<p>"मुझे बचपन से विषकन्या कहा गया, थोड़ा अजीब भी लगता था, लेकिन फिर हँसी में उड़ा देती थी. अक्सर कुछ दोस्त झगड़ा होने के बाद परिवार के बारे में उल्टी-सीधी बातें करते थे. मैं तब भी हँसी में उड़ा देती थी और आज भी उड़ा देती हूं."</p><p>ये कहना है रामनगर में रहने वाली ज्योति कश्यप का, जिनका परिवार साँपों को बचाने की मुहिम में बरसों से लगा हुआ है.</p><p>अपने पिता और भाई की तरह ज्योति को भी साँपों से डर नहीं लगता है. </p><h1>विषकन्या का दंश</h1><p>ज्योति के पिता चंद्रसेन कश्यप अपनी बेटी को विषकन्या कहे जाने के बारे में बताते हैं, "कुछ बरस पहले जब हमारे पास साँप पकड़ने के बाद उन्हें रखने के लिए कोई जगह नहीं थी तो साँप घर में डिब्बों में रखे रहते थे. ऐसे में एक दिन एक लंबा अजगर (पायथन) घर में रखा हुआ था और मेरी बिटिया उसे गले में लेकर घूमने लगी." </p><p>"जब लोगों ने देखा तो वे हैरान रह गए और देखा-देखी किसी ने तस्वीर ले ली. फ़िर अख़बार में छप गया कि मेरी बेटी विषकन्या है. इसके बाद मनोहर कहानियाँ नाम की पत्रिका में भी मेरी बेटी की कहानी छपी."</p><p>इस घटना के बाद ज्योति के घर पर लगे लैंडलाइन फोन पर कई लोगों के फ़ोन आना शुरू हो गए. ये लोग विषकन्या से बात करना चाहते थे और उसके बारे में जानना चाहते थे. </p><p>चंद्रसेन कश्यप कहते हैं, "ये सब इतना परेशान करने वाला था कि पूछिए मत. मैंने लोगों के हाथ जोड़े और मिन्नतें की. मैंने लोगों को समझाने की कोशिश की कि मेरी बेटी कोई विषकन्या या नागकन्या नहीं है."</p><hr /><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-39958049">सांप को पप्पी लेने की कोशिश की और…. </a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-38555422">जब विमान में निकल आया सांप</a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-39430959">अजगर से पेट से निकला 25 साल का अकबर</a></p><hr /><p><strong>विषकन्या वाली ख़बर</strong><strong> का असर</strong></p><p>अख़बारों और पत्रिकाओं में विषकन्या से जुड़ी ख़बरों के छपने के बाद लोगों ने सामान्य तौर पर ज्योति को इस उपनाम से बुलाना शुरू कर दिया. </p><p>जो उपनाम अब तक कश्यप परिवार की गली तक सीमित था वो इन ख़बरों के बाद दूर-दूर तक फैल चुका था. </p><p>बचपन से ही जानवरों से प्यार करने वाली ज्योति की ज़िंदगी इस ख़बर ने इस क़दर बदली कि उनके पिता चंद्रसेन कश्यप ने उन्हें सांपों से दूर रहने की हिदायत दे दी. </p><p>ज्योति बताती हैं, "मुझे पापा ने कभी किसी के घर में कोई साँप पकड़ने नहीं दिया, मुझे इस सब से दूर कर दिया गया. लोगों ने मेरे गले में साँप देखा और नागकन्या कहना शुरू कर दिया. मुझे लोग जानने लगे, लेकिन मेरे व्यक्तित्व में और भी ख़ूबियां थीं जिनकी वजह से मैं पॉपुलर हो सकती थी. लेकिन विषकन्या उपनाम ने कभी मेरा पीछा नहीं छोड़ा. मैं अब एक स्कूल में पढ़ाती हूँ और बच्चों को ट्यूशन देती हूं. मैं एक टीचर बनना चाहती हूँ, लेकिन इस सबसे पहले मैं एक ऐनिमल लवर (पशुप्रेमी) हूँ."</p><h1>समाज की नज़र और पिता का दर्द</h1><p>आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर और अपनी मुहिम के चलते सामाजिक तिरस्कार झेल चुके चँद्रसेन कश्यप के लिए बेटी को विषकन्या कहा जाना बेहद दुख पहुंचाने वाला था. </p><p>चँद्रसेन कहते हैं, "मुझे लोग ज़हरीला कहते आए हैं, वे मेरे साथ चाय पीने और खाना खाने से बचते हैं क्योंकि लोगों का मानना है कि मेरे ख़ून में ज़हर मिला हुआ है और इसी वजह से मैं साँप के काटने की वजह से मरता नहीं हूँ. जब मैंने ये अपने बारे में सुना तब तो ठीक था, लेकिन जब बेटी के बारे में सुना तो मेरे होश उड़ गए. हम सामान्य लोग हैं. लोग विषकन्या या नागकन्या कहेंगे तो बिटिया के लिए घरद्वार कैसे देखेंगे? ये सब सोचकर मैंने न चाहते हुए भी बिटिया को इस सबसे दूर कर दिया."</p><p>उत्तराखंड में रहने वाले चँद्रसेन कश्यप का परिवेश वैसा नगरीय नहीं है जहां लोग तथ्यों की जाँच करें और फिर राय बनाएं. उनका कहना है कि लोग सुनी-सुनाई बात को सच मान लेते हैं और उसी आधार पर अपनी राय बना लेते हैं.</p><p>हालांकि, ऐसी स्थिति में उत्तराखंड वन विभाग चँद्रसेन के परिवार के साथ खड़ा दिखाई देता है. </p><p>पश्चिमी वन प्रभाग के वन संरक्षक डॉक्टर पराग मधुकर बताते हैं, "चँद्रसेन कश्यप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. इसमें सभी लोगों का फ़ायदा है. विशेषत: वन और वनों के आसपास रहने वाले लोग इससे काफ़ी लाभान्वित होते हैं. ऐसे में लोगों को ऐसी अफ़वाहों से बचना चाहिए."</p><p><strong>'</strong><strong>निगेटिव बातें सुनने का वक़्त कहां</strong><strong>'</strong></p><p>अपने पिता के उलट ज्योति ऐसे उपनामों को लेकर ज़्यादा चिंतित नज़र नहीं आती हैं. </p><p>वह सकारात्मक रुख के साथ कहती हैं, "बचपन में जब मेरे स्कूल में साँप निकल आता था तो मुझे लगता था कि मैं पकड़ लूँ, लेकिन मुझे कोई पकड़ने नहीं देता था क्योंकि सभी लोग मेरे पापा से डरते थे. लोगों ने मुझे विषकन्या के रूप में प्रचारित कर दिया. मेरे व्यक्तित्व के और भी कई पहलू थे, लेकिन उन्होंने सिर्फ साँप पकड़ने की ख़ूबी देखी. आज भी घर पर कभी-कभी फोन आते हैं और लोग बोलते हैं – "हलो, सपेरे बोल रहे हो?…" </p><p>ज्योति कहती हैं, ”ऐसे फ़ोन आने पर भाई को बुरा लगता है क्योंकि लोग उनके काम की ग़लत व्याख्या कर रहे हैं. लेकिन मैं ऐसी टिप्पणियों पर हँसने लगती हूं, आप इस सब को गंभीरता से कैसे ले सकते हैं. इसलिए हँसी में उड़ा देती हूँ." </p><p><strong>ये भी पढ़िए: </strong></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44396881">सांप का सिर काट दिया, फिर भी सांप ने डँस लिया</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें</strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi"> फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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वो लड़की जिसे लोग विषकन्या कहते हैं
<p>"मुझे बचपन से विषकन्या कहा गया, थोड़ा अजीब भी लगता था, लेकिन फिर हँसी में उड़ा देती थी. अक्सर कुछ दोस्त झगड़ा होने के बाद परिवार के बारे में उल्टी-सीधी बातें करते थे. मैं तब भी हँसी में उड़ा देती थी और आज भी उड़ा देती हूं."</p><p>ये कहना है रामनगर में रहने वाली ज्योति कश्यप […]
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