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राजा एजिलिसेस का सिक्का

अशोक भौमिक चित्रकार किसी देश के सिक्कों को देखकर हम उस देश की संस्कृति और इतिहास के बारे में जान पाते हैं, इसलिए सिक्कों के अध्ययन का अपना एक विशेष महत्व है. प्राचीन काल से सिक्कों को बनाते समय, अनिवार्य रूप से इसके कला पक्ष पर विशेष ध्यान देते हुए इन्हें आकर्षक और अर्थपूर्ण बनाने […]

अशोक भौमिक

चित्रकार
किसी देश के सिक्कों को देखकर हम उस देश की संस्कृति और इतिहास के बारे में जान पाते हैं, इसलिए सिक्कों के अध्ययन का अपना एक विशेष महत्व है. प्राचीन काल से सिक्कों को बनाते समय, अनिवार्य रूप से इसके कला पक्ष पर विशेष ध्यान देते हुए इन्हें आकर्षक और अर्थपूर्ण बनाने का प्रचलन रहा है.
सिक्कों में जो कुछ भी उकेरा हुआ होता है, वह मूर्तिरचना की एक विशेष धारा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसे ‘रिलीफ’ कहते हैं, जहां उभारकर लिपि या आकृतियों को बनाया जाता है. मूर्तिकला में ‘रिलीफ’ काे हम आसानी से मंदिरों और ऐतिहासिक भवनों की दीवारों और स्तंभों पर बनी उभरी हुई मूर्तियों को देखकर समझ सकते हैं.अलंकारों, गहनों पर भी हम मूर्तिशिल्प की इस धारा को सहज ही देख-समझ सकते हैं.
सिक्के, अपने आरंभिक काल से ही मूर्तिकला में आम प्रचलित पद्धति, ‘ढलाई’ या ‘कास्टिंग’ से बनाये जाते रहे हैं. मिट्टी के बने आरंभिक सिक्कों के बाद धातु-विज्ञान या ‘मेटलर्जी’ के विकास के साथ-साथ सिक्के धातु के ही बनाये जाने लगे, ताकि वे आसानी से नष्ट न हो और लंबे समय तक प्रचलन में बने रह सके.
धातु के ऐसे सिक्कों के लंबे समय तक बने रहने के कारण ही, इतिहासकारों को एक समय-विशेष के इतिहास को समझने में सिक्कों से पर्याप्त मदद मिलती रही है. सिक्कों के अध्ययन की इस विधा को न्यूमिजमाटिक्स या मुद्राशास्त्र कहते हैं. यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि ऐसे अनेक साम्राज्य हैं, जिनका आज नामो-निशां भी नहीं है, पर हम उस समय के उपलब्ध सिक्कों के अध्ययन से उस साम्राज्य के इतिहास के साथ-साथ उसकी अर्थनीति, राजनीति, संस्कृति आदि को भी जान सकते हैं.
ऐसा ही एक सिक्का आज से तकरीबन बाइस सौ वर्षों पहले (ईसा पूर्व पहली शताब्दी) में मध्य एशिया से भारत के पश्चिमी प्रदेशों तक फैले इंडो-सिथियन साम्राज्य के गांधार प्रदेश के राजा एजिलिसेस (57 से 35 ईसा पूर्व) ने जारी किया था. यह सिक्का (चित्र-1) हालांकि काफी घिसा हुआ है, फिर भी इसकी आकृतियों को आसानी से पहचाना जा सकता है.
इस सिक्के के ऊपर बौद्ध देवी गजलक्ष्मी की प्रतिमा बनी हुई है, और वहीं कमल के फूलों पर हमें दो हाथी भी दिखते हैं. इंडो-सिथियन साम्राज्य के गांधार प्रदेश का राजा एजिलिसेस कोई बौद्ध राजा नहीं था, इसलिए उसके द्वारा जारी सिक्के पर गजलक्ष्मी का चित्र निश्चय ही राजा की उदारता के साथ-साथ, एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक विनिमय की मिसाल पेश करता है.
मध्य प्रदेश के सतना जिले के भरहुत में मौर्य सम्राट अशोक ( 268 से 232 ईसा पूर्व) द्वारा स्थापित बौद्ध स्तूप में एक स्तंभ पर उभारकर तराशे गये एक ‘रिलीफ’ फलक पर हम गजलक्ष्मी, हाथी और कमल को बना देख पाते हैं (चित्र 2). यह फलक सिक्के की तुलना में आकार में बड़ा है, पर सिक्के जैसा ही गोलाकार है. इस फलक की संरचना सिक्के से कहीं ज्यादा जटिल है.
इन दोनों उदाहरणों से यह तो स्पष्ट है कि एजिलिसेस का सिक्का, भरहुत के फलक से ही प्रभावित है, पर हम यहां धार्मिक संकीर्णताओं से ऊपर उठकर एक शुद्ध कलाप्रेम को भी चिह्नित कर पाते हैं.राजा एजिलिसेस द्वारा जारी किया गया सिक्का (चित्र 1) वर्तमान में ब्रिटिश म्यूजियम में संरक्षित है, जबकि भरहुत की गजलक्ष्मी का फलक (चित्र 2), इंडियन म्यूजियम, कलकत्ते में है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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