पिट लाइनों में एलएचबी कोचों की जांच के लिए एसी विद्युत आपूर्ति का प्रावधान
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पूर्वोत्तर सीमा रेलवे: ट्रेनों में एचओजी तकनीक से पर्यावरण सुधार की पहल
पिट लाइनों में एलएचबी कोचों की जांच के लिए एसी विद्युत आपूर्ति का प्रावधान सिलीगुड़ी : भारतीय रेल के सभी लिंक हॉफमैन बुश(एलएचबी) कोच सज्जित ट्रेनों में हेड ऑन जेनरेटेशन (एचओजी) तकनीक पू. सी. रेलवे में लागू हो चुका है. नई तकनीक से न केवल एसी ट्रेनों के परिचालन में विद्युत की लागत में कटौती […]
सिलीगुड़ी : भारतीय रेल के सभी लिंक हॉफमैन बुश(एलएचबी) कोच सज्जित ट्रेनों में हेड ऑन जेनरेटेशन (एचओजी) तकनीक पू. सी. रेलवे में लागू हो चुका है. नई तकनीक से न केवल एसी ट्रेनों के परिचालन में विद्युत की लागत में कटौती करने में मदद मिलेगी, बल्कि आने वाली भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वच्छ पर्यावरण भी प्रदान करेगी.
वर्तमान में एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) कोच की डिजाइन दोनों तरफ दो डीजी सेटों की नियुक्त द्वारा दो पावर कारों के साथ इंड ऑन जेनेरेटर (ईओजी) सिस्टम पर परिचालन के लिए की गई है. नई एचओजी तकनीक एलएचबी ट्रेनों में वर्तमान दो जेनेरेटरों को प्रतिस्थापित करेगी.
इस नई प्रणाली के तहत पैंटोग्राफ के जरिए ओवरहेड पावर लाइनों से विद्युत की आपूर्ति ट्रेन इंजन में की जाती है. उसके बाद उसे ट्रेन लाइटिंग, एयर-कंडशनिंग, लाइटिंग, पंखों तथा विद्युत आपूर्ति पर संचालित होने वाले अन्य उपकरणों के लिए कोचों में वितरित की जाती है. चूंकि पू. सी. रेल के सम्पूर्ण हिस्से के लिए रेलवे विद्युतीकरण की अनुमति मिल चुकी है, इसलिए पू. सी. रेल की एलएचबी कोचों वाली ट्रेनों को विभिन्न डिपो में मॉडिफाइड किया जा रहा है तथा ट्रायल रन भी चलाया जा रहा है.
इसके कारण पावर जेनेरेटिंग उपकरणों की संख्या में कटौती, कम रखरखाव एवं ट्रेन के वजन में कमी के कारण विश्वसनीय सुधार आयेगा. वर्तमान में इस्तेमाल की जाने वाली पावर जेनरेटिंग कारों में प्रति घंटे करीब 100 लीटर डीजल की खपत होती है, इसलिए अत्याधिक आवाज, यात्रा के दौरान धुएं के उत्सर्जन के अलावा परिचालन में भी काफी खर्च होता है. इस नई एचओजी तकनीक के अपनाने से ईंधन के बिल पर बचत होने के साथ ईंधन के आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा की बचत होगी.
वर्तमान ट्रेनों में डीजल के प्रयोग द्वारा उत्पन्न विद्युत पर प्रति यूनिट करीब रु. 22 खर्च होते हैं तथा एचओजी तकनीक द्वारा प्रति यूनिट रु. 6/- का खर्च होगा. इसके अलावा डीजल जेनरेटरों से करीब 100 डीबी आवाज उत्पन्न होने के अलावा प्रतिवर्ष करीब 1724.6 टन कॉर्बन-डाई-ऑक्साइड तथ 7.48 टन एनओएक्स उत्पन्न होने से वायु भी प्रदूषित होता है.
नई एचओजी तकनीक से आवाज न-उत्पन्न होने के साथ ही साथ सीओ2 एवं एनओएक्स का शून्य उत्सर्जन होगा. इस तरह के दो जेनेरेटर कारों के स्थान पर आपातकालीन परिस्थिति में सिर्फ एक स्टैंडबाई साइलेंट जेनेरेटर का इस्तेमाल होगा. अन्य कार के स्थान पर एलएसएलआरडी (एलएचबी सेकेंड लगेज, गार्ड एवं दिव्यांग) कोच होंगे. लगेज गार्ड रूम तथा अतिरिक्त पैसंजोरों के लिए जगह प्रदान करने के लिए इस एसएलआरडी में सम्पूर्ण ट्रेन में इस्तेमाल करने के लिए ओवरहेड सप्लाई से विद्युत रूपांतरित करने की भी क्षमता होगी.
इस तकनीक के जरिए ईंधन की लागत में बचत की मात्रा प्रति वर्ष प्रति रेक करीब रु. 2 करोड़ होगी. इसके अलावा, इन डीजल रन पावर कारों (ईओजी) का इस्तेमाल कोचिंग डिपो की पिट लाइनों पर एलएचबी रेकों की जांच एवं प्री-कूलिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जिसके लिए प्रति रेक करीब 5-6 घंटे समय लगते हैं.
इसलिए वायु एवं शब्द प्रदूषण होने के साथ ही साथ डीजल ईंधन की भी अच्छी-खासी खपत होती है. पू. सी. रेल कामाख्या, डिब्रुगढ़, न्यू जलपाईगुड़ी, कटिहार तथा अगरतला में स्थित कोचिंग डिपो (जहां कोचों का रखरखाव किया जाता है) के लिए 750 वी 3-फेज विद्युत आपूर्ति प्रदान करने पर कार्य कर रही है. जिसका इस्तेमाल वर्तमान डीजल संचालित जेनेरेटरों के स्थान पर एलएचबी रेकों की जांच के लिए किया जाएगा. डिब्रुगढ़ एवं न्यू जलपाईगुड़ी में कार्य सम्पन्न हो चुका है एवं कामाख्या में कार्य प्रगति पर है.
इससे पिट लाइन पर एलएचबी कोचों की जांच के दौरान खर्च होने वाले ईंधन की लागत पर प्रति ट्रिप प्रति रेक करीब रु. 25,000/- की बचत होगी साथ में जांच एवं प्रीकूलिंग के दौरान इन जेनेरेटरों के इस्तेमाल के कारण होने वाली वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से भी निजात मिलेगी.
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