24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

लाक्षागृह मामले में बागपत कोर्ट से 53 साल बाद मिला हिंदुओं को हक, मुस्लिम पक्ष ने किया था यह दावा

लाक्षागृह मामले में स्थानीय कोर्ट ने करीब 53 साल से चल रहे मुकदमें में फैसला सुनाते हुए मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दिया है. मेरठ की कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्ष की ओर से साल 1970 में केस दायर किया गया था. यह केस 1997 में बागपत कोर्ट में शिफ्ट हुआ था, तभी से इसकी सुनवाई यहां हो रही थी.

यूपी में बागपत जिले के बरनावा में बने महाभारत काल के लाक्षागृह मामले की सुनवाई स्थानीय अदालत की सिविल जज जूनियर डिवीजन प्रथम शिवम द्विवेदी की कोर्ट में हुई. कोर्ट ने करीब 53 साल से चल रहे मुकदमें में सोमवार को फैसला सुनाते हुए मालिकाना हक हिंदू पक्ष को दिया है. मेरठ की कोर्ट में हिंदू और मुस्लिम पक्ष की ओर से साल 1970 में केस दायर किया गया था. यह केस 1997 में बागपत कोर्ट में शिफ्ट हुआ था, तभी से इसकी सुनवाई यहां हो रही थी. जिसमें करीब 875 तारीखें लगाई गईं और दोनों पक्षों के 12 गवाह बने. यहां मुस्लिम पक्ष मजार और कब्रिस्तान होने का दावा कर रहा था, जिस पर कोर्ट ने 32 पेज पर 104 बिंदुओं में फैसला देते हुए आखिर में केवल इतना लिखा कि वादी वाद साबित करने में असफल रहे और इसे निरस्त किया जाता है. फैसला आने के बाद हिंदू पक्ष के लोगों में उत्साह है. जबकि कोर्ट के फैसले के बाद लाक्षागृह पर भारी पुलिस फोर्स तैनात किया गया है. चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मी नजर रखे हैं.

वहीं मुस्लिम पक्ष के वकील ने कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील करने की बात कही है. हिंदू पक्ष के वकील रणवीर सिंह तोमर ने बताया कि वर्ष 1997 से वह इस मुकदमे को लड़ रहे हैं. उनके अनुसार इसमें शुरूआत से अभी तक 875 तारीख लगी है. यह मामला कई बार फैसले पर आता था और उसके बाद फिर उम्मीद टूट जाती थी. उनके अनुसार इसमें दोनों पक्षों से 12 गवाह रहे. वादी पक्ष से मुकीम खान ने सबसे पहले याचिका दायर की और उनकी मौत के बाद खैराती खान व अहमद खान ने मरने तक पैरवी की तो अब खालिद खान पैरवी कर रहे थे. इस तरह ही प्रतिवादी पक्ष में शुरूआत में कृष्णदत्त रहे और उनकी मौत के बाद हर्रा गांव के छिद्दा सिंह, बरनावा के जगमोहन, बरनावा के जयकिशन महाराज ने पैरवी की. इन सभी की मौत हो चुकी है. वहीं अब मेरठ की पंचशील कॉलोनी में रहने वाले राजपाल त्यागी व जयवीर, बरनावा के आदेश व विजयपाल कश्यप पैरवी कर रहे थे. यह सभी इस मामले में गवाह भी रहे.

Also Read: Agra News : शाहजहां का उर्स आज से, असली कब्रें देख सकेंगे सैलानी, ताजमहल में तीन दिन निशुल्क होगी एंट्री
1952 में हुई थी खुदाई, 1970 में मुस्लिम पक्ष ने कोर्ट में डाली थी याचिका

बागपत के लाक्षागृह पर 1970 में बरनावा के रहने वाले मुकीम खान ने वक्फ बोर्ड के पदाधिकारी की हैसियत से मेरठ की कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें उन्होंने लाक्षागृह को बकरुद्दीन की मजार और कब्रिस्तान होने का दावा किया था. लाक्षागृह गुरुकुल के संस्थापक ब्रह्मचारी कृष्णदत्त महाराज को प्रतिवादी बनाया गया था. 27 साल बाद यानी 1997 में यह मुकदमा मेरठ से बागपत की कोर्ट में ट्रांसफर हो गया था. यहां 26 साल तक हिंदू पक्ष ने अपने साक्ष्यों के साथ पक्ष रखा. वहीं मुस्लिम पक्ष ने भी अपने दावे को सही साबित करने के लिए कोर्ट में सबूत रखे. लेकिन, कोर्ट ने हिंदू पक्ष को लक्षागृह पर मालिकाना हक दे दिया. हिंदू पक्ष के वकील रणवीर सिंह ने बताया कि मुस्लिम पक्ष लाक्षागृह की 100 बीघा भूमि को कब्रिस्तान और मजार बताकर उस पर कब्जा करना चाहता है. उसी को लेकर उन्होंने कोर्ट के सामने सारे सबूत पेश कर दिए. लाक्षागृह का इतिहास महाभारत काल का है. इसके बारे में पूरा देश और दुनिया जानती है. लाक्षागृह टीले पर संस्कृत विद्यालय और महाभारत कालीन सुराग भी मौजूद हैं.

ASI ने यहां खुदाई कर प्राचीन सभ्यता के अवशेष बरामद किए थे. जिनके आधार पर हिंदू पक्ष ने मजार सहित पूरे हिस्से को महाभारत कालीन बताकर कोर्ट से मालिकाना हक दिए जाने की मांग की. हिंदू पक्ष के सबूतों को कोर्ट ने भी माना. सुनवाई के दौरान 10 से ज्यादा हिंदू पक्ष के गवाहों की गवाही हुई. बता दें कि लाक्षागृह की साल 1952 में ASI की देख-रेख में खुदाई शुरू हुई थी. इसमें मिले अवशेष दुर्लभ श्रेणी के थे. खुदाई में 4500 साल पुराने मिट्टी के बर्तन मिले थे. महाभारत काल को भी इसी पीरियड का माना जाता है. लाक्षागृह टीला 30 एकड़ में फैला हुआ है. यह 100 फीट ऊंचा है. इस टीले के नीचे एक गुफा भी मौजूद है. साल 2018 में ASI ने इस स्थान की बड़े स्तर पर खुदाई शुरू की थी. यहां मानव कंकाल और दूसरे इंसानी अवशेष मिले थे. यहां विशाल महल की दीवारें और बस्ती भी मिली हैं.

Also Read: Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मस्जिद के ‘साइन बोर्ड’ पर मंदिर का स्टिकर चिपकाने के आरोपी के खिलाफ एफआईआर
खुदाई में मिले थे महाभारत काल के साक्ष्य

मुस्लिम पक्ष का दावा है कि यहां उनके बदरुद्दीन नाम के संत की मजार थी. इसे बाद में हटा दिया गया. यहां उनका कब्रिस्तान है. वहीं इतिहासकारों का दावा है कि इस जगह पर जो अधिकतर खुदाई हुई है. उसमें जो साक्ष्य मिले हैं वे सभी हजारों साल पुराने हैं. जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि यहां पर मिले हुए ज्यादातर सबूत हिंदू सभ्यता के ज्यादा करीब है. इसी जमीन पर गुरुकुल एवं कृष्णदत्त आश्रम चलाने वाले आचार्य का कहना है कि कब्र और मुस्लिम विचार तो भारत में कुछ समय पहले आया. जबकि हजारों सालों से ये जगह पांडव काल की है. महाभारत में लाक्षागृह की कहानी के बारे में बताया गया है. दावा किया जाता है कि दुर्योधन हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठना चाहता था. उसने पांडवों को जलाकर मारने के लिए साजिश रची. दुर्योधन ने अपने मंत्री से एक लाक्षागृह बनवाया था. यह लाक्षागृह लाख, मोम, घी, तेल से मिलाकर बना था. वार्णावत में इसका निर्माण कराया था. बागपत का बरनावा वही जगह मानी जाती है. दुर्योधन की साजिश के तहत ही धृतराष्ट्र से पांडवों को लाक्षागृह में रुकने का आदेश दिलवाया गया था. मगर, माता कुंती को लाक्षागृह की सूचना महामंत्री विदुर ने दे दी थी. इसके चलते जब वहां आग लगाई गई, तब पांडव बचकर निकल गए थे.

Also Read: Gyanvapi Survey: ज्ञानवापी परिसर के अन्य बंद तहखानों का एएसआई से सर्वेक्षण कराने की याचिका दायर, सुनवाई आज
Also Read: Gyanvapi : व्यासजी के तहखाने को मिला नया नाम, पांच पहर होगी आरती, जानें समय सारणी

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें