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शिक्षण-संस्थानों को बर्बाद न करें राजनेता

अनुज कुमार सिन्हा जमशेदपुर में राष्ट्रीय स्तर का एक संस्थान है- नेटूर टेक्निकल ट्रेनिंग फाउंडेशन (एनटीटीएफ). टाटा स्टील का ज्वाइंट वेंचर है. बेहतर संस्थान, जहां सिर्फ जमशेदपुर या झारखंड के नहीं बल्कि देश के कहीं का भी छात्र पढ़ सकता है. प्रतियोगिता के आधार पर वहां नामांकन होता है. उसे शुक्रवार को बंद करना पड़ा. […]

अनुज कुमार सिन्हा

जमशेदपुर में राष्ट्रीय स्तर का एक संस्थान है- नेटूर टेक्निकल ट्रेनिंग फाउंडेशन (एनटीटीएफ). टाटा स्टील का ज्वाइंट वेंचर है. बेहतर संस्थान, जहां सिर्फ जमशेदपुर या झारखंड के नहीं बल्कि देश के कहीं का भी छात्र पढ़ सकता है. प्रतियोगिता के आधार पर वहां नामांकन होता है. उसे शुक्रवार को बंद करना पड़ा. कारण था राजनीतिक हस्तक्षेप. वहां भारतीय जनता पार्टी और भारतीय जनता युवा मोरचा के कार्यकर्ताओं/नेताओं ने हंगामा किया. अंतत: एनटीटीएफ को अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया.

कार्यकर्ता-नेताओं ने एक वैसी लड़की को पास करने का दबाव बनाया था, जिसकी उपस्थिति 90 फीसदी नहीं थी. बाद में अन्य छात्रों ने हंगामा किया. यह सवाल सिर्फ एनटीटीएफ का नहीं है. ऐसे मामले लगभग हर कॉलेज में सामने आ रहे हैं. हर संस्था/कॉलेज के अपने नियम होते हैं. अगर छात्र-छात्रएं पर्याप्त कक्षा न करें, गायब रहें और जब उन्हें सेंट-अप करने से या परीक्षा देने से रोका जाये, तो हंगामा करें, राजनीतिक दलों का सहयोग लें, यह कतई उचित नहीं है. जिस छात्र या छात्र की राजनीतिक पकड़ है, वह तो दबाव देकर पास हो जायेगा, लेकिन जिसकी कोई पैरवी नहीं है, उसका क्या होगा? दोहरा मापदंड तो अपनाया नहीं जा सकता. कभी यही भाजपा शिक्षण संस्थानों में सुधार के लिए आंदोलन करती थी. आज उसी भाजपा के कुछ कार्यकर्ता-नेता संस्थान को बंद करा रहे हैं.

एक तो पहले से झारखंड में बेहतरीन संस्थाओं का अभाव है. यहां के लाखों छात्रों को हर साल बाहर जाना पड़ रहा है. जो यहां है भी, वह राजनीतिक हस्तक्षेप से बरबाद हो रहा है. नेता पहले नामांकन के लिए पैरवी करते हैं. फिर बगैर कक्षा किये पास करने का दबाव बनाते हैं. उसके बाद नौकरी का दबाव. संस्थाओं को बंद कराने, तोड़-फोड़ करने का आरोप कभी दूसरे दलों पर लगा करता था. भाजपा को अनुशासित पार्टी माना जाता रहा है. वहां भी यही हालत है. बेहतरीन संस्थाओं को बंद कराना अपराध है. लड़कों के भविष्य के साथ खेलने की राजनेताओं को अनुमति नहीं दी जा सकती. अगर आंदोलन करना है तो बेहतरी के लिए आंदोलन हो. किसी संस्था को डैमेज करना बहुत आसान है, लेकिन उसका निर्माण करना उतना ही कठिन. ऐसी ही घटनाओं के कारण राज्य में अच्छे संस्थान नहीं आ रहे. अच्छे हॉस्पीटल की जब बात होती है, तो राजनीतिक दलों के नेता उसे दूहने के लिए खड़ा हो जाते हैं. यह किसी एक दल की बात नहीं है.

अपवाद को छोड़ दें, तो लगभग सभी दलों में ऐसे लोग मिल जायेंगे. दलों के अंदर जो समझदार लोग हैं, उन्हें अब आगे आना होगा. यह संदेश देना होगा कि संस्थाओं को बनाने के लिए वे आगे आयें, बिगाड़ने के लिए नहीं. स्कूल, कॉलेज और शैक्षणिक संस्थाओं से बच्चे अनुशासन सीखते हैं. अगर वहीं पर अनुशासन तोड़ने को बढ़ावा देने का दबाव बनाया जाये, तो इससे उन लड़कों या लड़कियों का भी भला नहीं होगा जिसकी पैरवी के लिए राजनेता जाते हैं. स्कूल, कॉलेज कड़ाई से अनुशासन का पालन करें. अगर कक्षा से गायब रहेंगे, तो कैसे उन्हें पास किया जायेगा. सिर्फ नाम लिखा कर डिग्री-डिप्लोमा लेने से काम नहीं चलनेवाला. ऐसी घटनाओं के कारण यह टिप्पणी की जाती है कि देश में तैयार होनेवाले 80 फीसदी इंजीनियर किसी काम के नहीं हैं. बेहतर होगा कि स्कूल- कॉलेज (चाहे वह सामान्य कॉलेज हो या फिर मेडिकल-इंजीनियरिंग कॉलेज या अन्य तकनीकी संस्थान) में राजनीति न हो. राजनीतिक हस्तक्षेप बंद कराये बगैर राज्य या छात्र का भला नहीं हो सकता.

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