महाराष्ट्र में राजनीतिक रसूख वाले परिवारों में सत्ता का संघर्ष कोई नई बात नहीं है.
ठाकरे और भोसले राजघराने के बाद अब शरद पवार के परिवार में सत्ता को लेकर कलह शुरू हो गई है.
अजित पवार के बेटे पार्थ पवार को मावल लोकसभा सीट से टिकट मिलने की संभावनाओं से इसके संकेत मिलते हैं.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार ने ऐलान किया है कि उन्होंने ये फ़ैसला नई पीढ़ी के हाथ में राजनीति की बागडोर सौंपने के उद्देश्य से लिया है.
शरद पवार के इस फ़ैसले के बाद पवार परिवार के सदस्य रोहित राजेंद्र पवार ने फ़ेसबुक पोस्ट लिखकर बताया है कि शरद पवार को अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए.
रोहित पवार लिखते हैं, "पवार साहब के हर फ़ैसले का हम आदर करते हैं लेकिन इस आदर से भी बड़ा प्रेम होता है जो कि मैं और मेरे जैसे तमाम कार्यकर्ता पवार साहब से करते हैं. इसीलिए हम कहना चाहते हैं कि पवार साहब को इस फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए."
महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पवार के इस फ़ैसले के बाद परिवार में सत्ता संघर्ष शुरू हो गया है.
बीबीसी ने इस परिवार में सत्ता को लेकर हुए संघर्ष के मायनों को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे से बात की है.
सत्ता को लेकर पारिवारिक कलह
विजय चोरमारे कहते हैं, "महाराष्ट्र की राजनीति में राजनीतिक रसूख वाले परिवारों में सत्ता संघर्ष होना कोई नई बात नहीं है. इसके उदाहरण ठाकरे, मुंडे और सतारा का भोसले राजघराना हैं. लेकिन किसी को ये उम्मीद नहीं थी कि पवार परिवार में ये संघर्ष शुरू होगा. मगर इस उम्मीदवारी की घोषणा के साथ ही पवार परिवार में सत्ता संघर्ष शुरू होता दिख रहा है.
"ये बात समझा जाना बहुत ज़रूरी है कि अजित पवार अब तक अपने चाचा शरद पवार की हर बात मानते आए हैं. लेकिन शरद पवार को अजित पवार के बेटे यानी पार्थ पवार की बात आख़िरकार माननी पड़ी."
वरिष्ठ पत्रकार राही भिडे मानती हैं कि पार्थ पवार को उम्मीदवारी मिलने के पीछे पारिवारिक संघर्ष एक वजह हो सकती है.
भिडे कहती हैं, "अजित पवार अपने बच्चों को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं. वोह चाहते हैं कि शरद पवार के राजनीतिक रूप से सक्रिय रहते ही ऐसा हो. ये संभव है कि पवार परिवार में इसके लिए दबाव बनाया जा रहा हो.’
वो कहती हैं, ‘पार्थ भी महात्वाकांक्षी हैं और वो ख़ुद को राजनीति में स्थापित करना चाहते हैं. इसीलिए वो लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. वह काफ़ी समय से इसकी तैयारी भी कर रहे थे. मावल लोकसभा सीट में भी पार्थ पवार का पार्टी कार्यकर्ताओं से बढ़िया तालमेल है."
"ऐसा लगता है कि शरद पवार ने घरवालों के दबाव की वजह से पार्थ को आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया हो. शरद पवार ने ही इससे पहले मावल से पार्थ की उम्मीदवारी को नकारा था. लेकिन अब शरद पवार को ख़ुद के फ़ैसले से पीछे हटना पड़ा. इससे पता चलता है कि उन पर घरवालों का कितना दबाव है. वहीं, अजीत पवार के समर्थक भी चाहते हैं कि मावल से पार्थ को उम्मीदवारी मिले. इसका मतलब ये हुआ कि अजित पवार को ख़ुद ये लगता है कि उनका बेटा पार्थ राजनीति में आने के लिए तैयार है."
रोहित और पार्थ के बीच प्रतिस्पर्धा
स्थानीय राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक़, "पवार परिवार में युवाओं के बीच राजनीतिक महत्वाकांक्षा दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है. क्योंकि अजित पवार ने कहा था कि पार्थ को राजनीति में नहीं आना चाहिए और शरद पवार ने भी कहा था कि उनके परिवार से अब कोई व्यक्ति राजनीति में शामिल नहीं होगा. लेकिन इसके बावजूद पार्थ को उम्मीदवारी मिलने की बात लगभग पक्की हो गई है. ऐसे में ये सवाल उठना लाज़मी है कि क्या पार्थ और रोहित के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा है."
स्थानीय पत्रकार मानते हैं कि दोनों भाइयों में किसी तरह की राजनीतिक रेस नहीं चल रही है.
वहीं, नाम न बताने की शर्त पर एक पत्रकार कहते हैं, "पवार परिवार में आपसी रिश्ते बेहद मज़बूत हैं. शरद पवार की बात कोई नहीं टालता है. ऐसे में शरद पवार ने मावल में जीत सुनिश्चित होने की वजह से ही उन्हें उम्मीदवारी दी है. इसके पीछे एक वजह ये थी कि अगर एक ही परिवार के ज़्यादा लोग चुनाव लड़ें तो जनता में इससे ग़लत संदेश जाता है.’
इसी वजह से पवार ने ख़ुद चुनाव न लड़ने का फ़ैसला किया है. पवार का मानना है कि चुनाव जीतने की क्षमता और जनाधार के आधार पर टिकटों का बँटवारा किया जाता है. ऐसा होने के बावजूद भी दिल्ली की राजनीति में पवार परिवार की सुप्रिया सुले, पार्थ पवार और शरद पवार (राज्य सभा से) तीन सदस्यों की मौजूदगी होगी. वहीं, महाराष्ट्र की विधानसभा में अजित पवार और रोहित पवार मौजूद होंगे.
कौन हैं रोहित पवार
शरद पवार के भाई अप्पा साहेब पवार के बेटे का नाम राजेंद्र पवार था.
राजेंद्र भी राजनीति में आना चाहते थे लेकिन परिवार के एक सदस्य अजित पवार पहले ही राजनीति में आ चुके थे.
ऐसे में उनका ये सपना अधूरा रह गया.
इसके बावजूद राजेंद्र पवार ने बारामती एग्रो और शिक्षण संस्थाएं चलाकर समाज में अपना नाम हासिल किया.
अब राजेंद्र के 31 साल के बेटे रोहित को राजनीति में दिलचस्पी है. हाल ही में वह पुणे ज़िला परिषद के सदस्य बने हैं.
स्थानीय पत्रकार मानते हैं कि रोहित विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं. वह हडपसर या कर्जत-जामखेडची में से किसी एक विधानसभा से चुनाव लड़ सकते हैं.
लेकिन ये जंग नहीं आसां
एक सवाल ये है कि क्या पार्थ पवार मावल लोकसभा सीट से सिर्फ़ पवार उपनाम की वजह से चुनाव जीत जाएंगे.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि पार्थ की उम्मीदवारी से राष्ट्रवादी कांग्रेस को लाभ ज़रूर होगा.
लेकिन पार्थ से पहले कई दिग्गज राजनेता इस सीट से चुनाव हार चुके हैं.
यहां के रायगड क्षेत्र में शेतकरी कामगार पक्ष का प्रभाव है.
इस बार ये पक्ष चाहता है कि पार्थ पवार को टिकट मिले और अगर ऐसा हुआ तो ये पक्ष एनसीपी को अपना समर्थन देगा.
लेकिन अगर ये हुआ तब भी ये एक कठिन चुनाव साबित होगा. इससे पहले उम्मीदवार एकतरफ़ा जीत हासिल कर लेते थे. लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा.
मावल के वर्तमान सांसद श्रीरंग बारणे का जनाधार काफ़ी अच्छा है. इसलिए पार्थ पवार को उम्मीदवारी मिलने के बाद भी बारणे की हार की आशंका जताना ग़लत होगा.
वहीं, विजय चोरमारे का कहना है, "पार्थ पवार घराने से आते हैं. इसी वजह से इस चुनाव में दलबदल की संभावना कम होगी. इस लोकसभा सीट का माहौल देखें तो पार्थ पवार की उम्मीदवारी एनसीपी के लिए लाभदायक होगी. लेकिन यहां शिव सेना का नेटवर्क भी काफ़ी अच्छा है. इसीलिए अजीत पवार को अपने बेटे के लिए व्यक्तिगत स्तर पर मेहनत करनी होगी."
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