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सालानपुर में तृणमूल का नेतृत्व बदलेगा

रूपनारायणपुर : बीते संसदीय चुनाव में सालानपुर पंचायत समिति इलाके में तृणमूल प्रार्थी की हार के बाद स्थानीय स्तर पर नेतृत्व परिवर्त्तन की कवायद शुरू हो गयी है. पार्टी नेता पप्पू उपाध्याय ने कहा कि स्थानीय विधायक विधान उपाध्याय के कोलकाता से लौटने के बाद इस पर निर्णय लिया जायेगा. सालानपुर पंचायत समिति इलाके के […]

रूपनारायणपुर : बीते संसदीय चुनाव में सालानपुर पंचायत समिति इलाके में तृणमूल प्रार्थी की हार के बाद स्थानीय स्तर पर नेतृत्व परिवर्त्तन की कवायद शुरू हो गयी है. पार्टी नेता पप्पू उपाध्याय ने कहा कि स्थानीय विधायक विधान उपाध्याय के कोलकाता से लौटने के बाद इस पर निर्णय लिया जायेगा.

सालानपुर पंचायत समिति इलाके के कुल ग्यारह ग्राम पंचायतों में से सात पंचायतों में भाजपा, तीन पंचायतों में तृणमूल और एक पंचायत में माकपा उम्मीदवार को बढ़त मिली थी. पांच पंचायतों में तो तृणमूल तीसरे स्थान पर रही. आचड़ा इलाके में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चुनावी सभा को संबोधित किया. सभा में उमड़े जन सैलाब को देख कर पार्टी के स्थानीय नेताओं में भारी बढ़त की उम्मीद बंध गयी. लेकिन भीड़ को वोट में नहीं बदला नहीं जा सका. एथोड़ा, अल्लाडी, देंदुआ, बासुदेवपुर जेमारी, रूपनारायणपुर, फूलबेड़िया बोलकुंडा और सालानपुर ग्राम पंचायतों से भाजपा, आचड़ा, उत्तररामपुर, जीतपुर, सामडी पंचायतों से तृणमूल और एक मात्र कोल्ला ग्राम पंचायत से माकपा उम्मीदवार को बढ़त मिली. यहां तृणमूल के साथ-साथ माकपा और कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा. ग्यारह में से चार पंचायतों में माकपा, तीन पंचायतों में तृणमूल और तीन पंचायतों पर कांग्रेस का कब्जा है.

एक पंचायत में सदस्यों की संख्या टाई होने के उपरांत विवाद उच्च न्यायालय में विचाराधीन है. तृणमूल संचालित कोल्ला पंचायत से माकपा उम्मीदवार ने बढ़त बनायी तो माकपा संचालित ग्राम पंचायत सामडी से तृणमूल ने बढ़त ली. पांच पंचायतों में तृणमूल का तीसरे स्थान पर खिसकना पार्टी के लिए चिंता का मुद्दा है. यहां का नेतृत्व धरम कर्मकार के हाथों में है. श्री कर्मकार पहले कांग्रेस में थे और विधानसभा चुनाव के बाद तृणमूल में शामिल हुए. इसको लेकर संगठन में पहले से ही अंतर्विरोध चल रहा था. पुराने नेता को दर्द है कि माकपा के शासन काल में प्रताड़ना उन्होंने ङोली. झूठे मुकदमों में जेल गये. लेकिन सत्ता में पार्टी के आने के बाद वे ही उपेक्षित हो गये और सत्ता का सुख कोई और आकर भोगने लगा. चुनाव में इसका असर पड़ा है. यही हाल रहा तो आगामी दिनों में संगठन की दुर्दशा और बुरी होगी.

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