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तेलंगानाः 700 साल लगे सपना साकार होने में

गौतम पिंगले बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए तेलंगाना देश के लिए एक पहेली जैसा बन गया है. यह कहां है? कहां से आया? कैसे बना? इससे क्या होने जा रहा है? भारत के लिए इसका क्या मतलब है? तेलंगाना भारत के दक्कन के पठार के केंद्र में स्थित है और यह उत्तर और दक्षिण […]

तेलंगाना देश के लिए एक पहेली जैसा बन गया है. यह कहां है? कहां से आया? कैसे बना? इससे क्या होने जा रहा है? भारत के लिए इसका क्या मतलब है?

तेलंगाना भारत के दक्कन के पठार के केंद्र में स्थित है और यह उत्तर और दक्षिण भारत को बांटता है. इसके उत्तर में गोदावरी और दक्षिण में कृष्णा नदी है. यदि ये दोनों नदियां आपस में जुड़ जातीं तो तेलंगाना एक सूखे क्षेत्र की बजाय वास्तविक दोआब क्षेत्र बन जाता.

सन् 1323 में दिल्ली के सुल्तान द्वारा जीते जाने के पहले यहां काकतिया राजाओं की हुक़ूमत थी.और इसके बाद से ही इस पर मुसलमान शासकों –बहमनी और गोलकुंडा सुल्तान और एक छोटे से समय के लिए औरंगज़ेब – की हुक़ूमत रही. सन् 1724 से लेकर 1950 तक इस भूभाग पर हैदराबाद के निज़ाम का शासन रहा.

कुछ ऐसा होगा तेलंगाना

लगभग 627 वर्षों तक तेलंगाना की हिंदू आबादी ने मुसलमान शासन के साथ उस तनाव के बावजूद सापेक्षिक शांति के साथ जीने का तरीका ढूंढ लिया था, जो एक धर्म के शासकों द्वारा दूसरे धर्म के लोगों पर शासन किए जाने से उपजता है.

भाषा और धार्मिक एकता के आधार पर सन् 1956 में तेलंगाना को आंध्र प्रदेश राज्य का अंग बना दिया गया. सोचा यह गया था कि आंध्र प्रदेश में चीज़ें अधिक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष और बराबरी वाली होंगी. तेलंगाना अविकसित था और निज़ाम के शासनकाल में उस पर करों का भारी बोझ था, जबकि ब्रितानी हुक़ूमत के अंतर्गत आंध्र अधिक संपन्न, शिक्षित और अच्छा खासा विकसित क्षेत्र था.

हैदराबाद

आंध्र प्रदेश के पास कोई शहर नहीं था, जबकि तेलंगाना की राजधानी, हैदराबाद शहर, भारत का पांचवाँ सबसे बड़ा शहर था.

हैदाराबाद में और इसके आसपास दक्कनी संस्कृति और तहज़ीब फली-फूली, जो लखनऊ की तरह थी. निज़ाम का शासन ख़त्म होने के बाद शिक्षित, प्रतिभावान और पहले के शासक वर्ग के शक्तिहीन हो चुके मुसलमानों ने पाकिस्तान, ब्रिटेन और अमरीका में शरण ली. इसके साथ ही हैदराबाद में नवाबी रहन-सहन के ढलने की शुरुआत हो गई.

संसदीय इतिहास से एक दिन ग़ायब होने के मायने

हैदराबाद में आंध्र प्रदेश के संभ्रांत वर्ग का बोलबाला हो गया, जबकि तेलंगाना के कुलीन और सामान्य लोगों की हैसियत दूसरी श्रेणी के नागरिकों जैसी हो गई.

निज़ाम के समय में ही तेलंगाना के लोग और इसका संभ्रांत तबका इन सबका आदी हो चुका था, लेकिन अब यही सब उस राज्य में हो रहा था जो तेलुगु एकता और बराबरी के नाम पर अस्तित्व में आया था.

अन्याय और भेदभाव के ख़िलाफ़ प्रदर्शनों ने साल 1969 में एक विस्फोटक रूप ले लिया. तेलंगाना राज्य के लिए शांति पूर्ण प्रदर्शन हुआ जिसे बलपूर्वक दबा दिया गया, पुलिस की गोली से लगभग 300 छात्र मारे गए.

कांग्रेस की राजनीति बदल गई और 1971 में पीवी नरसिम्हा राव को मुख्यमंत्री बनाया गया. यह पहला ऐसा मौका था जब तेलंगाना मूल का नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा.

आंध्रवासियों को यह पसंद नहीं आया और 1973 में उन्होंने अलग आंध्र राज्य की मांग के लिए हिंसात्मक प्रदर्शन शुरू कर दिया.

कांग्रेस की राजनीति फिर से बदली और पीवी नरसिम्हा राव को दिल्ली भेज दिया गया.

तेलंगाना गठन के विरोध में आंध्र में बंद

पहले के प्रदर्शनों के दौरान तेलंगानों को मिली क़ानूनों और नियमों की ढाल को छीन लिया गया. तेलंगाना के काफी असंतुष्ट लोग अमरीका और ब्रिटेन में पलायन कर गए, जबकि कुछ लोगों का नक्सलवाद की ओर झुकाव हो गया.

1983 से 2014

तेलंगाना में 1983 तक असंतोष खदबदाता रहा. इसी समय आंध्र के फ़िल्म अभिनेता एन टी रामा राव ने ‘तेलुगु स्वाभिमान’ को स्थापित करने का नारा दिया. न्याय और बराबरी की उम्मीद में तेलंगाना ने पहली बार तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के पक्ष में भारी मतदान कर कांग्रेस को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

लेकिन इससे कुछ भी नहीं बदला. 21 वर्षों तक कांग्रेस और तेलुगु देशम पार्टी बारी बारी से सत्ता में आई और इन्होंने तेलंगाना के लिए कुछ नहीं किया तो सन् 2004 में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के नेतृत्व में फिर से तेलंगाना आंदोलन शुरू हुआ.

तेलंगाना राज्य की मांग को लेकर जब 631 युवाओँ ने आत्महत्या की तब जाकर 2009 में अलग राज्य की मांग मानने का वादा किया गया, लेकिन यह 2014 में अस्तित्व में आया.

2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों में टीआरएस अकेले उतरी और उसे भारी सफलता मिली.

सात सौ सालों में पहली बार चार करोड़ तेलंगानावासियों की अपनी सरकार बनने जा रही है. टीआरएस ने युवाओं, किसानों और सरकारी कर्मचारियों के साथ हुए अन्याय और ग़ैरबराबरी को पलटने का वादा किया है. तेलंगाना के विकास के लिए इसकी कई महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं.

‘ठेकेदारनुमा नेता नहीं चाहते तेलंगाना बने’

बहुत सारे आंध्र निवासी हैदराबाद और तेलंगाना में बसे हुए हैं और तेलंगाना सरकार के शासन में रहने और काम करने को लेकर उनके मन में एक प्रकार का डर है क्योंकि स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित सरकारी नौकरियों और शिक्षण क्षेत्र में अवसरों पर उनका कब्ज़ा है.

नेताओं की मिलीभगत से आंध्र प्रदेश के कुछ पूँजीपतियों ने ग़ैरक़ानूनी रूप से हैदराबाद और आसपास की सरकारी, मंदिर और दरगाह की ज़मीनों पर कब्ज़ा कर रखा है.

चुनौतियां

कृष्णा और गोदावरी के पानी के मार्ग को तेलंगाना से आंध्र की ओर मोड़ा जाता रहा है, जबकि तेलंगाना में इन नदियों का बहुत बड़ा भूभाग आता है.

जो कुछ भी तेलंगाना को मिला है वो है हैदराबाद शहर- एक ऐसा शहर जिसे पानी, बिजली, जल निकासी, सड़क और क़ानून-व्यवस्था की ज़रूरत है.

देश के 13वें सबसे बड़े इस नए राज्य के लिए हैदराबाद विकास के इंजन की भूमिका निभाएगा.

तेलंगाना: सियासी नफ़ा नुकसान का गणित

अतीत में, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल, मणिपुर, त्रिपुरा, सिक्किम, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड अलग किए जा चुके हैं और राज्य बन चुके हैं.

विदर्भ, मराठवाड़ा, बुंदेलखंड, पूर्वांचल, अवध, पश्चिम प्रदेश और बोडोलैंड को अलग राज्य बनाने की मांग अभी क़तार में है.

इसी सूची में हैदराबाद-कर्नाटक, सौराष्ट्र-कच्छ, जम्मू, लद्दाख का नाम भी जुड़ने की संभावना है. सभी को लगता है कि राज्य ही उनकी समस्याओं का समाधान है. इनके अलावा और कई पिछड़े इलाके हैं जो ये सोचते हैं कि अलग राज्य ही विकास और आत्मसम्मान की ओर जाना वाला रास्ता है.

हो सकता है कि भारत में जल्द ही 50 राज्य हो जाएं. यह कोई बुरी बात नहीं है, यह गणराज्य को और मज़बूत ही करेगा.

(गौतम पिंगले ‘द फॉल एंड राइज़ ऑफ़ तेलंगाना’ के लेखक हैं.)

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