उसके माता-पिता बेहद गरीब हैं. बेटे की चिकित्सा कराने के लिए उनके पास पैसे नहीं हैं. बेटे की चिकित्सा कराने के लिए उन्होंने कई लोगों से मदद की गुहार लगायी, लेकिन आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला. थक-हारकर परिवार के सदस्य बैठ गये और अपने बेटे की स्थिति को देखकर आंसू बहाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाये. आज न केवल सुशील बल्कि उसका पूरा परिवार हताश एवं निराश है. ऐसे सुशील को बातचीत करने में कोई परेशानी नहीं हो रही है. वह आम युवकों की तरह ही बातचीत कर सकता है.
लेकिन सही नौकरी नहीं मिलने के कारण उसके अंदर गुस्सा इतना अधिक है कि वह कभी भी उग्र हो जाता है. सिर्फ दूसरे का ही नहीं, बल्कि अपना भी शारीरिक नुकसान कर लेता है. उसके इसी उग्र स्वभाव को देखते हुए परिवार के लोगों ने जंजीर में बांधकर रखना शुरू किया. माता-पिता नहीं चाहकर भी ऐसा करने के लिए बाध्य हैं. सुशील भी इस प्रकार बांधकर रखने से काफी परेशान है.
उसने कहा भी यह अन्याय है. सीकड़ में बांधे जाने से काफी परेशानी होती है. इस तरह से किसी को बांध कर रखना सही नहीं है. सुशील की उम्र अभी 37 साल की है. अपने समय में वह अच्छा खिलाड़ी हुआ करता था. पढ़ने-लिखने में भी ठीक था. परिवार के लोगों का कहना है कि कद-काठी अच्छा होने के साथ ही पढ़ाई-लिखाई में भी ठीक होने से सुशील पुलिस अथवा सेना में नौकरी करना चाहता था. पांच साल पहले उसने पुलिस की नौकरी की परीक्षा भी दी थी. परिवार वालों का कहना है कि लिखित परीक्षा में सुशील पास हो गया था, लेकिन बाद में इंटरव्यू के बाद उसकी नौकरी नहीं लगी. इसी से वह काफी हताश हो गया. उसकी इच्छा नौकरी मिलने के बाद सबसे पहले एक मोटरसाइकिल खरीदने की थी. माता-पिता के अनुसार, सुशील को घुमना-फिरना काफी पसंद था. पिता राजेश्वर दास ने बताया कि जिस दिन पुलिस में उसकी नौकरी नहीं लगी, उसी दिन से वह टूट गया था. वह तोड़फोड़ करने लगा और दूसरे पर हमले की भी कई शिकायतें मिली. बाध्य होकर उसे जंजीरों में बांधकर रखा जा रहा है. वह सुशील के पिता हैं भला कौन माता-पिता अपने बेटे को जंजीर में बांधकर रखना चाहता है. मजबूरी ही ऐसी है कि सुशील को जंजीर में बांध कर रखने के अलावा कोई चारा नहीं है. हालांकि माता-पिता दोनों चाहते हैं कि सुशील की चिकित्सा हो.