पहले के बंद में सिर्फ गोजमुमो की ही तूती बोलती थी. गोजमुमो के बंद समर्थक विभिन्न स्थानों पर पिकेटिंग करते थे और विपक्ष की एक नहीं चलती थी. पहली बार ऐसा हुआ है कि बुधवार को पहाड़ बंद के दौरान राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेन ने भी अपनी ताकत दिखायी है. दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के तीनों महकमाओं में तृणमूल समर्थकों ने बंद के विरोध में रैली निकाली. कई स्थानों पर तो यह लोग कुछ दुकानों को भी खुलवाने में सफल रहे. जाहिर है कि तृणमूल के इस बढ़ते प्रभाव को देखकर गोजमुमो नेता हैरान हैं.
पहाड़ बंद के दौरान राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर तीन मंत्री पहाड़ पर डेरा डाले हुए थे. कर्सियांग में उत्तर बंगाल विकास मंत्री रवीन्द्रनाथ घोष तो दार्जिलिंग में आदिवासी मामलों के मंत्री जेम्स कुजुर डेरा जमाये हुए थे. राज्य के पर्यटन मंत्री गौतम देव कालिम्पोंग की कमान संभाल रहे थे. यह तीनों ही मंत्री अपने-अपने इलाकों में तृणमूल समर्थकों के साथ बंद के विरोध में रैली निकाल रहे थे. जबकि बिमल गुरूंग, रोशन गिरी तथा विनय तामांग सहित गोजमुमो के तमाम आला नेता अपने-अपने घरों से नहीं निकले.
गोजमुमो के स्थानीय नेताओं ने ही बंद के समर्थन में रैली निकाली. कालिम्पोंग डम्बर चौक सहित कर्सियांग के रेलवे स्टेशन इलाके में तो गोजमुमो तथा तृणमूल समर्थकों के बीच भिड़न्त तक की स्थिति बन गई थी. यही गोजमुमो नेताओं के लिए चिंता का सबब है. जिस गोजमुमो के आगे विपक्ष के लोग एक पत्ता तक नहीं खड़का पाते थे, उसी गोजमुमो को तृणमूल कांग्रेस की ओर से कड़ी चुनौती मिलने लगी है. प्रशासन भी गोजमुमो के विरोध में है. बंद के दौरान यह साफ देखा गया कि जहां तृणमूल समर्थकों को बंद के विरोध में रैली निकालने की अनुमति दी जा रही थी, वहीं गोजमुमो को बंद के समर्थन में रैली निकालने की अनुमति नहीं दी गई.
हालांकि तृणमूल के इस बढ़ते प्रभाव को मानने के लिए गोजमुमो नेता तैयार नहीं हैं. गोजमुमो महासचिव रोशन गिरी का कहना है कि बंद की सफलता से साफ तौर पर जाहिर है कि पहाड़ के लोग गोजमुमो के साथ हैं. यहां के लोग अलग गोरखालैंड राज्य के अलावा और कुछ नहीं चाहते. श्री गिरी ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गोरखा जाति के लिए अलग-अलग विकास बोर्ड बनाकर जरूर गोरखाओं को तोड़ने की कोशिश की. लेकिन बंद की सफलता ने दिखला दिया कि अलग राज्य के लिए आज भी पहाड़ के गोरखा एक हैं. रोशन गिरी भले ही इस प्रकार के दावे कर रहे हों, परंतु वास्तविकता यह है कि बिमल गुरूंग सहित गोजमुमो के तमाम आला नेता तृणमूल के बढ़ते प्रभाव से परेशान हैं. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि लेप्चा, तामांग आदि सहित विभिन्न विकास बोर्ड बनाये जाने की वजह से गोरखा जाति में एक दरार तो स्पष्ट है. गोरखालैंड आंदोलन भी कमजोर हुआ है. दूसरी तरफ बंद के विरोध में भारी संख्या में तृणमूल समर्थकों के सड़क पर आने से तृणमूल नेता गदगद हैं.
बृहस्पतिवार को तृणमूल द्वारा दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में विभिन्न स्थानों पर विजय जुलूस निकाला जा रहा है. और तो और, राज्य के उत्तर बंगाल विकास मंत्री रवीन्द्रनाथ घोष बृहस्पतिवार को भी आधे दिन तक कर्सियांग में ही जमे रहे. कर्सियांग में गोजमुमो द्वारा बंद विफल होने का दावा करते हुए एक रैली भी निकाली गई. इस रैली में भी रवीन्द्रनाथ घोष शामिल हुए. रैली में शांता छेत्री, बिन्न शर्मा सहित पहाड़ के कई तृणमूल नेता उपस्थित थे. बाद में रवीन्द्रनाथ घोष सिलीगुड़ी के लिए रवाना हो गये. उन्हें उत्तरकन्या में एक बैठक में शामिल होना था.
हिल्स तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष राजेन मुखिया का साफ-साफ कहना है कि पहाड़ से गोजमुमो का तिलस्म खत्म हो रहा है. बिमल गुरूंग की आतंक की राजनीति से आम लोग परेशान हैं. पहाड़ के लोग विकास चाहते हैं. ममता बनर्जी लगातार पहाड़ पर विकास कर रही हैं. यही वजह है कि बंद के विरोध में भारी संख्या में आम लोग अपने-अपने घरों से निकले. उन्होंने एक बार फिर से बंद को पूरी तरह से विफल बताया.