24.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

समुचित स्वास्थ्य बीमा के अभाव से देश में बढ़ रही गरीबी

भारत में 1986 में शुरू हुई थी स्वास्थ्य बीमा योजना वर्ष 2011-12 में दवा व इलाज के अतिरिक्त खर्च के चलते 3.8 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे खिसके 2014 में किये गये सर्वे के मुताबिक अभी भी 80 फीसदी से अधिक आबादी स्वास्थ्य बीमा के दायरे से बाहर सिलीगुड़ी : भारत जैसे बड़ी […]

भारत में 1986 में शुरू हुई थी स्वास्थ्य बीमा योजना

वर्ष 2011-12 में दवा व इलाज के अतिरिक्त खर्च के चलते 3.8 करोड़ लोग गरीबी की रेखा के नीचे खिसके 2014 में किये गये सर्वे के मुताबिक अभी भी 80 फीसदी से अधिक आबादी स्वास्थ्य बीमा के दायरे से बाहर
सिलीगुड़ी : भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में 70 फीसदी से अधिक लोग इलाज के लिये गैरसरकारी संस्थानों पर निर्भर हैं. इससे उनकी जेब पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है. वैसे तो वैश्विक स्तर पर भी औसत वैश्विक चिकित्सकीय व्यय दर वर्ष 2017 के 6.8 फीसदी से बढ़कर 7.2 फीसदी पहुंच गयी है, वहीं भारत में यह दर वर्ष 2018 में 11.03 फीसदी थी.
ज्यादातर खर्च लोग अपनी जेबों से करते हैं. जिसका नतीजा होता है परिवार पर अतिरिक्त आर्थक बोझ. जिसका अंतत: परिणाम आजीवन कर्ज और तत्सबंधी गरीबी की दर में वृद्धि होती है. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के एक अध्ययन के अनुसार जेब से अधिक खर्च करने वालों की आबादी वर्ष 1993-94 में 60 फीसदी से बढ़कर 2011-12 में 80 फीसदी हो गयी थी.
इसकी सबसे बड़ी वजह भारत में खासतौर पर स्वास्थ्य बीमा के प्रति लोगों में जागरुकता का अभाव है. उल्लेखनीय है कि स्ट्रोक, मिरगी, कंपन रोग (पर्किंसन) के इलाज पर काफी ज्यादा रकम खर्च होते हैं, जबकि स्मृतिलोप (अलजाइमर) जैसे रोग स्वास्थ्य बीमा में शामिल ही नहीं किये गये हैं.
इसलिये अब देश की बीमा व्यवस्था की समीक्षा कर उसमें पर्याप्त सुधार किया जाये, ताकि आम मरीजों और उनके परिवार पर आर्थक बोझ सीमा से बाहर न हो. भारत में स्वास्थ्य बीमा योजना वर्ष 1986 में शुरू की गयी थी. हालांकि 2014 में किये गये सर्वे के मुताबिक अभी भी 80 फीसदी से अधिक आबादी को बीमा के दायरे में नहीं लाया जा सका है. शहरी क्षेत्र में मात्र 18 फीसदी और ग्रामीण क्षेत्र में 14 फीसदी आबादी को बीमे के दायरे में लाया जा सका है.
इनमें से अधिकतर सरकार प्रायोजित योजनाओं में बीमाकृत हैं. मुख्य रुप से जागरुकता की कमी, हेल्थ बजट का अभाव, ठगी की आशंका, सरकारी ठोस नीतियों व नियमन का अभाव आदि स्वास्थ्य बीमा में कमी की वजहें हैं. हालांकि इसमें सरकारी और गैरसरकारी पक्षकारों की जिम्मेदारी भी कम नहीं रही है. आज के प्रौद्योगिकी युग में हर तरह की मीडिया जागरुकता के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका का निर्वाह कर सकती है.
भारत में वित्तीय नियोजन की परंपरा नहीं है, स्वास्थ्य बजट तो दूर की बात है. इसलिए जागरुकता कार्यक्रमों के जरिये लोगों को स्वास्थ्य बीमा के लिये प्रेरित करने में मदद मिलेगी. इससे लोगों का अतिरिक्त चिकित्सकीय भार कम होगा. आज बीमा कंपनियों को ग्राहकों की आवश्यकताओं अनुसार बीमा पॉलिसियां बनानी होंगी, न कि दो तीन विकल्पों में से चुनने का अवसर. हमारे देश में बीमा नियमन के अभाव में लोग अक्सर वित्तीय कंपनियों के चंगुल में फंस जाते हैं, जो स्वास्थ्य बीमा के लिये बाधक हैं.
हालांकि बीमा क्षेत्र के नियमन के लिये आईआरडीए है, लेकिन सख्त नियमन और शिकायतों को दूर करने के लिये बेहतर व्यवस्था की जानी चाहिये. इससे ग्राहकों का भरोसा बीमा कंपनियों पर बढ़ेगा. सरकार को भी अधिक सक्रिय होना होगा. ऐसा नियम बनाना होगा कि बच्चे के जन्म के समय ही उसकी बीमा करायी जाये. वैध स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी संख्या के बिना जन्म प्रमाणपत्र निर्गत नहीं किया जाये. सरकार को स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों को आम आदमी की सामर्थ्य के भीतर करना होगा. जिसमें गैरसरकारी स्वास्थ्य बीमा कंपनियां सहायक हो सकती हैं.
गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करनेवालों के लिये सरकार को बीमे का दायित्व लेना चाहिये. कुल मिलाकर बढ़ते हुए चिकित्सकीय खर्च के मद्देनजर समुचित स्वास्थ्य बीमा कवरेज समय की जरूरत है. यह सरकारी और गैरसरकारी क्षेत्र के सामूहिक प्रयास और उपयुक्त कानूनी प्रावधानों के आधार पर किया जा सकता है. इससे जमीनी स्तर पर स्वास्थ्य बीमा को विस्तार का लाभ मिलेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें