देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रविवार को छात्र संघ चुनावों के नतीजे घोषित किए गए जिसमें केंद्रीय पैनल की सभी चार सीटों पर वामपंथी दलों के उम्मीदवारों ने भारी अंतर से जीत दर्ज की.
इस चुनाव में दो छात्राओं सारिका चौधरी ने उपाध्यक्ष के पद पर और अमुथा ने ज्वॉइंट सेक्रेटरी के पद पर भारी अंतर से जीत हासिल की है.
ये पहला मौका नहीं है जब जेएनयू के चुनावों में महिला नेताओं ने अपना परचम लहराया हो.
लेकिन जीत की घोषणा के बाद जेएनयू के तमाम ढाबों से लेकर पगडंडियों से गुजरती महिलाओं से बात करें तो पता चलता है कि इस चुनाव के नतीजे इतने ख़ास क्यों हैं.
महिलाओं के लिए ख़ास क्यों है ये जीत?
जेएनयू में पढ़ने वाली तमाम छात्राओं के लिए ये एक व्यक्तिगत जीत है क्योंकि जेएनयू बीते एक साल से लैंगिक समानता से संबंधित आंदोलनों के लिए चर्चा में रहा है.
ऐसे सभी आंदोलनों में महिला छात्र आगे बढ़कर अपने हक़ों के लिए जंग लड़ रही हैं.
इनमें जेएनयू में यौन उत्पीड़न के मामलों की जांच करने वाली संस्था जीएसकैश को बंद किया जाना शामिल है. जीएसकैश साल 1999 से काम कर रही थी.
जीएसकैश को हटाए जाने के बाद जेएनयू शिक्षकों से लेकर छात्राओं तक- सभी ने दिन-रात इसका विरोध किया.
ऐसे में सवाल उठता है कि वामपंथी दलों की इस धमाकेदार जीत से महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर क्या असर पड़ेगा.
जेएनयू छात्रसंघ की पूर्व अध्यक्ष गीता कुमारी कहती हैं कि बीते कुछ समय से छात्राएं जेएनयू में अपना स्पेस बचाने की जंग लड़ रही थीं और ये चुनावी नतीजे इस लड़ाई में जेएनयू के छात्रों की एकजुटता का प्रतीक हैं.
गीता बताती हैं, "जेएनयू के प्रोफेसर जोहरी से लेकर प्रोफ़ेसर लामा से जुड़े मामलों में महिलाओं ने खुलकर विरोध किया. लेकिन एबीवीपी और यूनिवर्सिटी प्रशासन ने एक अलग ही कहानी गढ़ने की कोशिश की. इससे महिला छात्रों के बीच एक तरह का भाव पैदा हुआ कि प्रशासन और एबीवीपी उनको दीवारों में कैद करने की कोशिश कर रहा है और उन्होंने इस चुनाव के नतीजों से ऐसी कोशिशों को कड़ा जवाब दिया है."
बीते साल जेएनयू की छात्राओं ने प्रोफेसर अतुल जोहरी और प्रोफेसर महेंद्र पी लामा के ख़िलाफ़ यौन शोषण के आरोप लगाए गए थे.
जेएनयू की इंटरनल कंपलेंट कमेटी ने इन मामलों की जांच करके महेंद्र पी लामा को क्लीन चिट दे दी जिसका जेएनयू की छात्राओं ने विरोध किया.
यौन उत्पीड़न के इन मामलों के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने भी यूनिवर्सिटी प्रशासन को परिसर में महिलाओं को सुरक्षित माहौल न देने पर लताड़ा था.
‘जेएनयू’ के लिए खड़ी हुईं महिलाएं
गीता बताती हैं कि इस साल स्कूल ऑफ लाइफ साइंस में पढ़ने वाली छात्राओं ने भी लेफ़्ट के समर्थन में मतदान किया है जोकि अपने आप में ख़ास है क्योंकि इस स्कूल को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का गढ़ माना जाता है.
गीता इस बदलाव को समझाते हुए कहती हैं, "प्रोफेसर जौहरी और लामा के मामले में जिन छात्राओं ने शिकायत दर्ज कराई थी उन्होंने खुद कहा था कि वे एबीवीपी का समर्थन करती थीं. इसके बावजूद एबीवीपी ने जौहरी का समर्थन किया और छात्राओं के खिलाफ़ अफवाहें उड़वाई गईं."
"इस वजह से महिलाओं में एबीवीपी के प्रति गुस्से का माहौल था और महिलाओं ने बढ़-चढ़कर मतदान किया. इसका नतीजा ये हुआ कि एक को छोड़कर सभी साइंस स्कूलों में लेफ़्ट के उम्मीदवारों को जीत दिलवाई है."
हाल ही में जेएनयू की दीवारों पर कुछ पोस्टर नज़र आए थे जिसमें कथित रूप से एबीवीपी के हवाले से ये कहा गया था कि चुनाव जीतने के बाद महिलाओं के यौन शोषण को रोकने के लिए छोटे कपड़ों पर प्रतिबंध लगाया जाएगा.
हालांकि, एबीपीवी के सदस्यों ने इसे वामपंथी पार्टियों का दुष्प्रचार करार दिया था.
‘ये जेएनयू की महिलाओं की जीत है’
जेएनयू की पूर्व छात्रा रहीं सुकंदा बताती हैं कि ये एक तरह से जेएनयू में पढ़ने वाली लड़कियों की जीत है.
वह बताती हैं, "जेएनयू छात्राओं के लिए ये एक बहुत बड़ी जीत है क्योंकि पिछला पूरा साल जेएनयू में एक जेंडर मूवमेंट चला है. पहली बात तो पिछले साल चुनाव के तुरंत बाद जेएनयू का जीएसकैश बंद करके इंटरनल कंपलेंट कमेटी को शुरू कर दिया गया था जिसके सदस्यों को चुनाव प्रक्रिया से नहीं चुना जाता है. इसके बाद प्रोफ़ेसर अतुल जोहरी के मामले में दो सेमेस्टर तक जेएनयू की महिलाओं ने आंदोलन किया."
सुकंदा मानती हैं कि अभी जेएनयू में महिलाओं ने आगे बढ़कर अपनी बात को चुनाव नतीजों में बदला है लेकिन अभी देश के 61 दूसरे विश्वविद्यालयों में भी यही करना है.
ये भी पढ़ें –
- जेएनयू छात्र संघ चुनाव का LGBTQI चेहरा
- विवादों के आईने में जेएनयू छात्र उमर ख़ालिद
- जेएनयू में ‘इस्लामी चरमपंथ’ कोर्स की क्या है हक़ीक़त?
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
]]>