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आर्सेनिक युक्त पानी पीने को मजबूर हैं ग्रामवासी

मालदा. मालदा जिले के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में आर्सेनिक मुक्त पेयजल की आपूर्ति परियोजना की शुरूआत नहीं हुई है. पिछले चार वर्षों से जिले के क्लोराइड एवं आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में पेयजल परियोजना का काम चल रहा है. कई स्थानों पर तो काम पूरा होने के बाद भी पेयजल की आपूर्ति नहीं की जा रही […]

मालदा. मालदा जिले के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में आर्सेनिक मुक्त पेयजल की आपूर्ति परियोजना की शुरूआत नहीं हुई है. पिछले चार वर्षों से जिले के क्लोराइड एवं आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में पेयजल परियोजना का काम चल रहा है. कई स्थानों पर तो काम पूरा होने के बाद भी पेयजल की आपूर्ति नहीं की जा रही है. स्थानीय लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा है कि सरकार बहुत धीमी गति से काम कर रही है. हालांकि जिला परिषद की ओर से बताया गया है कि एक कंपनी द्वारा पेयजल परियोजनाओं को पूरा करने का काम जारी है. ग्रामीण इलाकों में बन रहे इन परियोजनाओं का 90 प्रतिशत काम पूरा हो गया है.
कुछ तकनीकी जटिलता की वजह से इन परियोजनाओं की शुरूआत नहीं की गई है. लेकिन शीघ्र ही आम लोगों को आर्सेनिक मुक्त पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी. मालदा जिला परिषद के अतिरिक्त सीईओ मलय बनर्जी ने बताया है कि उन्होंने हाल ही में अपना पद ग्रहण किया है. आर्सेनिक मुक्त पेयजल परियोजनाओं की निर्माण की क्या स्थिति है, इस संबंध में वह कुछ भी नहीं कह सकते. इस संबंध में पूरी जानकारी प्राप्त करने के बाद ही वह कुछ कह पायेंगे.
इधर बामनगोला ब्लॉक के भवानीपुर तथा गोलापुर गांव के निवासियों का कहना है कि इलाके में बस कुछ ही नलकूप लगाये गये हैं. यह नलकूप भी खराब पड़ा हुआ है. अधिकांश समय ही लोगों को तालाब, नदी अथवा कुंए के पानी का उपयोग करना पड़ता है. इसकी वजह से इलाकावासी विभिन्न प्रकार के चर्मरोग के शिकार हो रहे हैं. इसके बाद भी इलाके में आर्सेनिक मुक्त पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने की कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है. इस बीच, विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, वर्ष 2012 में मालदा के विभिन्न इलाकों में आर्सेनिक मुक्त पेयजल की आपूर्ति करने के लिए पेयजल परियोजना की शुरूआत हुई. इसे सजलधारा परियोजना का नाम दिया गया था. वर्तमान में इसका नाम बदल कर आर्सेनिक मुक्त परियोजना रखा गया है. सूत्रों ने आगे बताया कि वर्ष 2007 में जिले में विभिन्न स्थानों पर पानी की जांच की गई थी. उसके बाद हबीबपुर, बामनगोला, हरिश्चन्द्रपुर-2 एवं रतुआ-2 ब्लॉक की पहचान क्लोराइड इलाके के रूप में की गई. इसके अलावा मानिकचक, कालियाचक आदि ब्लॉक की पहचान आर्सेनिक प्रभावित इलाके के रूप में की गई. दूसरी तरफ इंगलिश बाजार, चांचल, ओल्ड मालदा ब्लॉकों के पानी में आयरन की मात्रा अधिक पायी गई. उसके बाद ही ग्रामीण इलाकों में पेयजल परियोजना स्थापित करने का निर्णय लिया गया था.
जिला परिषद के पीएचई विभाग के स्थायी समिति के अध्यक्ष मंजारूल इस्लाम का कहना है कि वर्ष 2012 से पेयजल परियोजनाओं का काम चल रहा है. एग्रो इंडस्ट्रीज नामक कंपनी यह काम कर रही है. करीब 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है. जिले के 15 ब्लॉकों में 590 परियोजनाएं लगाई गई है. एक परियोजना पर 12 लाख रुपये खर्च हुए हैं. परियोजना के निर्माण में लगी कंपनी ने अभी तक इसे पूरा कर जिला परिषद को स्थानांतरित नहीं किया गया है.
बिजली की समस्या
मंजारूल इस्लाम ने आगे कहा कि कई मामलों में बिजली की समस्या भी देखी जा रही है. काम पूरा होने के बाद भी बिजली नहीं होने की वजह से परियोजना को चालू करना संभव नहीं हो सका है. ऐसी परियोजनाओं से बिजली की समस्या दूर करने की कोशिश की जा रही है. इसके अलावा निर्माण कार्य में लगी कंपनी के अधिकारियों से भी बातचीत की जायेगी.

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