदार थे. उन्हें बेटिकट कर दिया गया. फातमी ने खुलकर अपनी नाराजगी जतायी है. उन्होंने तीन अप्रैल को अपने समर्थकों की बैठक बुलायी है उसके बाद वे कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं. साीतामढ़ी से पूर्व सांसद सीताराम यादव टिकट के दावेदार थे. उन्हें भी टिकट नहीं मिला. उनके समर्थकों कई बार राजद कार्यालय व राबड़ी आवास पर हंगामा कर चुके हैं. राजद ने अभी तक शिवहर से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. तेज प्रताप यादव यहां से अपने एक समर्थक को टिकट दिलाना चाह रह हैं. तेज प्रताप सारण से चंद्रिका राय और जहानाबाद से सुरेंद्र यादव को टिकट देने से भी नाराज हैं. हालांकि अभी उन्होंने खुलकर कुछ कहा नहीं है लेकिन पार्टी और परिवार के भीतर उनको मनाने की कवायद जारी है.
जहानाबाद से सुरेंद्र यादव की उम्मीदवारी का विरोध स्थानीय कार्यकर्ता भी कर रहे हैं. मुंगेर से रामबदन राय टिकट के दावेदार थे, यह सीट गठबंधन को चली गयी. उजियारपुर सीट रालोसपा के खाते में चली गयी है. पूर्व मंत्री आलोक मेहता यहां से टिकट के प्रवल दावेदार थे. पाटलिपुत्र के टिकट के दावेदार भाई वीरेंद्र भी थे. उन्हें भी टिकट नहीं मिला है. जमुई सीट भी रालोसपा के खाते में गयी है. यहां से एसएस भाष्कर टिकट के दावेदार थे. 2014 में वह पार्टी के प्रत्याशी थे. बहरहाल पार्टी अपनों की नाराजगी दूर करने में जुटी है. लेकिन, नाराजगी दूर करना पार्टी को भारी पड़ रहा है. राजद के प्रदेश प्रवक्ता डॉ चितरंजन गगन कहते हैं कि चुनाव से समय यह सब स्वाभाविक हैं. सभी लोग पार्टी के अभिन्न अंग है. नाराजगी तात्कालिक है. सब ठीक हो जायेगा.
रालोसपा: छोड़नी पड़ी अपनी सीतामढ़ी सीट
महागठबंधन में शामिल रालोसपा को अपनी सीतामढ़ी सीट छोड़नी पड़ी है. वहां के वर्तमान सांसद राम कुमार शर्मा बेटिकट हो गये हैं. महागठबंधन में प्रवेश करनेवाली वीआइपी पार्टी को मुजफ्फरपुर, खगड़िया और मधुबनी सीट हासिल हुई है. इधर, रालोसपा को पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, उजियारपुर और जमुई लोकसभा सीट दी गयी है. इनका मुकाबला एनडीए के प्रत्याशियों से होना है.
कांग्रेस: चुनाव में चार खांटी कांग्रेसी और पांच बाहरी
महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के हिस्से की नौ सीटों आयी हैं. इसमें मात्र चार लोकसभा में ही कांग्रेस के परंपरागत नेताओं को टिकट दिया गया है. कांग्रेस के पांच कैडिडेट बाहरी हैं. मुंगेर से नीलम देवी, कटिहार से तारिक अनवर, पूर्णिया से उदय सिंह के अलावा कीर्ति झा आजाद और शत्रुघ्न सिन्हा दूसरे दलों से कांग्रेस में शामिल हुए हैं या होनेवाले हैं. कांग्रेस को अपनी परंपरागत सीट औरंगाबाद और नालंदा छोड़नी पड़ी है. सीटों की संख्या कम होने से सामाजिक संतुलन भी नहीं बन पाया है. कांग्रेस के अनुसूचित जाति से आनेवाले एक खास जाति के नेता संजीव कुमार टोनी, डाॅ ज्योति, नागेंद्र कुमार विकल को भी टिकट नहीं मिला है. इसी तरह से भूमिहार समाज से वाल्मीकिनगर से विश्वमोहन शर्मा और नवादा से नरेंद्र कुमार को भी टिकट नहीं मिला. राजपूत वर्ग से औरंगाबाद से निखिल कुमार और अवधेश कुमार सिंह को टिकट नहीं दिया गया. डाॅ शकील अहमद और कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी बेटिकट हो गये. पिछड़ा वर्ग से रामदेव राय, सदानंद सिंह जैसे नेता टिकट हासिल करने में विफल रहे.