जलपाईगुड़ी: आगामी तीन दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस है. इस अवसर पर जलपाईगुड़ी के बासाम सोनार एवं मुक्ता खातून नामक दो दिव्यांग को राज्य सरकार रोल मॉडल घोषित कर पुरष्कृत करेगी. जहां वासाम सोनार ने अपनी विकलांगता पर विजय प्राप्त करते हुए समाज के दूसरे विकलांगों की मदद की है, वहीं मुक्ता ने अपनी विकलांगता […]
जलपाईगुड़ी: आगामी तीन दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस है. इस अवसर पर जलपाईगुड़ी के बासाम सोनार एवं मुक्ता खातून नामक दो दिव्यांग को राज्य सरकार रोल मॉडल घोषित कर पुरष्कृत करेगी. जहां वासाम सोनार ने अपनी विकलांगता पर विजय प्राप्त करते हुए समाज के दूसरे विकलांगों की मदद की है, वहीं मुक्ता ने अपनी विकलांगता को दरकिनार कर माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर सभी को चकित कर दिया है.
स्थानीय सूत्रों से पता चला है कि लगभग 15 साल पहले हाई जंप के समय बासाम सोनार की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गयी थी. शुरू-शुरू में ज्यादा तकलीफ नहीं हुई, लेकिन धीरे-धीरे दर्द बढ़ता गया एवं उसके हाथ-पांव ने काम करना बंद कर दिया.
उसके बाद वह पूरी तरह से बिस्तर पर आ गया. एक समय ऐसा भी आया कि सबने उसके बचने की उम्मीद छोड़ दी. इसकी खबर अलीपुरद्वार के तत्कालीन सांसद दशरथ तिर्की के पास पहुंची. उनकी पहल पर बासाम को एसएसकेएम अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग में भर्ती करवाया गया. वहां एक सफल ऑपरेशन के बाद वह काफी स्वस्थ्य हो गया. हालांकि दर्द अभी भी होता है पर इलाज चल रहा है.
जिले की दूसरी रोल मॉडल मुक्ता खातुन जलपाईगुड़ी जिले की कन्याश्री योजना के अंतर्गत अपनी उच्च माध्यमिक की पढ़ाई पूरी कर ली है. फिलाहाल वह धूपगुड़ी कॉलेज की छात्रा है. मुक्ता चल फिर नहीं सकती है. मुक्ता धूपगुड़ी ब्लॉक के डाउकीमारी इलाके की रहने वाली है. वह तीन भाई- बहन हैं एवं सभी विकलांग है. मुक्ता के पिता बकुल हुसैन दिहाड़ी मजदूरी करते हैं.
मुक्ता ने माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों पास किया है. वह आगे चलकर सरकारी नौकरी करना चाहती है. जिला शासक रचना भगत ने बताया कि मुक्ता के परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए जिला प्रशासन की ओर से उसकी मदद की गई. मुक्ता को चलने फिरने में तकलीफ है. इसलिए उसे आज एक तीन चक्कों वाली स्कूटी दी गयी है.
दो सौ विकलांगों की सहायता की
विकलांगता के कड़वे अनुभव के बाद उसने दूसरे विकलांगों की मदद करने की ठान ली. इसके लिए उसने एक स्वयंसेवी संगठन गठन किया. इसको चलाने में आर्थिक तंगी सामने आने लगी. इस संकट से बचने के लिए उसने लॉटरी बेचने का धंधा शुरू कर दिया. उसका भाग्य इतना अच्छा निकला कि उसकी दो-दो बार लॉटरी लग गयी जिससें अच्छी रकम उसने हासिल की. इस पैसे से उसने डुवार्स के 200 विकलांगों की सहायता की. उसने इसी पैसे से कंप्यूटर भी खरीदे व चाय बागान इलाके के 300 पिछड़े पड़े छात्र-छात्राओं को कंप्यूटर प्रशिक्षण दिलवाया. उसके पहल पर ही जिला शासक के सहयोग से बानरहाट चाय बागान इलाके के 250 विकलांगों को सहायक सामग्री प्रदान की गयी. बांदापानी चाय बागान में भी कंप्यूटर प्रशिक्षण केंद्र खोले गए. इस संबंध में बासाम सोनार ने बताया की उसने विकलांगों की तकलीफ को खुद अनुभव किया है. समाज के लोग उन्हे सम्मान नहीं देना चाहते हैं. उसने बताया कि वह सभी विकलांगों को अपने पैर पर खड़ा करना चाहता है.