सिलीगुड़ी: गोजमुमो सुप्रीमो बिमल गुरूंग अपनी पार्टी के अन्य नेताओं के साथ जुलाई महीने में एक बार फिर से दिल्ली जा सकते हैं. इस दौरान उनके साथ डुवार्स के कई आदिवासी नेताओं के भी दिल्ली जाने की योजना है. विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार दाजिर्लिंग पर्वतीय क्षेत्र के अतिरिक्त डुवार्स के नेपाली तथा आदिवासी बहुल इलाकों में पैर पसारने की रणनीति के तहत बिमल गुरूंग चाय बागानों के श्रमिकों की बदहाल स्थिति को मुद्दा बना सकते हैं.
इसी रणनीति के तहत उनकी योजना आदिवासी नेता जॉन बारला के अतिरिक्त और भी कुछ प्रमुख आदिवासी नेताओं को अपने साथ लाने की है. लोकसभा चुनाव में दाजिर्लिंग संसदीय क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार एस.एस. अहलूवालिया के समर्थन के कारण राज्य की तृणमूल सरकार तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बिमल गुरूंग के रिश्ते में काफी तल्खी आ गई है. डुवार्स में पिछले कुछ वर्षो के दौरान तृणमूल कांग्रेस की शक्ति में काफी वृद्धि हुई है.
खासकर आदिवासी विकास परिषद के समर्थन से लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने जलपाईगुड़ी तथा कूचबिहार संसदीय सीट को अपने कब्जे में कर लिया था. डुवार्स में तृणमूल कांग्रेस की शक्ति कम करने के लिए बिमल गुरूंग सहित गोजमुमो के तमाम नेता डुवार्स क्षेत्र में अपनी पार्टी की शक्ति बढ़ाना चाहते हैं. लेकिन यह तभी संभव है जब यहां के चाय बागान के श्रमिकों एवं कुछ आदिवासी नेताओं को गोजमुमो अपने साथ जोड़ ले. सूत्रों ने आगे बताया कि चाय बागान इलाके में अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में बिमल गुरूंग लगे हुए हैं.
जुलाई में दिल्ली जाने का उनका कार्यक्रम इसी रणनीति का हिस्सा है. सूत्रों ने आगे बताया कि अपने हाल के दिल्ली प्रवास के दौरान बिमल गुरूंग ने भाजपा के कई प्रमुख नेताओं के साथ मुलाकात की थी. इसी क्रम में उन्होंने जुलाई महीने में एक बार फिर से दिल्ली आने की बात भाजपा नेताओं को बतायी है. लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की लहर के कारण उत्तर बंगाल में खासकर डुवार्स इलाके में भाजपा के मत प्रतिशत में काफी वृद्धि हुई है.
भाजपा के कई स्थानीय नेता भी गोजमुमो तथा आदिवासी नेताओं के साथ मिलकर चाय बागान इलाकों में अपने जनाधार को और मजबूत करना चाहते हैं. सूत्रों ने आगे कहा कि जुलाई महीने में बिमल गुरूंग की योजना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने की है.
वह प्रधानमंत्री से अलग से चाय मंत्रलय बनाने की मांग करेंगे. दाजिर्लिंग संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा उम्मीदवार एस.एस. अहलूवालिया ने भी केन्द्र में भाजपा की सरकार बनने की स्थिति में अलग से चाय मंत्रलय के गठन का आश्वासन दिया था. गोजमुमो नेताओं को उम्मीद थी कि नरेन्द्र मोदी की सरकार में एस.एस. अहलूवालिया मंत्री बनेंगे और वह चाय मंत्रलय के गठन की दिशा में प्रयास करेंगे, लेकिन उनके मंत्री नहीं बनने के कारण भी गोजमुमो नेताओं में मायुसी है. इसलिए वह चाय मंत्रलय बनाने की अपनी मांग सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समक्ष रखना चाहते हैं. दूसरी तरफ आदिवासी नेता जॉन बारला ने भी गोजमुमो के इस पहल का स्वागत किया है. उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि जुलाई महीने में वह भी बिमल गुरूंग के साथ दिल्ली जाएंगे. उन्होंने केन्द्र में अलग से चाय मंत्रलय के गठन की पुरजोर वकालत की है. उनका कहना है कि जब अलग से कपड़ा मंत्रलय और कोयला मंत्रलय हो सकता है, तो चाय मंत्रलय क्यों नहीं. उन्होंने उम्मीद जाहिर की है कि अलग से चाय मंत्रलय के गठन से ना केवल चाय बागानों का, बल्कि यहां कार्य कर रहे श्रमिकों का भी कल्याण होगा.