उनका जीवन गरीबों व असहाय के लिए समर्पित था. उन्होंने कई आश्रम, स्कूल, कुष्ठ रोगियों की बस्तियां और अनाथ बच्चों के लिए घर बनवाये. Æसमाज सेवा व मानव सेवा के क्षेत्र में उन्होंने जो किया वह एक मिसाल है. लगातार गिरती सेहत की वजह से 05 सितंबर, 1997 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद उन्हें संत की उपाधि दिये जाने की प्रक्रिया शुरू हुई थी. वर्ष 2003 में पोप जॉन पॉल ने उनके दो चमत्कारों को मान्यता प्रदान की.
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आज संत घोषित होंगी मदर टेरेसा
वेटिकन सिटी/ कोलकाता : वेटिकन सिटी में एक बड़े समारोह में रविवार को रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस मदर टेरेसा को संत घोषित करेंगे. मदर टेरेसा के निधन के 19 साल बाद उन्हें यह उपाधि मिलेगी. दुनिया भर के करीब एक लाख लोग इसके गवाह बनेंगे. नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा ने 1950 में […]
वेटिकन सिटी/ कोलकाता : वेटिकन सिटी में एक बड़े समारोह में रविवार को रोमन कैथोलिक चर्च के पोप फ्रांसिस मदर टेरेसा को संत घोषित करेंगे. मदर टेरेसा के निधन के 19 साल बाद उन्हें यह उपाधि मिलेगी. दुनिया भर के करीब एक लाख लोग इसके गवाह बनेंगे. नोबेल पुरस्कार विजेता मदर टेरेसा ने 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी.
सुषमा, ममता बनेंगे मौके के गवाह
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के नेतृत्व में 12 सदस्यीय केंद्रीय प्रतिनिधिमंडल के अलावा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल व पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी वेटिकन सिटी में आयोजित कार्यक्रम में मौजूद रहेंगी. मिशिनरी ऑफ चेरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर मेरी प्रेमा के नेतृत्व में 50 ननों का समूह भी समारोह का गवाह बनेगा.
बचपन से सिस्टर टेरेसा तक
करुणा व सेवा की मूर्ति मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मेसिडोनिया की राजधानी स्कोप्जे शहर में हुआ था. पिता का नाम निकोला बोयाजू व माता का नाम द्राना बोयाजू था. मदर टेरेसा का असली नाम‘एग्नेस गोंझा बोयाजिजू’था. अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है. पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी मदर (गोंझा) टेरेसा मात्र अठारह वर्ष की उम्र में सिस्टर टेरेसा बनी थीं. 1948 में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोला. बाद में मिशनरीज ऑफ चेरिटी की स्थापना की.
भारत आगमन
सिस्टर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठ कर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में लोरेटो कॉन्वेंट पंहुचीं. वह अनुशासित शिक्षिका थीं और विद्यार्थी बहुत प्यार करते थे. 1944 में वह सेंट मैरी स्कूल की प्रिंसिपल बनीं. धीरे-धीरे यहां बेसहारा और विकलांग बच्चों व असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आंखों से देखा. फिर वह भारत से मुंह मोड़ने का साहस नहीं कर सकीं.
मिशनरीज ऑफ चैरिटी
सन 1949 में मदर टेरेसा ने गरीब, असहाय व अस्वस्थ लोगों की मदद के लिए ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे 7 अक्तूबर, 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी. मदर टेरेसा ने ‘निर्मल हृदय’और ‘निर्मला शिशु भवन’के नाम से आश्रम खोले, जिनमें वे असाध्य बीमारी से पीड़ित रोगियों व गरीबों की स्वयं सेवा करती थीं. 1997 तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं, जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में लिप्त थीं.
मदर को मिले पुरस्कार : 1962 में ‘पद्मश्री’, 1980 में ‘भारत रत्न’, 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार.
संत बनने का मतलब
पोप द्वारा किसी कैथोलिक ईसाई को ‘धन्य’ घोषित किये जाने का मतलब है कि वह व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद एक क्षेत्र विशेष के और ‘संत’ घोषित किये जाने पर सारी दुनिया के कैथोलिकों के लिए पूजनीय बन गया है. दोनों सम्मानों के लिए उपयुक्त धर्मात्माओं की जांच-परख करने की एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है. अब तक रोमन कैथोलिक चर्च की ओर से दस हजार से ज्यादा संत घोषित किये जा चुके हैं.
मदर के दो चमत्कार
1998 में कैंसर से पीड़ित मोनिका बेसरा नामक आदिवासी बंगाली महिला स्वस्थ हुई. मोनिका के मुताबिक, नन की पोट्रेट से निकली रोशनी से उनका ट्यूमर गायब हो गया. वेटिकन ने 2002 में महिला के इस कथन को सही ठहराया था.
ब्राजील में उनकी प्रार्थना से ब्रेन ट्यूमर से ग्रस्त एक व्यक्ति चमत्कारिक रूप से स्वस्थ हुआ था. ऐसा मदर टेरेसा की मृत्यु के बाद हुआ.
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