छत्तीसगढ़ की पिछले 14 साल की यात्रा की दशा और दिशा को समझने की कोई भी कोशिश आपको उलझा सकती है. आंकड़े राज्य की ऐसी कहानी कहते हैं, जहां हरेक निष्कर्ष एक प्रश्नवाचक चिह्न की तरह सामने आ कर खड़ा होता है.
राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी से इन 14 सालों की उपलब्धियों का ज़िक्र करें तो वो पूरे भारतीय परिदृश्य में छोटे राज्यों के गठन के फायदे बताते हैं.
लेकिन वह इस बात का उल्लेख करना नहीं भूलते कि छत्तीसगढ़ में तीन साल के उनके कार्यकाल के बाद उन आदिवासियों की स्थिति ख़राब हुई है, जिनके नाम पर यह छत्तीसगढ़ बना था.
नक्सली समस्या
राज्य बनने के बाद से छत्तीसगढ़ की आबादी में 10 साल की वृद्धि दर 22.61 फ़ीसदी रही है, लेकिन आदिवासी बहुल बस्तर के कांकेर ज़िले में यह वृद्धि 13.63 फ़ीसदी, दंतेवाड़ा में 11.89 फ़ीसदी, जशपुर में 12.93 फ़ीसदी और बीजापुर में केवल 7.57 फ़ीसदी रही है.
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अजीत जोगी बीबीसी से बातचीत में कहते हैं, “आदिवासी हाशिए पर गया है. इसके अलावा जो नक्सलवाद राज्य के कुछ हिस्से तक सीमित था, आज उसने राज्य के दो तिहाई हिस्से को अपने क़ब्ज़े में ले लिया है. शुरू के तीन साल छोड़ दें तो राज्य के विकास की एक सम्यक नीति बनी ही नहीं.”
लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह के पास एक दूसरी सूची भी है.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह उन गिने-चुने नेताओं में से हैं, जिन्हें छत्तीसगढ़ के विकास के सैकड़ों आंकड़े मुंहज़बानी याद हैं.
कैसे पिछले दस वर्षों के दौरान राज्य की औसत आर्थिक विकास दर 8.7 प्रतिशत रही है, जबकि इसी अवधि में राष्ट्रीय विकास दर 7.5 प्रतिशत दर्ज की गई. किस तरह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीएसडीपी में छत्तीसगढ़ के कृषि क्षेत्र का योगदान 21 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह केवल 14 प्रतिशत है.
विकास
मुख्यमंत्री रमन सिंह बताते हैं कि “स्वास्थ्य सूचकांक में वर्ष 2000 से 2008 की अवधि में छत्तीसगढ़ ने देश के बड़े राज्यों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 22 प्रतिशत की वृद्धि की है, जबकि इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य सूचकांक में 13 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई है. इसी अवधि में शिक्षा सूचकांक में राज्य में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है.”
उनके पास यह आंकड़ा भी है कि छत्तीसगढ़ में 1999 से 2012 की अवधि में बच्चों में कुपोषण दर में 20 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि इसी अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर बाल कुपोषण दर में 9.7 प्रतिशत की कमी हुई है. इस प्रकार बच्चों में कुपोषण की दर वर्ष 1998-99 में 53.2 प्रतिशत से घटकर अब करीब 47 प्रतिशत रह गई है.
वो कहते हैं कि शिशु मृत्यु दर में कमी की दृष्टि से भी छत्तीसगढ़ का प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर से बेहतर है. छत्तीसगढ़ में 1999 से 2012 की अवधि में शिशु मृत्यु दर में 48 प्रतिशत की कमी आई है.
वर्ष 1999 में यहां शिशु मृत्युदर 90 थी, जो कम होकर 47 प्रतिशत हो गई है. इस अवधि में प्रदेश में मातृ मृत्यु अनुपात में 177 अंकों की गिरावट आई है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 149 अंकों की कमी आई है. प्रदेश में वर्ष 1999-2001 में मातृ मृत्यु अनुपात 407 से घटकर वर्ष 2010-12 में 230 रह गई है.
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रमन सिंह इस बात का दावा ज़रूर करते हैं कि परिवारों को बिजली उपलब्ध कराने में छत्तीसगढ़ देश में सबसे आगे है.
छत्तीसगढ़ में बिजली आपूर्ति की दर 75 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह 67 प्रतिशत ही है.
भयावह आंकड़े
लेकिन ठहरिये. छत्तीसगढ़ कृषक बिरादरी के आनंद मिश्रा के पास इससे उलट कुछ भयावह आंकड़े भी हैं.
आनंद मिश्रा कहते हैं, “जब राज्य बना था, तब छत्तीसगढ़ में किसानों की संख्या 44.54 प्रतिशत थी. आज यह घट कर 32.88 प्रतिशत रह गई है. राज्य में 31.94 प्रतिशत मज़दूर हुआ करते थे, जिनकी संख्या बढ़ कर आज 41.80 प्रतिशत हो गई है. अगर आप इसे विकास कहते हैं तो माफ करें, आपको अपने लिए विकास की नई परिभाषा तय करनी पड़ेगी.”
मज़दूर नेता नंद कश्यप के पास भी ऐसे आंकड़ों की लंबी सूची है, जिससे वे इस बात को स्थापित करने की पूरी कोशिश करते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने का लाभ राज्य की जनता को नहीं मिला.
नंद कश्यप का कहना है कि जब राज्य बना था, तब 17 लाख परिवार गरीबी रेखा से नीचे थे. आज छत्तीसगढ़ में 65 लाख परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं. इतने सालों में आबादी केवल 22.61 प्रतिशत बढ़ी और गरीबी लगभग 400 प्रतिशत.
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गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय में राजनीतिशास्त्र की विभागाध्यक्ष डॉक्टर अनुपमा सक्सेना आर्थिक विकास के विभिन्न मानकों पर छत्तीसगढ़ की स्थिति को बहुत ही बेहतर मानती हैं. 2012 के आंकड़ों के आधार पर राज्य की औद्योगिक वृद्धि 43.5 है. छत्तीसगढ़ में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 36.67 प्रतिशत है, जबकि इसी दौर में मध्यप्रदेश में यह 47.4 प्रतिशत है.
हालांकि वह यह भी कहती हैं कि पिछले 10 सालों में जिस मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना था, उसमें ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या में 12 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि छत्तीसगढ़ में यह बढ़ गया है.
क्या खोया, क्या पाया
अनुपमा सक्सेना कहती हैं, “छत्तीसगढ़ में औद्योगिकीकरण की वजह से ग्रामीण इलाकों में लोगों के पास जो जीवनयापन के साधन थे, वो छिने हैं. इसलिए राज्य में ग़रीबी बढ़ी है.”
वो आगे कहती हैं, "ग़रीबों पर इसका असर न पड़े, इसलिए राज्य सरकार ने सेफ़्टी नेट के तौर पर जनवितरण प्रणाली या मनरेगा को बेहतर तरीके से लागू किया है. यही कारण है कि लोगों पर गरीबी का असर उस तरह से नज़र नहीं आ रहा है, लेकिन इस तात्कालिक राहत को आप विकास नहीं कह सकते.”
बस्तर के आदिवासी नेता और आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय महासचिव मनीष कुंजाम छत्तीसगढ़ राज्य की हालत पर गंभीर चिंता जताते हैं. कुंजाम कहते हैं- “ना-ना…कोई लाभ नहीं हुआ. मध्यप्रदेश था तो कम से कम आदिवासी के हिस्से उसकी अपनी ज़िंदगी तो थी. उस तरह से जीवन में हस्तक्षेप तो नहीं था. अब तो आदिवासी लूटा जा रहा है, मारा जा रहा है.”
रायपुर से लगभग 24 किलोमीटर दूर नया रायपुर विकसित हो रहा है. पुराने रायपुर से नया रायपुर की ओर जाने वाली सड़क पर कई शॉपिंग मॉल खुल गए हैं. 24 किलोमीटर तक चमचमाती सड़कें, सरकारी दफ्तर, शानदार क्रिकेट स्टेडियम और बड़े से मंत्रालय वाले इस नए रायपुर की चमक देखते ही बनती है.
ज़ाहिर है, पुराने रायपुर की तंग गलियों और बेतरतीब बसावट की तुलना में नया रायपुर बिल्कुल अलग है. ये और बात है कि अभी नए रायपुर में आम जनता नहीं रहती. यहां केवल मंत्री-संतरी और बड़े अफसरों का काम होता है.
इसी नए रायपुर में मंत्रालय के ठीक सामने, मंत्रालय का भवन देखने आए अभनपुर के एक बुज़ुर्ग भीमनाथ देवांगन से छत्तीसगढ़ी में पूछता हूं- “इन 12-14 सालों में रायपुर में कोई बदलाव आया क्या?”
वे पलट कर पूछते हैं- “नया रायपुर कि पुराना रायपुर? किसका रायपुर?”
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