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मामूली बीमारी में भी रेफर कर रहा मालदा मेडिकल कॉलेज

मालदा. राज्य सरकार द्वारा विभिन्न जिला अस्पतालों में चिकित्सकीय सेवा बेहतर किये जाने के लाख दावों के बावजूद जिला अस्पतालों से मरीजों को रेफर किये जाने का सिलसिला जारी है. छोटा-मोटा रोग होने पर भी जिला अस्पतालों के चिकित्सक कोई रिस्क नहीं लेते हैं और महानगर के अस्पतालों में मरीजों को रेफर कर देते हैं. […]

मालदा. राज्य सरकार द्वारा विभिन्न जिला अस्पतालों में चिकित्सकीय सेवा बेहतर किये जाने के लाख दावों के बावजूद जिला अस्पतालों से मरीजों को रेफर किये जाने का सिलसिला जारी है. छोटा-मोटा रोग होने पर भी जिला अस्पतालों के चिकित्सक कोई रिस्क नहीं लेते हैं और महानगर के अस्पतालों में मरीजों को रेफर कर देते हैं. 13 अगस्त से छह सितंबर तक 25 दिनों में मालदा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल से 10 मरीजों को कोलकाता मंे रेफर कर दिया गया है.

इन 10 मरीजों में कोई बम से घायल है, तो कोई गोली व छुरी से. किसी-किसी को अज्ञात बुखार की शिकायत है. मालदा मेडिकल कॉलेज की भूमिका से जिले के सभी राजनीतिक दलों में रोष है. रोगी कल्याण समिति के चेयरमैन तथा राज्य के बागवानी मंत्री कृष्णेंदु चौधरी ने भी मालदा मेडिकल कॉलेज के प्रति नाराजगी जतायी. मंत्री कृष्णेेंदु चौधरी ने बताया कि जल्द ही मालदा मेडिकल कॉलेज के चिकित्सकों व सर्जनों को लेकर वह बैठक करेंगे. कहां क्या कमी है, इसका पता लगाया जायेगा. मेडिकल कॉलेज सूत्रों के अनुसार, पूरे मेडिकल कॉलेज का जिम्मा 27 हेल्थ सर्विसेस चिकित्सक व कुछ आरएमओ पर है.

इसलिए जो कुछ भी हो रहा है, वह होना लाजमी है. मेडिकल कॉलेज के 164 चिकित्सक, प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर रहने के बावजूद हफ्ते में दो-तीन से ज्यादा कोई भी चिकित्सक व प्रोफेसर नहीं रहते हैं. महीने में इन्हें वेतन देने के लिए राज्य सरकार के कोष से 10 करोड़ रुपये से भी ज्यादा रुपये खर्च करना पड़ रहा है. राज्य स्वास्थ्य विभाग के जो 27 चिकित्सक मेडिकल कॉलेज में मौजूद हैं, उनमें से कइयों का कहना है कि मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक लापरवाह रूप से काम कर रहे हैं. मेडिकल कॉलेज बनने के पहले मालदा में हफ्ते में पांच से छह गॉल ब्लाडर के ऑपरेशन होते थे. जटिल से जटिल बीमारी का इलाज यहां होता था. अब ऐसा नहीं है. थोड़ी गंभीर स्थिति में ही कोलकाता मंे मरीज को रेफर कर दिया जाता है. कोई भी ऑपरेशन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा नहीं है. चार साल पहले 15 लाख रुपये खर्च कर सीएआरएम मशीन खरीदा गया था, लेकिन तकनीशियन की कमी के कारण इस मशीन को चालू नहीं किया जा रहा है. इस मशीन के चालू होने से काफी हद तक समस्या का समाधान हो जायेगा. मालदा मेडिकल कॉलेज में सुपरविजन की कोई व्यवस्था नहीं है. रेडियो थैरेपी के लिए मात्र एक चिकित्सक है. जबकि तीन महीने से किसी ने उनका चेहरा नहीं देखा है. मालदा मेडिकल कॉलेज के बारे में माकपा के जिला सचिव अंबर मित्र ने बताया कि स्वास्थ्य सेवा बिगड़ गयी है. मेडिकल कॉलेज रहने के बावजूद जिले के लोगों को सेवा नहीं मिल रही है. रोगी को फिसी तरह रफा-दफा करने से मतलब है.


कांग्रेस की जिलाध्यक्ष तथा सांसद मौसम नूर ने बताया कि मरीज की जांच किये बगैर ही कोलकाता में रेफर कर दिया जा रहा है. तब मेडिकल कॉलेज होने का क्या फायदा है. भाजपा के जिलाध्यक्ष शिवेंदु शेखर राय ने बताया कि मालदा मेडिकल कॉलेज को लेकर जल्द आंदोलन मंें उतरने की तैयारी की जा रही है. दूसरी ओर, मालदा मेडिकल कॉलेज के पिं्रसिपल डॉ प्रतीम कुमार कुंडू व वाइस प्रिंसिपल एमए रसीद ने इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की है.

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