सिलीगुड़ी. सिलीगुड़ी के ‘नव बसंत’ का माहौल उस वक्त भावनात्मक हो गया जब भाई फोटा के दिन यहां रह रहे चार भाइयों को 11 बहनों ने टीका लगाकर लंबी आयु की कामना की. नव बसंत दरअसल एक वृद्धाश्रम है. यहां ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें उनके ही परिवार वालों ने छोड़ दिया है.
भाई फोटा के दिन इन चारों बुजुर्गों को अपनी बहनों का तो प्यार नहीं मिला, लेकिन इसी वृद्धाश्रम में रह रही अन्य 11 बहनों का प्यार अवश्य मिल गया. न केवल चारों भाई, बल्कि यह 11 बहनें भी अपने घर-परिवार वालों द्वारा छोड़ दी गई हैं. नव बसंत ही अब इनका घर-द्वार है. यह सब लोग अपने पुराने रिश्ते और घर-वार को याद भी नहीं करना चाहते. बस इसी माहौल में रच-बसकर अपनी बाकी की जिंदगी खपा देना चाहते हैं. इस वृद्धा आश्रम में रह रहे समीर के भट्टाचार्य सेना में रह चुके हैं. वह जब सेना में थे तो आसानी के साथ दनादन गोलियां दाग देते थे.
अब बुढ़ापा आने पर उनके हाथ में वह ताकत नहीं रही. हालांकि उनके जोश एवं उमंग में कोई कमी नहीं आयी है. फिर भी परिवार से दूर रहने का अहसास तो उन्हें होता ही है. इस बारे में हालांकि वह कुछ भी नहीं कहना चाहते. उनका कहना है कि अब यही आश्रम उनका परिवार है और यहां रह रही महिलाएं उनकी बहन. आश्रम में रह रहे अन्य तीनों बुजुर्गों का ही कुछ ऐसा ही कहना है. इन लोगों ने कहा कि वह लोग अब अपनी पुरानी जिंदगी को याद भी नहीं करना चाहते. सिर्फ भाई फोटा ही नहीं, सभी व्रत-त्योहार वह लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं और जमकर मस्ती करते हैं.
ऐसा नहीं है कि वृद्धा आश्रम में रहे यह चारों बुजुर्ग ही भाई फोटा के दिन खुश हैं. यहां रहने वाली 11 बुजुर्ग महिलाएं भी इनको टीका लगाकर इतनी ही खुश हैं. प्रीति कन्या सरकार, श्रावणी दुलाल, बसीरन निशा, मंजु दे, श्वाती राय, नमित गुप्ता चौधरी, गीता पाइन आदि महिलाएं भी काफी खुश हैं. बातचीत के क्रम में इनमें से कुछ महिलाओं ने बताया कि परिवार से दूर रहने का गम तो होता ही है. लेकिन उनके हाथ में कुछ नहीं है. बच्चे बड़े हो गये और अपनी गृहस्थी में लग गये. माता-पिता को बच्चों ने भुला दिया. अब तो यह वृद्धा आश्रम ही उनका परिवार है.