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केरल से इतनी नर्सें विदेश क्यों जाती हैं?

गृहयुद्ध की आग में जल रहे इराक में बड़ी संख्या में भारतीय नर्सें फंसी हैं. एक तो जान जोखिम में, ऊपर से चार माह से वेतन नहीं मिला. ऐसे में घर भी नहीं लौट सकतीं, क्योंकि बिना नौकरी के वो कर्ज कैसे चुकेगा, जो विदेश में नौकरी करने के लिए लिया है. यही कारण है […]

गृहयुद्ध की आग में जल रहे इराक में बड़ी संख्या में भारतीय नर्सें फंसी हैं. एक तो जान जोखिम में, ऊपर से चार माह से वेतन नहीं मिला. ऐसे में घर भी नहीं लौट सकतीं, क्योंकि बिना नौकरी के वो कर्ज कैसे चुकेगा, जो विदेश में नौकरी करने के लिए लिया है.

यही कारण है कि उन्होंने बजाय भारत आने के, किसी अन्य देश में जाकर नौकरी करने का विकल्प या फिर इराक में ही सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है ऐसे में सवाल उठता है कि ये नर्सें भारत क्यों नहीं आना चाहतीं? दरअसल, अमेरिका, ब्रिटेन समेत तमाम यूरोपीय और खाड़ी देशों में नर्सों की भारी कमी है. वहां भारत की तुलना में पैसा भी ज्यादा मिलता है. इसलिए ये विदेश में नौकरी करना बेहतर समझती हैं, लेकिन इराक जैसी स्थिति खड़ी होने पर दांव उल्टा पड़ जाता है.

* केरल में नर्सों की फौज

भारत में करीब 2,000 नर्सिंग डिप्लोमा प्रशिक्षण केंद्र, 1200 नर्सिंग डिग्री स्कूल और 281 पोस्ट ग्रेजूएट कॉलेज हैं. यहां हर साल 60 हजार नर्सों को प्रशिक्षित किया जाता है. 2011-12 में भारत ने 63.6 अरब विदेश में रह रहे भारतीयों से पाया था, जिसमें केरल को इसका सबसे बड़ा हिस्सा 14.57 प्रतिशत प्राप्त हुआ था. देश में इस वक्त प्रति 10,000 की आबादी पर 7.9 नर्स हैं. यह संख्या अंतरराष्ट्रीय मानक से काफी नीचे है और यह घरेलू स्वास्थ्य सेवा की जरूरत के लिहाज से नाकाफी है.

देश छोड़नेवाली अधिकांश नर्सें, खासकर केरल की नर्सें कहती हैं कि उन्हें अपनी शादी के लिए धन जुटाना है, इसलिए विदेश जाकर काम करना पड़ता है. हाल के एक अध्ययन के मुताबिक, देश की 20 फीसदी नर्सें कमाने के लिए विदेश चली जाती हैं. नर्सिंग सेवा की शुरुआत के बारे में फादर पॉल कहते हैं कि इस क्षेत्र का विस्तार केरल में सीरियाई ईसाई समुदाय के प्रसार से जुड़ा है.

प्रारंभ में यह समुदाय उच्च बाल मृत्यु दर से जूझ रहा था, जिसके कारण कई नन सभाओं को चिकित्सा क्षेत्र से जुड़ने के लिए मजबूर किया गया. इसके बाद इन सभाओं ने भी अपने अस्पताल की शुरुआत की, जिससे कई ननों को नर्स नियुक्त किया गया. धीरे-धीरे इन अस्पतालों ने नर्सिंग कॉलेज खोला. कई ईसाई परिवार अपनी आजीविका चलाने के लिए इस क्षेत्र से जुड़ गये. फिर पीढ़ी दर पीढ़ी वे अपने बच्चों को भी इस क्षेत्र से जोड़ने लगे.

* देश में ज्यादा वेतन नहीं

चार से छह लाख खर्च कर नर्सिंग कोर्स करनेवाली सरकारी नर्सों को 20,000 से 25,000 वेतन मिलता है, जबकि निजी अस्पतालों की नर्सों की मासिक आय मात्र 10,000 रुपये है. केरल सरकार नर्स एसोसिएशन के कुलसचिव आर लाथा कहते हैं, अब तो कई निजी अस्पतालों ने ट्रेनिंग सिस्टम की शुरुआत कर दी है, जिसमें नर्सों को छह हजार रुपये ही दिये जाते हैं. नर्सों का कहना है कि भरती के वक्त उनसे एक विशिष्ट अवधि के लिए बांड पर हस्ताक्षर करवाये जाते हैं और उनके प्रमाण पत्र जब्त कर लिये जाते हैं, जिससे उन्हें कहीं और काम करने का मौका नहीं मिल पाता.

वर्ष 2012 में सरकार ने एक समिति बनायी. इसने राज्यभर के कई अस्पतालों का निरिक्षण किया, जिसमें मालूम हुआ कि वहां नर्सों को 18 घंटों तक काम करने को मजबूर किया जाता है. कई अस्पतालों ने सीसीटीवी कैमरे लगाये हुए थे, जो नर्सों की निगरानी करता था. उसी वर्ष नर्सों ने बेहतर वेतन के लिए एक आंदोलन छेड़ा.

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