सतर्कता : गलियारों से आवागमन के दौरान हाथियों के झुंड रिहायशी इलाकों में घुस रहे
जलपाईगुड़ी :जंगली हाथियों के उनके गलियारों से होकर आवाजाही को लेकर रेडियो कॉलर के जरिये जानकारी मिलनी शुरू हो गयी है. हाथियों के झुंड विभिन्न गलियारों से होकर डुआर्स के संकोश से लेकर नेपाल के सीमावर्ती मेची नदी के निकटवर्ती इलाकों में घुस रहे हैं. उल्लेखनीय है कि बीते 29 अप्रैल को गोरुमारा अभयारण्य में मीनाक्षी नामक हाथी और महानंदा अभयारण्य के जंगल में शांता नामक हाथी के गले में रेडियो कॉलर पहनायी गयी है. रेडियो कॉलर में लगे ट्रांसमीटर से पल पल की जानकारी मिल रही है.
दो झुंडों के साथ ये हाथी कुमारग्राम के संकोश से लेकर बक्सा जंगल, जलदापाड़ा, चिलापाता, मोराघाट, डायना, गोरुमारा, चापरामारी, महानंदा, बैकुंठपुर, आपालचंद, मेची के बीच आवाजाही कर रहे हैं. इस दौरान ये झुंड बस्तियों, चाय बागान, कृषि भूमि, रेलवे लाइन, स्कूल जैसे इलाकों में भी बीच बीच में घुस रहे हैं. यहां तक कि इस दौरान ये असम, भूटान, नेपाल के सीमा क्षेत्र में भी चले जा रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि उत्तरबंगाल में स्पॉर नामक संगठन वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर हाथियों के गलियारों पर काम कर रहे हैं. स्पॉर के सचिव श्यामा प्रसाद पांडेय ने बताया कि एक हाथी के लिये प्रतिदिन 200 किलो खाद्य की जरूरत पड़ती है. दिनोंदिन मक्का और धान की खेती बढ़ रही है. इससे 60-80 किलो धान एक हाथी के लिये पर्याप्त भोजन है.
वहीं, नदी संलग्न इलाकों में भी लोग बस रहे हैं. नदियों से बालू-पत्थर की निकासी और चाय बागानों में ब्लेड वाले बेड़ा लगाने से हाथियों के लिये मुश्किल हो रही है. इसके अलावा महानंदा, आपालचांद, कालिम्पोंग, कालिम्पोंग, चापरामारी, जलदापाड़ा, बक्सा, रेती और मोराघाट जैसे हाथियों के 14 गलियारों में चाय बागानों, खेती, बस्तियों और भवन निर्माण के चलते बाधा खड़ी हो रही है. चाय बागानों को इसकी जानकारी दी गयी है. खनन और ब्लेड वाले बेड़ा पर रोक लगानी होगी.
इस बारे में वन्य प्राणी डिवीजन के उत्तरबंगाल के मुख्य वनपाल उज्ज्वल घोष ने बताया कि दो हाथियों को रेडियो-कॉलर पहनाने के बाद हमें दिन और रात मिलाकर चार बार हाथियों की गतिविधियों की जानकारी मिल रही है. जहां भी झुंड रिहायशी इलाकों में घुस रहे हैं वहां वनकर्मियों को भेजकर उन्हें जंगल की ओर खदेड़ा जा रहा है. मुख्य वनपाल ने बताया कि रेडियो कॉलर से झुंड कहां कहां से होकर जा रहे हैं और कितनी देर तक वहां रुक रहे हैं ये सभी तथ्य मिल रहे हैं. छह माह तक इन तथ्यों का संग्रह कर उनका अध्ययन किया जायेगा.