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नेपाल में महाभूकंप का पूरा हुआ एक वर्ष

सिलीगुड़ी. नेपाल में आये महाभूकंप का आज एक वर्ष पूरा हो गया. 25 अप्रैल 2015 का वह दिन इतिहास के पन्नों में नेपाल के लिये एक काला दिवस के रूप उल्लेख किया जायेगा. प्रकृति के इस हादसे में करीब 8000 से अधिक लोगों ने अपने प्राण गवां दिये थे. नेपाल के प्रधानमंत्री सहित पूरे देश […]

सिलीगुड़ी. नेपाल में आये महाभूकंप का आज एक वर्ष पूरा हो गया. 25 अप्रैल 2015 का वह दिन इतिहास के पन्नों में नेपाल के लिये एक काला दिवस के रूप उल्लेख किया जायेगा. प्रकृति के इस हादसे में करीब 8000 से अधिक लोगों ने अपने प्राण गवां दिये थे.

नेपाल के प्रधानमंत्री सहित पूरे देश ने इस भूकंप में जान गंवाने वालों को श्रद्धांजलि दी़ नेपाल के इस त्रासदी से सिलीगुड़ी के लोग भी काफ सहम गये थे़ नेपाल सीमा सिलीगुड़ी के पास है और यहां के काफी लोगों को हर रोज ही नेपाल आना जाना लगा रहता है़ उस समय भूकंप से सिलीगुड़ी की भी धरती कांप गयी थी़ यहां भी दो लोगों की मौत हुयी थी और घरों को काफी नुकसान हुआ था़ इसके बाद भी सिलीगुड़ी के लोग उस दर्द में नेपाल के साथ थे़ मारवाड़ी युवा मंच आद सहित विभिन्न स्वयंसेवी संगठन यहां से राहत लेकर नेपाल गए थे़ मारवाड़ी युवा मंच के पूर्व मीडिया प्रभारी संजय शर्मा ने कहा कि वह अपने साथियों के साथ करीब पचास लाख रूपये की राहत सामग्री लेकर नेपाल गए थे़ वहां की तबाही का मंजर देखकर वह सभी सहम गए थे़ इसके अलावा सिलीगुड़ी में ऐसे लोगों की भी संख्या काफी है जो भूकंप के दौरान नेपाल में ही फंस गए थे़ कइ दिनों तक जद्दो जहद के बाद अपनी जान बचाकर सिलीगुड़ी लौटने मे कामयाब हुए थे़ ऐसे लोग अभी भी सहमे हुए हैं. इसबीची,सिलीगुड़ी के निकट पानीटंकी से सटे नेपाल के शहर कांकरभीटा के लोगों ने भी मोमबत्ती जलाकर भूकंप में मरे लोगों की आत्मा शांति की कामना की. पिछले वर्ष के 25 अप्रैल को याद कर यहां नागरिकों की आंखे फिर से एक बार नम हो गयी.


आज से ठीक एक वर्ष पहले यानी 25 अप्रैल वर्ष 2015 को नेपाल में प्रकृति ने ऐसा कहर ढाया, जिसमें नेपाल के आठ हजार से अधिक नागरिकों की जान चली गयी. पिछले वर्ष 25 अप्रैल को दिन के करीब 11 बजकर 56 मिनट पर नेपाल के लामजुंग जिले में धरती इतनी जोर से कांपी थी कि कि एशिया महादेश के कई देशों में भूकंप के झटके महसूस किये गये. नेपाल में आये इस भूकंप ने राजधानी काठमांडू व पर्यटन शहर पोखरा को झकझोर कर रख दिया. 8.2 की तीव्रता से आयी इस भूकंप को गोरखा भूकंप के नाम से जाना जाता है. इस भूकंप ने नेपाल के पड़ोसी देश भारत, बांग्लादेश, भूटान, तिब्बत, चीन को भी काफी प्रभावित किया था. इस प्राकृतिक त्रासदी में आठ हजार से अधिक लोगों की मौत हुयी थी जबकि 21 हजार से अधिक लोग घायल हुए थे. करीब 250 लोगों के नाम अभी भी लापता सूची में दर्ज हैं. गोरखा भूकंप ने नेपाल के इतिहास से कई पन्नों को मिटा दिया. नेपाल की राजधानी काठमांडू की घाटी में स्थित एतिहासिक इमारतें ऐसे ध्वस्त हुयी जैसे वहां पहले से कुछ था ही नहीं. ऐसे एतिहासिक इमारतों में काठमांडू दरबार, पाटन दरबार, भक्तपुर दरबार, नारायण मंदिर, बौद्धनाथ स्तूप, स्वयंभूनाथ स्तूप आदि शामिल हैं.

25 अप्रैल को आये इस महाभूकंप के बाद पिछले वर्ष करीब 430 झटके महसूस किये गये. नेपाल में लगातार 15 से 20 मिनट के अंतराल पर झटके महसूस किये जा रहे थे. महाभूकंप के दूसरे ही दिन 26 अप्रैल को 12 बजकर 54 मिनट पर 6.7 तीव्रता के झटके ने नेपाल वासियों के दिल में एक डर पैदा कर दिया. लगातार आ रहे झटकों के बाद 12 मई 2015 को नेपाल फिर से एक बार हिल गया. इस दिन फिर से 7.8 की तीव्रता से नेपाल में भूकंप आया.

इसका केंद्र नेपाल-चीन सीमांत जिला रामेछाप में पाया गया. उसके बाद से लेकर अबतक सिलीगुड़ी में भी बार-बार भूकंप के झटके लग रहे हैं‍. उसके बाद भी इस आपदा से निपटने के लिए यहां आवश्यक तैयारियां नहीं की गयी है‍. प्रमुख पर्यावरण प्रेमी तथा नैफ के अध्यक्ष अनिमेष बसु ने इसके लिए सिलीगुड़ी नगर निगम की आलोचना की है़ उन्होंने कहा कि भूकंप के लागातार आ रहे झटकों के बाद उन्होंने सिलीगुड़ी नगर निगम से आपदा प्रबंधन के विशेष उपाय करने का सुझाव दिया था़ हर स्कूलों में आपदा प्रबंधन की ट्रेनिंग और जागरूकता कार्यक्रम किये जाने की बात भी कही थी़ भूकंपरोधी मकान बनाने पर जोर देने के साथ ही और भी कइ सुझाव भी उन्होंने नगर निगम को दिये थे़ एका साल बाद लगता है इस पर कोइ अमल नहीं हुआ है़ भवनों के निर्माण की निगरानी करने वाला को इ नहीं है़ अब तो सिलीगुड़ी में 12 तल्ला,15 तल्ला मकान तक बन रहे हैं.

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