
वैज्ञानिकों को मकड़ियों की कुछ ऐसी प्रजातियां खोजने में सफ़लता मिली है जो मछलियों का शिकार करती हैं.
अब तक माना जाता है कि मकड़ियां कीट-पतंगों की परभक्षी होती हैं, लेकिन नए अध्ययन से पता चलता है कि पानी के नज़दीक रहने वाली अधिकांश प्रजातियों में मछली पर निर्भरता व्यापक होती है.
कुछ मामलों में आठ पैरों वाले ये जीव अपने से बहुत बड़ी मछली को मारने के लिए तेज़ ज़हर का इस्तेमाल करते हैं.
स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया की टीम का यह अध्ययन अकादमिक जर्नल ‘प्लोस वन’ में छप चुका है.
तस्वीरों से झांकता ख़ूबसूरत जंगल
स्विट्जरलैंड के बेरसेल विश्वविद्यालय में मार्टिन निफ़ेलर और वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के ब्रैडली प्यूज़ी ने मकड़ियों द्वारा मछली पकड़ने की ढेरों घटनाओं के साक्ष्य इकट्ठे किए और उनका दस्तावेज़ बनाया.
इन साक्ष्यों का विश्लेषण दिखाता है कि जंगलों में छोटी-छोटी मछलियों के आहार पर निर्भर मकड़ियों के कम से कम पांच परिवार (फ़ेमिली) मिले. तीन अन्य परिवारों में ऐसी प्रजातियां मिलीं, जो प्रयोगशाला की परिस्थितियों में मछली पकड़ने में सक्षम हैं.
ये अर्द्ध जलचरीय मकड़ियां मुख्य रूप से बहाव वाले पानी, पोखरों या दलदल के छाया वाली जगहों पर पाई जाती हैं.
बड़ी मछलियों का शिकार

इनमें से कुछ तैरने, गोते लगाने और पानी की सतह पर चलने में सक्षम होती हैं, लेकिन सामान्यतया इनमें तेज़ न्यूरोटॉक्सिन्स और एन्जाइम्स होते हैं, जो अपने आकार से कई गुना बड़ी और भारी मछली को मारने और उन्हें पचाने में मददगार होते हैं.
अमूमन मकड़ियों द्वारा पकड़ी गई मछलियां अपने परभक्षी से लगभग दोगुनी लंबी पाई गईं.
डॉ. निफ़ेलर के अनुसार, ”हमारे साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि पर्याप्त पोषण के लिए ये कभी-कभार मछली का शिकार कर सकती हैं.”
‘मकड़ी के धागों की तरह’ बुने जा सकेंगे अंग
अंटार्टिका को छोड़कर मकड़ियों द्वारा मछली पकड़ना सभी महाद्वीपों में देखा गया है, लेकिन अधिकांश साक्ष्य उत्तरी अमरीका, खासकर फ़्लोरिडा के दलदली हिस्से के हैं.
यहां जल-थल पर रहने वाली मकड़ियों को अक्सर ही मॉसक्यूटो फ़िश जैसी ताज़ा पानी वाली छोटी मछलियों को पकड़ते-खाते देखा गया है.
अपने शिकार को पकड़ने के लिए मकड़ी अपने पिछले पैर को किसी पत्थर या जलीय पौधे पर टिका लेती है. जबकि आगे के पैर पानी की सतह पर शिकार पकड़ने के लिए तैयार होते हैं.
शिकार की हुई मछली को खाने से पहले सूखे स्थान पर ले जाया जाता है. इस प्रक्रिया में आम तौर पर कई घंटे लगते हैं.
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