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डीए देने के मामले में सबसे पिछड़ा पश्चिम बंगाल, कर्मचारी संघ का दावा – 80 हजार करोड़ रुपये है बकाया

सरकारी कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष देबाशीष सील ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार, कर्मचारियों को वेतन और डीए का पैसा अन्य परियोजनाओं में लगा देती है. राज्य सरकार भले दावा करे कि केंद्र की ओर से उसे पैसे नहीं मिलते, लेकिन उसे यह समझना होगा कि केंद्र कभी भी राज्य सरकार को डीए के लिए पैसे नहीं देती.

पश्चिम बंगाल सरकार के कर्मचारियों को महंगाई भत्ता (डीए) देने के मामले में पश्चिम बंगाल बेहद पिछड़ा दिखता है. देश के अधिकांश राज्यों में केंद्र सरकार के कर्मचारियों को मिलने वाले डीए के बराबर या उससे थोड़ा कम मिलता है. जहां तक पश्चिम बंगाल का सवाल है, तो केंद्र सरकार या अन्य राज्य सरकार के कर्मचारियों के मुकाबले यहां के सरकारी कर्मचारियों का डीए बेहद कम है. केंद्र सरकार के कर्मचारियों को 38 फीसदी डीए मिलता है, जबकि राज्य सरकार के कर्मचारियों का डीए बढ़कर सिर्फ 6 फीसदी हुआ है.

परियोजनाओं में खर्च कर देती है कर्मचारियों के वेतन और डीए का पैसा

सरकारी कर्मचारी परिषद के अध्यक्ष देबाशीष सील ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार, कर्मचारियों को वेतन और उन्हें मिलने वाले डीए का पैसा अन्य परियोजनाओं में लगा देती है. राज्य सरकार भले दावा करे कि केंद्र की ओर से उसे पैसे नहीं मिलते, लेकिन उसे यह समझना होगा कि केंद्र कभी भी राज्य सरकार को डीए के लिए पैसे नहीं देती. डीए का पैसा राज्य को खुद देना होता है. इसके अलावा केंद्र अगर पैसा देगा भी, तो वह विभिन्न परियोजनाओं के लिए देगा, डीए के लिए नहीं.

डीए बकाया 80 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा

श्री सील कहते हैं कि राज्य सरकार को बकाया डीए और मौजूदा डीए देने के लिए 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक की जरूरत होगी. उनकी मांग के समर्थन में स्पेशल एपीलेट ट्राइब्यूनल (एसएटी) और फिर कलकत्ता हाईकोर्ट का भी फैसला आ गया है. हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गयी है. वहां 15 मार्च को सुनवाई है. उन्हें आशा है कि फैसला उनके हक में ही आयेगा. राज्य सरकार जब तक उनकी न्यायोचित मांग को स्वीकार नहीं करती, तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा. आगे चलकर आंदोलन और वृहत्तर रूप धारण करेगा.

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किस राज्य में कितना मिलता है महंगाई भत्ता

  • पश्चिम बंगाल – 06 फीसदी

  • उत्तर प्रदेश – 38 फीसदी

  • उत्तराखंड – 38 फीसदी

  • राजस्थान – 38 फीसदी

  • ओड़िशा – 38 फीसदी

  • नगालैंड – 38 फीसदी

  • तमिलनाडु – 38 फीसदी

  • हिमाचल प्रदेश – 38 फीसदी

  • हरियाणा – 38 फीसदी

  • दिल्ली – 38 फीसदी

  • असम – 38 फीसदी

  • बिहार – 38 फीसदी

  • झारखंड – 38 फीसदी

  • अरुणाचल प्रदेश – 38 फीसदी

  • महाराष्ट्र – 38 फीसदी

  • पंजाब – 34 फीसदी

  • छत्तीसगढ़ – 33 फीसदी

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