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आधार अनिवार्य नहीं होता तो नहीं होती संतोषी की मौत

सिमडेगा (झारखंड) ज़िले के कारीमाटी में कोयली देवी के घर जब मैं पहुंचा, तो वे अपने तीन साल के बेटे प्रकाश को साग-भात खिला चुकी थीं. उन्होंने कोहड़े (कुम्हड़ा) के पत्ते का साग बनाया था. साल 2017 के 28 सितंबर को उनकी 11 साल की बेटी संतोषी कुमारी की मौत भूख से हो गई थी. […]

सिमडेगा (झारखंड) ज़िले के कारीमाटी में कोयली देवी के घर जब मैं पहुंचा, तो वे अपने तीन साल के बेटे प्रकाश को साग-भात खिला चुकी थीं. उन्होंने कोहड़े (कुम्हड़ा) के पत्ते का साग बनाया था.

साल 2017 के 28 सितंबर को उनकी 11 साल की बेटी संतोषी कुमारी की मौत भूख से हो गई थी. कल इस मौत की पहली बरसी है. वह नहीं भूल पातीं कि पिछले साल उनकी बेटी भात-भात की रट लगाते हुए मर गई थी.

घर में राशन नहीं होने के कारण वे संतोषी को भात नहीं खिला सकी थीं. उन्हें तब आठ महीने से राशन इसलिए नहीं मिल सका था क्योंकि उनका आधार कार्ड राशन डीलर के पीओएस (प्वाइंट आफ सेल्स) मशीन से लिंक्ड नहीं हो था. झारखंड सरकार ने तब ऐसे तमाम राशन कार्ड रद्द कर दिए थे.

25 मौत का ज़िम्मेदार ‘आधार’

यह मामला सुर्ख़ियों में रहा था और झारखंड समेत पूरे देश में भूख से हो रही मौत पर गंभीर बहसों की शुरुआत हुई थी. कुछ सोशल एक्टिविस्ट द्वारा तैयार किए गए आंकड़ों के मुताबिक़, पिछले चार साल के दौरान देश में 56 लोगों की मौत भूख से हो गई है.

इनमें से 42 मौतें 2017-18 के दौरान हुई हैं. इनमें से कम से कम 25 मौतों के लिए किसी न किसी रूप में आधार कार्ड ज़िम्मेदार था. जबकि 18 मौतें सीधे तौर पर आधार कार्ड के कारण हुई थीं. इन आंकड़ों को मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता रितिका खेड़ा और सिराज दत्ता ने स्वाति नारायण की मदद से तैयार किया है.

इसके मुताबिक़ भूख से सर्वाधिक मौतें झारखंड और उत्तर प्रदेश में हुई हैं. बीबीसी के पास यह पूरी लिस्ट मौजूद है.

कैसे तैयार हुआ यह आंकड़ा

इस आंकड़े को तैयार करने वाली टीम के सदस्य सिराज दत्ता ने बीबीसी से कहा, "यह गंभीर चिंता का विषय है कि भारत में भूख से हो रही मौत मीडिया की सुर्ख़ियां नहीं बनती. पिछले चार साल के दौरान भूखमरी से 56 मौतों के बावजूद सरकार की इससे बेरुखी हमें चिंतित करती है. हम लोगों ने यह आंकड़ा मीडिया रिपोर्ट्स और खुद द्वारा संग्रहित तथ्यों के आधार पर तैयार किया है. मरने वाले अधिकतर लोग वंचित समुदायों (आदिवासी, दलित, मुसलमान) से थे. यह हमें चिंतित करता है."

सिराज दत्ता ने यह भी कहा, "अव्वल तो यह कि सरकारें इन मौतों को स्वीकार ही नहीं करतीं. कुछ मामलों (संतोषी की मौत समेत) में तो सरकारों ने इसे दूसरी दिशा में भी मोड़ने की कोशिशें की हैं. होना यह चाहिए कि सरकार भूखमरी को स्वीकारे और इससे बचने के उपाय खोजे. आधार कार्ड की अनिवार्यता के कारण हुई मौतों के लिए आप किसे ज़िम्मेदार मानेंगे."

कोयली देवी का दर्द संतोषी की भूख से मौत के बाद सरकार ने उसकी मां कोयली देवी को सिर्फ़ पचास हजार रुपये दिए.

उनके घर में आज भी सिर्फ़ तीन हफ़्ते का राशन (चावल) है. हरी सब्ज़ियां, दाल, फल और दूध उनके भोजन में किसी ‘विशिष्ट अतिथि’की तरह आता है तो मुर्गा (चिकेन) बनना ‘सालाना जलसे’ की तरह है.

कोयली देवी ने बीबीसी से कहा, "आधार कार्ड अगर ज़रूरी नहीं होता, तो मेरी बेटी ज़िंदा होती. उसकी मौत आधार कार्ड के कारण हुई. उसके बाद सरकार ने पचास हज़ार रुपये दिए, जिसमें अब सिर्फ़ 500 रुपये बचे हैं. पैसा मेरे इलाज में ख़र्च में हो गया. न तो मेरा घर बना और न फिर कोई पूछने आया. राशन बंद हो जाए, तो हमलोग भूखे मर जाएंगे."

उन्होंने कहा, "मेरे पति तताय नायक बीमार हैं. सास देवकी देवी अब 80 साल की हैं. बड़ी बेटी प्रेम विवाह करके चली गई. अब नौ साल की चांदो और तीन साल के प्रकाश के सहारे मेरी ज़िंदगी चल रही है. दातून का एक मुट्ठा (बंडल) बेचिए तो पांच रुपये मिलते हैं. कैसे लाएंगे दूध और कहां से खिलाएंगे दाल. मेरे बच्चे इसके बग़ैर ज़िंदा हैं. हो सके तो मेरा घर बनवा दीजिए और ‘आधार कार्ड’ जैसे कार्ड हम समझ नहीं पाते. इससे क्या फ़ायदा होगा, नहीं जानते. लेकिन, घाटा (बेटी की मौत) तो हो चुका है.

संतोषी की मौत के बाद क्या हुआ

कोयली देवी झोपड़ी में रहती हैं. इसके बगल में इमली का पेड़ है. उसकी छाया के नीचे बिछी चटाई पर वह हमसे मुख़ातिब थीं लेकिन उसका फल उन्हें नसीब नहीं. वह इमली का पेड़ उनका नहीं है. पहले जब उनके पति बाजा बजाते थे, तब महाजनों ने उन्हें इनाम में यह पेड़ दिया. अब वे बाजा नहीं बजा पाते तो इसका फल भी पेड़ का मालिक ले जाता है.

उनकी झोपड़ी के बगल में उनके जेठ पोती नायक की भी छोपड़ी है. वह और खराब हालत में हैं. उनके छह बच्चे हैं, जिनमे से एक बेटी की शादी हो चुकी है.

‘आधार’ की अनिवार्यता के मारे इस परिवार में सरकारी सुविधा के नाम पर एक छोटा-सा शौचालय है, जो स्वच्छता अभियान के ‘स्मारक’ के बतौर खड़ा है.

संतोषी की मौत के बाद प्रशासन यहां के लोगों को मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलाने रांची ले गया था.

तब मुख्यमंत्री ने कहा था कि गांव वालों को अगरबत्ती और मोमबत्ती बनाने का प्रशिक्षण मिलेगा. उसकी बिक्री भी करायी जाएगी. ग्रामीणों को बकरी और सूअर पालन की योजनाएं दी जाएंगी.

अब एक साल बाद भी गांव में इन आश्वासनों पर कोई अमल नहीं हुआ है. पहचान गुप्त रखने की शर्त पर एक महिला ने बताया कि मोमबत्ती-अगरबत्ती वाला ठेकेदार भाग गया. वहां ताला बंद है. सरकार ने हमारे लिए कुछ नहीं किया.

इस गांव के सभी लोगों का आधार कार्ड बन गया और एक ट्रांसफ़ार्मर लगा है. संतोषी की मौत ने सिर्फ़ यही परिवर्तन किया है.

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