आजादी के बाद से ही भारत-चीन के रिश्ते बहुत नाजुक रहे हैं. सीमा पर भले ही गोलियां न चलती हों, पर एक छाया-युद्ध सा चलता रहता है. 10 सालों में यूपीए की दो सरकारों के दौरान चीन ने अनेक बार भारतीय सीमा का अतिक्रमण किया. चीन ने लंबे समय से भारत की घेराबंदी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रखी है. हर भारतीय के मन में सवाल है कि क्या नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद चीन का रुख बदलेगा. फिलहाल चीन अपने बयानों में मोदी सरकार को लेकर काफी उत्साह और सकारात्मकता दिखा रहा है. चीनी विदेश मंत्री वांग यी बीते रविवार को राष्ट्रपति जी यिनपिंग के विशेष दूत के तौर पर भारत पहुंचे. भारत आने से पहले ई-मेल पर अनंत कृष्णन से लंबी बातचीत की. आप भी पढ़िए, यह पूरा साक्षात्कार :
नयी दिल्ली में नयी सरकार के बनने के बाद यह चीन से पहली उच्चस्तरीय वार्ता होगी. चीन नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली सरकार के साथ कैसा भविष्य देख रहा है?
मैं राष्ट्रपति जी यिनपिंग के विशेष दूत के तौर पर भारत आने को लेकर बहुत उत्सुक हूं. मैं हालांकि पहले भी कई बार इस खूबसूरत देश में आ चुका हूं, लेकिन यह यात्र अलग है. यह भ्रमण तो दरअसल संदेशों को देने और नये मित्र बनाने का है. यह यात्र हमारी दीर्घकालीन मित्रता को और भी गहरा करने और भविष्य के लिए काम करने के लिए भी है.
भारत महान पुरातन सभ्यता का केंद्र रहा है और मैं इस देश को नयी ऊर्जा और स्थायित्व पाते देख प्रसन्न हूं. कार्यालय में आने के महज दो हफ्तों के भीतर नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली सरकार ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह सुधार और विकास की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रही है. साथ ही, इसने दूसरे देशों के साथ सहयोग और सहभागिता की दिशा में तेज कदम बढ़ाये हैं.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय भारत की विशालतर संभावनाओं से प्रभावित है, जो देश के हित में ही है. भारत का एक पड़ोसी और दोस्त होने के नाते चीन भी इसके विकास को एक मौके की तरह देखता है. लगभग, एक समान धरा पर विकसित हुईं ये पुरातन सभ्यताएं दरअसल अपने राष्ट्रीय पुनर्विकास के महा-स्वप्न को ही तो आगे बढ़ा रही हैं, ये सपने एक-दूसरे से मिले हैं और मौलिक रूप से सहायक हैं. हम सहयोग के पुराने सहयात्री रहे हैं और हम विकास के कई और पुल बांध सकते हैं. मेरी यात्र दरअसल, भारत के लोगों के लिए एक बहुत ही अहम संदेश ला रही है- कि, चीन आपके सुधार और विकास के प्रयासों में आपके साथ खड़ा है, सपनों को छूने में आपके साथ है. चीन अपने भारतीय मित्रों के साथ रणनीतिक और सहयोगी साङोदारी को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है.
आप इन रिश्तों को पूरी समग्रता में कैसे देखते हैं और क्या हम राष्ट्रपति जी यिनपिंग के इस साल बाद में भारत के दौरे पर आने की उम्मीद करें?
चीन और भारत के बीच संबंध इस शताब्दी की शुरुआत के मुकाबले काफी हद तक आगे बढ़ चुके हैं. चीन अपने संबंधों को लेकर हालिया वर्षो में संतुष्ट है. साथ ही, वह भविष्य के संबंध को लेकर भी आशान्वित है. हमारा यह विश्वास दरअसल, हमारे नेताओं के द्विपक्षीय संबंध बनाने के प्रयासों को लेकर ही उपजते हैं, जो इसके पीछे की मूल वजह हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ-ग्रहण के तुरंत बाद ही राष्ट्रपति जी यिनपिंग ने मुङो विशेष दूत के तौर पर भारत जाने को कहा, साथ ही प्रीमियर ली केयांग ने भी प्रधानमंत्री को बधाई का संदेश देते हुए टेलीफोन पर बातचीत की. राष्ट्रपति जी यिनपंगि इसी साल भारत आ सकते हैं. यह सब कुछ बताता है कि हमारे नेता राजनीतिक सह-अस्तित्व और सहयोग को बढ़ाना चाहते हैं. मुङो यकीन है कि चीन और भारत के नये नेता दरअसल, द्विपक्षीय संबंधों के मामले में नया युग और नयी ऊंचाई पायेंगे.
हमारी यह अपेक्षा दरअसल, हमारे सहयोग के अतुलनीय मानदंड से आती है. चीन और भारत के बीच सहयोग ने कई क्षेत्रों में इस शताब्दी की शुरुआत के मुकाबले अतुलनीय प्रगति की है. उदाहरण के लिए, द्विपक्षीय व्यापार 20 गुणा अधिक हो गया है, आपसी भ्रमण लगभग तीन गुणा बढ़ गया है, और दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें शून्य से सप्ताह में 45 हो गयी हैं. हालांकि, हमारी लगभग 2.5 अरब की संयुक्त जनसंख्या को देखते हुए, यह सहयोग अब भी काफी कम है. ठीक वैसे ही, जैसे जमीन में गड़े खजाने का बस ऊपरी सिरा हमें मिला है, और जो बाहर आने के लिए हमारे द्वारा खोजे जाने या किसी बड़े ज्वालामुखी का इंतजार कर रहा है. चीन-भारत संबंध दरअसल सबसे गतिशील और प्रभावी 21वीं सदी में हो सकते हैं. यह बहुध्रुवीय दुनिया में भारत और चीन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. इससे ही शांतिप्रद, सहयोगी और सकारात्मक विकास पाया जा सकता है. यह न केवल दोनों ही देशों की जनता के लिए बड़े प्रभाव लायेगा, बल्कि एशिया और दुनिया को भी प्रभावित करेगा. साथ ही, मानव जाति मात्र के लिए विकास के मसले पर भी जवाब लायेगा.
क्या ऐसे कोई विशेष क्षेत्र हैं, जहां आप दोनों देशों के बीच सहयोग की नयी रोशनी देखते हैं?
मैं मानता हूं कि भारत और चीन के बीच व्यावहारिक सहयोग तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर आधारित है. पहला, सहयोगपूर्ण पूरकता का है. चीन और भारत, जिनमें से एक वैश्विक उत्पादक है और दूसरा बड़ा सेवा-प्रदाता है, अपनी-अपनी आर्थिक खूबियों से एक-दूसरे के पूरक बन सकते हैं. चीनी उद्यमियों के पास आधारभूत ढांचों के विकास और विनिर्मिाण क्षेत्र के अनुभव का खजाना है, जो भारत को अपना योगदान देकर विशिष्ट बना सकते हैं. हम साथ ही, भारत की प्रतियोगी कंपनियों के चीन में स्वागत का भी एलान करते हैं. साथ ही, हमारा सहयोगात्मक रवैया द्वि-पक्षीय निवेश में लगा होगा. इसके अलावा वित्तीय सेवाओं और नयी व उच्च तकनीक का साथ भी रहेगा.
दूसरा, अर्थव्यवस्थाओं के आकार से उत्पन्न अवसर है. चीन और भारत की जनसंख्या दुनिया की लगभग एक तिहाई है. विशाल भू-भाग, विविधतापूर्ण संस्कृति और मेहनती लोगों के साथ-साथ भारत और चीन, दोनों ही तेज गति से अर्थव्यवस्था को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं. हमारी दो अर्थव्यवस्थाओं के बीच पूरकता और जुड़ाव विशाल अर्थव्यवस्था को जन्म देगा. इससे सबसे प्रतियोगी उत्पादन होगा, सबसे आकर्षक उपभोक्ता बाजार बनेगा, और यह विश्व की आर्थिक वृद्धि का इंजन होगा.
तीसरा, क्षेत्रीय और वैश्विक सहयोग के मामले में भी, चीन और भारत ‘ब्रिक्स’ के साथ ही उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सदस्य हैं. हम अच्छी स्थिति में हैं और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के दायित्व से बंधे हैं, क्षेत्रीय संपर्क को दुरुस्त करना हमारी जवाबदेही है, वैश्विक मुक्त व्यापार को मुहैया कराना हमारा जिम्मा है, ऊर्जा और खाद्यान्न सुरक्षा को उपलब्ध कराना, जलवायु परिवर्तन से निपटना और एशिया व दुनिया की उन्नति में योगदान हमारा दायित्व है. मेरा यकीन है कि जब हम दोनों देश बराबरी के लक्ष्य लेकर चलेंगे, व्यापक रणनीति बनायेंगे, अपने बाजारों को जोड़ेंगे और लोगों से लोगों को मिलवायेंगे, दुनिया भारत और चीन की प्राचीन सभ्यताओं के पुनर्जागरण को देखेगी और साथ ही समृद्धि और महत्व की एशियाई शताब्दी को भी पहचानेगी.
दोनों पक्षों ने पिछले साल सीमा-रक्षा सहयोग का एक करार किया था, जब भूतपूर्व प्रधानमंत्री बीजिंग की यात्र पर थे. चीन उस समझौते को किस तरह देखता है और अभी ताजा हालात के मद्देनजर उसको कैसे लेता है?
सीमा का सवाल सचमुच पेचीदा है. हालांकि, मजबूत विश्वास के साथ हम इसका भी समाधान पा लेंगे. यहां तक कि अगर हम कुछ समय के लिए इसको नहीं सुलझा सकते, तो भी कम-से-कम इसका प्रबंधन तो कर ही सकते हैं, ताकि हमारे रिश्ते नहीं प्रभावित हों. धन्यवाद दें हमारे संयुक्त प्रयासों को, जिनकी वजह से चीन और भारत के बीच की सीमा लगभग 30 वर्षो से अप्रभावित रही है.जो भी हुआ है, वह साबित करता है कि जब तक हम एक-दूसरे की इच्छा का सम्मान करते रहेंगे, और विरोध के बजाय वार्ता से गतिरोध को सुलझाने पर जोर देंगे, हम सीमा-विवाद का भी उचित तरीके से समाधान निकाल सकेंगे और इसकी छाया अपने द्विपक्षीय संबंधों पर कम-से-कम पड़ने देंगे. पिछले वर्ष का सीमा समझौता दरअसल दोनों ही पक्षों के संचार और संवाद को प्रभावी तरीके से दिखाने का नजरिया है. यह सचमुच पड़ोसियों के बीच नजरअंदाज कर देने लायक है कि इतिहास से प्रभावित कुछ मतभेद उनके बीच न हों. हालांकि, मुङो यह बता कर अच्छा लग रहा है कि चीन और भारत के बीच अलगाव से अधिक रणनीतिक सुरक्षा को लेकर बात हो रही है और सहयोग हमारा मुख्य मसला है. कोई भी देश अपने पड़ोसी नहीं चुन सकता, लेकिन दोस्ती तो अपनायी ही जा सकती है. कुछ मसले अनदेखे किये जा सकते हैं, और कुछ नये सवाल भी तलाशे जा सकते हैं.
व्यापारिक रिश्तों के तहत भारत में चीन-केंद्रित औद्योगिक पार्को की स्थापना के प्रस्ताव पर दोनों पक्षों में विचार चल रहा है. क्या आप इस विषय में कुछ कहना चाहेंगे?
दोनों देशों के नेताओं के बीच विमर्श में औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना एक मुख्य प्रस्ताव रहा है. पिछले 30 वर्षों में चीन के स्थायी और तीव्र विकास से हमने यह सबक तो सीखा ही है कि औद्योगिक क्षेत्रों की स्थापना कर उद्योगों को बढ़ावा दिया जाये और नीतियां उस लायक बनायी जायें. चीन इस संदर्भ में भारत के साथ अपने अनुभव साझा करने को तैयार है. वर्तमान में, सक्षम अधिकारी इस संदर्भ में जरूरी समझौतों पर बात कर रहे हैं, जिन पर जल्द ही सहमति और हस्ताक्षर होने की उम्मीद है. चीन ने एक प्रतिनिधिमंडल भारत में भेजा है, ताकि प्रस्तावित इलाकों का मुआयना किया जा सके. मेरी जानकारी के मुताबिक, कुछ चीनी व्यापारी आगे कदम उठा चुके हैं और जमीनी काम भी शुरू कर दिया है. दोनों सरकारों को दरअसल नीतिगत निर्देशों के संदर्भ में काम करने की आवश्यकता है, ताकि चीनी व्यापारी यहां आराम से काम कर सकें और हमलोग एक-दूसरे के विकास में योगदान दे सकें.
चीन में हाल ही में कई आतंकी हमले हुए हैं. इस संदर्भ में दोनों देशों की चुनौतियों को देखते हुए क्या आप ऐसी कोई संभावना देखते हैं, जहां दोनों मुल्क मिल कर आतंकरोधी गतिविधियों को अंजाम दे सकें?
हाल में चीन में कई हिंसक आतंकी गतिविधियां हुईं. भारत सरकार ने सार्वजनिक तौर पर इन हमलों के तुरंत बाद इनकी निंदा जारी की, जो चीन और दूसरे तमाम आतंक-पीड़ित देशों के हक में था. चीन इसकी बेहद प्रशंसा करता है. चीन और भारत, दोनों ही आतंक के शिकार हैं और आतंक-रोधी गतिविधियों में समान दिलचस्पी रखते हैं. इस संदर्भ में दोनों ही बृहत सहयोग कर सकते हैं. दोनों ही पक्षों ने इस मामले में पहले ही बहुत सहयोग किया है. आगे बढ़ने की राह है कि हम भारत के साथ आतंक-रोधी गतिविधियों को और तेज करें, ताकि दोनों देशों के साझा सुरक्षा हितों को बचाया जा सके. आतंक दरअसल पूरी मनुष्यता के खिलाफ है. इसके काफी जटिल कारण हैं और इसे पूरी तरह निपटाने में कुछ समय लगेगा. एकता और बृहत्तर सहयोग ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय को इससे निपटने में सहायता दे सकता है. इसके बाद ही हम क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा और स्थायित्व को प्राप्त कर सकेंगे.