नागराकाटा : चाय बागान बंद होने के बाद चावल और आटा के साथ दाल व तेल खरीदने के लिये पैसा नहीं है. इस कारण पड़ोसी देश से आये महिला व्यापारियों को चावल और आटा देकर उसके बदले सब्जी और अन्य जरुरी समाग्री अदला-बदली करते हैं.
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केरन चाय बागान के श्रमिकों की हालत बदतर
नागराकाटा : चाय बागान बंद होने के बाद चावल और आटा के साथ दाल व तेल खरीदने के लिये पैसा नहीं है. इस कारण पड़ोसी देश से आये महिला व्यापारियों को चावल और आटा देकर उसके बदले सब्जी और अन्य जरुरी समाग्री अदला-बदली करते हैं. जबसे चाय बागान बंद हुआ है, तभी से श्रमिकों को […]
जबसे चाय बागान बंद हुआ है, तभी से श्रमिकों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है.
ऐसी घटनाएं डुआर्स के नागराकाटा ब्लॉक स्थित बंद केरन चाय बागान में हो रही है. सरकार से राशन तो मिलता है, लेकिन उसके साथ भोजन बनाने के लिए तेल, दाल एवं अन्य जरूरी समान खरीद के लिए पैसा नहीं है.
इस कारण श्रमिक पड़ोसी देश भूटान से आए हुए महिला व्यापारियों को चावल-आटा देते हैं और उसके बदले में सब्जी और अन्य जरुरी समान लेते हैं.
लोकसभा चुनाव निकट है. लेकिन केरन चाय बागान के 725 श्रमिक परिवारों को कोई नेता या पार्टी आज याद नहीं कर रही. लोकसभा चुनाव में अपना-अपना परचम स्थापित करने के लिए सभी राजनैतिक दल अपने-अपने क्षेत्रों में मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं.
राजनैतिक पार्टी चुनाव के समय चाय बागान व बस्ती के भोले-भाले जनता को सपना दिखाते हैं और चुनाव के बाद में सारे बादे भूल जाते हैं. अन्य क्षेत्र से इस बार डुआर्स का मुद्दा बंद चाय बागान पर टिका है.
केरन चाय बागान के श्रमिक कर्मू बड़ाइक, सुमित्रा बड़ाइक, लैतु उरांव ने कहा कि चाय बागान की अवस्था बहुत खराब है. हमारे पास दाल व चावल खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं.
इसलिए व्यापारियों को चावल और आटा देकर उनसे सब्जी, दाल और अन्य जरुरी समान लेते हैं. चुनाव के समय सभी राजनैतिक पार्टी व नेता हमें बड़ा-बड़ा प्रलोभन देकर जाते हैं. चुनाव के बाद नेता हमें लौटकर भी नहीं देखते.
भूटान कादू से आई महिला व्यापारी सुनीता राई और मनमाया विश्वकर्मा ने बताया कि हम छह घंटा पैदल चलकर यहां व्यापार के लिए आते हैं. जब चाय बागान खुला हुआ था तो यहां अच्छा व्यापार होता था. लेकिन अब ऐसा नहीं होता. यहां से हम चावल और आटा लेकर सब्जी, दाल एवं अन्य समाग्री लोगों को देते हैं. इतनी दूर से आकर समान लौटाया नहीं जा सकता.
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