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मातृ-नवमी : सनातन संस्कृति में नारी-वर्ग को प्राप्त है विशेष स्थान

मां के गर्भ से शिशु के बोल पड़ने की कथा को तर्कशास्त्री भले न माने, लेकिन जब भौतिक विज्ञान के आधुनिकतम यंत्रों में कोई गलत पद्धति अपना ली जाती है, तो यंत्र खुद ही गलत-पद्धति का संकेत देने लगता है. प्राचीनकाल के ऋषि और महर्षि मंत्र-शक्ति और यंत्र शक्ति दोनों विधियों से भलीभांति परिचित थे.

सलिल पाण्डेय

सनातन संस्कृति में नारी-वर्ग को विशेष स्थान इसलिए दिया गया है, क्योंकि वह नौ माह तक गर्भ में रखकर शिशु को आकार देती है. इस अवधि में उसकी हर गतिविधियों का असर जन्म लेने वाले शिशु पर पड़ता है. गर्भस्थ शिशु पर आचार-विचार से लेकर आहार-विहार तक का प्रभाव पड़ता है. इस अवधि में मां की जीवन-शैली का शिशु पर ताउम्र प्रभाव किसी-न-किसी रूप में दिखाई पड़ता है. इसलिए धर्मग्रंथों में जन्म-पूर्व अनेक संस्कारों का विधान किया गया है, ताकि उन संस्कारों के जरिये जन्म लेने वाले शिशु को सुयोग्य बनाया जा सके. प्रायः महाभारत काल का उद्धरण देते हुए अभिमन्यु का जिक्र आता है कि पिता अर्जुन ने चक्रव्यूह के छह द्वारों के भेदन का ज्ञान गर्भवती सुभद्रा के जरिये अभिमन्यु को करा दिया, लेकिन अंतिम सातवें द्वार की विधि जानने के पूर्व सुभद्रा सो गयी. इन्हीं कारणों से अभिमन्यु अंतिम द्वार का भेदन का ज्ञान प्राप्त न कर सका और उसको शत्रु सेना ने मार दिया.

कथा : गर्भ से अष्टावक्र बोल पड़े थे-‘आप गलत बोल रहे हैं पिताश्री’

कथा है कि प्राचीन युग में ऋषि कोहण जब अपनी पत्नी को उच्च ज्ञान से अवगत करा रहे थे और कुछ त्रुटि हो गयी, तब अष्टावक्र मां के गर्भ से ही बोल पड़े-‘पिताश्री, आप गलत बोल रहे हैं.’ इस पर प्रकांड पंडित पिता के अहंकार को चोट लगी और क्रोध में आकर पुत्र को श्राप दे दिया कि ‘जब तू पैदा होगा तो आठ अंगों से टेढ़ा-मेढ़ा होगा’.

मां के गर्भ से शिशु के बोल पड़ने की कथा को तर्कशास्त्री भले न माने, लेकिन जब भौतिक विज्ञान के आधुनिकतम यंत्रों में कोई गलत पद्धति अपना ली जाती है, तो यंत्र खुद ही गलत-पद्धति का संकेत देने लगता है. प्राचीनकाल के ऋषि और महर्षि मंत्र-शक्ति और यंत्र शक्ति दोनों विधियों से भलीभांति परिचित थे. इसी के साथ इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महर्षि कोहण ने गर्भावस्था के दौरान पत्नी को अष्टांग योग के ज्ञान से परिचित कराया हो और गर्भस्थ अष्टावक्र को कुंडलिनी जागरण का ज्ञान उसी वक्त हो गया हो. कुंडलिनी जागरण के पश्चात सिद्धपुरुष को सामान्य लोग अचरज भरी नजर से देखने लगते हैं, क्योंकि जिस भौतिक संसाधनों के पीछे सामान्य लोग भागते हैं, उसे सिद्धपुरुष ठुकराना जानते हैं.

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नौ की संख्या का क्या है महत्व

भगवान श्रीराम अयोध्या की समृद्धि के विपरीत कण्टकाकीर्ण जंगल चले गये, तो बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध भी राजपाट छोड़कर लोकहित में निकल पड़े थे. यही कारण है कि मां के गर्भ में प्राप्त अस्तित्व को दैवी-शक्तियों से युक्त करने का समय गर्भावस्था का नौ माह ही होता है. इन्हीं कारणों से जब भी मातृ-शक्ति के प्रति आभार का विषय आता है, तो नौ की संख्या का उल्लेख किया जाता है.

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पितृपक्ष में नवमी की तिथि निर्धारित है, तो नवरात्र में मातृशक्तियों की कृपा के लिए नौ दिनों की उपासना की जाती है. वैसे तो श्रीमद्देवीभागवत महापुराण में एक सौर वर्ष में 9 नवरात्र के पर्व का उल्लेख है, जिनमें शारदीय, वासंतिक के अलावा आषाढ़, श्रावण (सावन), भाद्रपद, कार्तिक, मार्गशीर्ष (अग्रहायण), माघ एवं फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक व्रत-उपवास के साथ मां दुर्गा से उपासक शक्ति प्राप्त करता है, इसे नवाह यज्ञ बताया गया है.

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