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विंसेंट वॉन गॉग का चित्र ”आलू खाते लोग”

अशोक भौमिक, चित्रकार पाश्चात्य चित्रकला इतिहास के प्रमुख चित्रकारों में से एक वॉन गॉग की कला ने अपने और अपने बाद के समय के अनेक कलाकारों को प्रभावित किया. कला-इतिहास में जो विशिष्ट स्थान विंसेंट वॉन गॉग का है, उनके बनाये चित्रों में ‘आलू खानेवाले’ का भी उतना ही महत्वपूर्ण स्थान है. सन् 1886 में […]

अशोक भौमिक, चित्रकार

पाश्चात्य चित्रकला इतिहास के प्रमुख चित्रकारों में से एक वॉन गॉग की कला ने अपने और अपने बाद के समय के अनेक कलाकारों को प्रभावित किया.

कला-इतिहास में जो विशिष्ट स्थान विंसेंट वॉन गॉग का है, उनके बनाये चित्रों में ‘आलू खानेवाले’ का भी उतना ही महत्वपूर्ण स्थान है. सन् 1886 में बनाये इस चित्र को गॉग ने अपना सबसे सफल चित्र माना था. उन्होंने इस चित्र के विषय में कहा था कि इसके लिए जान-बूझकर उन्होंने रूखे-सूखे लोगों को ‘मॉडल’ बनाया था, ताकि किसानों की जिंदगी के यथार्थ को सही-सही दिखा सके. वे चित्र-दर्शकों को किसानों की मेहनत के बारे में परिचित करना चाहते थे, इसी उद्देश्य से उन्होंने इस चित्र को बनाया था.
चित्र में हम एक लालटेन की रोशनी में पांच लोगों को खाने की मेज पर बैठे देखते हैं. वॉन गॉग ने इस चित्र में इन आलू खाते हुए लोगों का चित्रण करते हुए यह रेखांकित किया है कि ये लोग इतने गरीब हैं कि भोजन में उबले हुए आलू और चाय के अतरिक्त कुछ और खाना इनके साध्य में नहीं है.
चित्र में प्रकाश स्रोत के रूप में केवल एक लालटेन की रोशनी ही है, जिसके कारण लोगों के चेहरों पर एक उदासी का भाव ठहरा हुआ लगता है. खाने की मेज के ऊपरी हिस्से के साथ-साथ, कमरे की दीवारों और छत को भी इसी लालटेन की रोशनी ने ही प्रकाशित किया है, जिससे हमें कमरे के अंदर के घुटन का एहसास होता है. लालटेन से दूर जाते हुए रोशनी का मद्धिम होना और उसके कारण चित्र में प्रकाश का नाटकीय विस्तार, इस चित्र की बड़ी विशेषता है.
कमरे के इस एक मात्र प्रकाश स्रोत यानी लालटेन की रोशनी से ही हम मेज पर बैठे लोगों के चेहरों की बनावट को देखते हैं. साथ ही कांटा-चम्मच (फोर्क) को पकड़े हुए उनके हाथों को और उनके कपड़ों को भी देखते हैं. इस रोशनी के चलते ही हम उन गरीब मेहनतकश मजदूरों से परिचित होते हैं और उनके चेहरों की बेबसी को समझ पाते हैं. इन लोगों के बारे में वॉन गॉग ने लिखा था कि इन हाथों से वे मेहनत करते हैं, जमीन तोड़ते हैं, जिन्हें मैंने चित्र में आलू खाते दिखाया है.
चित्र के केंद्र में हम इस प्रकाश का एक और नायाब प्रयोग देखते हैं. उबले हुए आलू से उठते भाप को चित्रकार ने इसी रोशनी से प्रकाशित किया है और चित्र में पीठ पीछे की हुई बच्ची के शरीर को उसकी पृष्ठभूमि से अलग किया है.
चित्र में वॉन गॉग ने बहुत ही सीमित रंगों का प्रयोग किया है, जिसके चलते चित्र एकवर्णी (मोनोक्रोमेटिक) सा लगता है. बावजूद इन सीमित रंगों के चित्र में अद्भुत स्पेस का निर्माण हुआ है. चित्र के एकदम बीच में पांचों लोगों द्वारा बनाये गये मेज पर एक गोलाकार स्पेस को हम महसूस कर सकते हैं, जिसके ऊपर लालटेन लटक रही है. वहीं दूसरा स्पेस लोगों की पीठ और कमरे की दीवारों के बीच दिखता है, जिसका विस्तार छत तक है. चित्रकार विंसेंट वॉन गॉग की प्रतिभा को समझने के लिए यह शायद सबसे महत्वपूर्ण चित्र है.
चित्रकार विंसेंट वॉन गॉग (1853-1890) की गिनती, पाश्चात्य चित्रकला इतिहास के प्रमुख चित्रकारों में से एक के रूप में होती है, जिनकी कला ने अपने और अपने बाद के समय के अनेक कलाकारों को प्रभावित किया. मात्र दस वर्षों के दौरान उन्होंने दो हजार से ज्यादा चित्र बनाये थे, जिसमें 860 तैल चित्र शामिल हैं, जिसमें से अधिकतर चित्र उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दो वर्षों में बनाये थे. रंगों का चयन और उनके प्रयोग करने की उनकी अपनी विशिष्ट शैली को हम ‘यूरोपीय आधुनिक चित्रकला’ की नींव के रूप में देख सकते हैं. अपने जीवन काल में उन्हें चित्रकार के रूप में कोई भी सफलता नहीं मिली, पर बीसवीं सदी के आरंभ से ही वॉन गॉग के चित्रों को व्यापक प्रसिद्धि मिलने लगी और देश-विदेश के चित्रकारों को उनके चित्रों ने प्रभावित किया.
वॉन गॉग ने ग्रामीण जीवन और मेहनत करते किसानों पर अनेक चित्र बनाये और इसके लिए उन्होंने चित्रकार ‘ज्यां फ्रांकोइस मिले’ के चित्रों का सघन अध्ययन किया था.
अशोक भौमिक
चित्रकार

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