गोरखालैंड के लिए संयुक्त आंदोलन की तैयारी शुरू
सिलीगुड़ी : लोकसभा चुनाव संपन्न होने के साथ ही दाजिर्लिंग पहाड़ पर एक बार फिर से गोरखालैंड आंदोलन की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है, लेकिन इस बार इस आंदोलन के कुछ अलग और संयुक्त रूप से होने की संभावना जताई जा रही है. कल रविवार को दाजिर्लिंग में क्रामकपा नेता आर बी राई के साथ गोजमुमो प्रमुख विमल गुरूंग की हुयी मुलाकात के बाद कुछ इसी तरह के कयास लगाए जा रहे हैं और पहाड़ पर इस मुलाकात को लेकर अटकलों का बाजार गरम है.
बिमल गुरूंग ने अस्वस्थ आर बी राई से मुलाकात की थी. तब उन्होंने कहा था कि वह सिर्फ श्री राई का हाल चाल जानने आए थे. उन्होंने इस मुलाकात से किसी प्रकार राजनीति मानने से मना कर दिया था. लेकिन क्रामकपा सूत्रों का कहना है कि श्री गुरूंग भले ही इसे सामान्य मुलाकात बता रहे हों, लेकिन इस मुलाकात के दौरान दोनों नेताओं के बीच पहाड़ पर वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य के साथ ही गोरखालैंड आंदोलन को लेकर भी बातचीत हुयी. पहाड़ के राजनैनिक विश्लेषकों का भी कहना है कि विमल गुरूंग और आर बी राई के बीच हुयी मुलाकात कोई आम मुलाकात नहीं हो सकती.
क्योंकि विमल गुरूंग हमेशा से ही अपने राजनैतिक विरोधियों के सफाए के लिए जाने जाते हैं. चाहे वह गोरामुमा नेता सुवास घीसिंग ही क्यों ना हों.श्री राई भी विमल गुरूंग के घोर राजनैतिक विरोधी ही रहे हैं. अभी हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनाव में दाजिर्लिंग संसदीय सीट से श्री राई ने निर्दलीय उम्मीदवार महेंद्र पी लामा का समर्थन किया है. जाहिर तौर पर दोनों के बीच इस मुद्दे को लेकर काफी दूरी रही. ऐसे में अचानक दोनों नताओं के बीच हुयी मुलाकात के मायने तो निकलते ही हैं.
राजनैतिक विश्षलेकों का कहना है कि 16 मई को लोकसभा चुनाव परिणाम सामने आने के बाद पहाड़ पर राजनैतिक समीकरण में काफी कुछ बदलाव आने की संभावना है. यहां से जीत चाहे जिस किसी की भी क्यों ना हो. हांलाकि यहां मुकाबला गोजमुमो समर्थित भाजपा उम्मीदवार एस एस अहलुवालिया और तृणमूल कांग्रेस के बाईचुंग भुटिया के बीच है. कांग्रेस के सुजय घटक,माकपा के सूरज पाठक या फिर निर्दलीय महेंद्र पी लामा अगर कुछ कमाल दिखा दें तो वह चमत्कार होने जैसा ही होगा.
विश्लेषकों का आगे कहना है कि पहाड़ पर पिछले 7 से 8 महीनों में तृणमूल कांग्रेस का काफी उत्थान हुआ है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्वयं भी कई बार दाजिर्लिंग आयी हैं और वह जब भी आयीं विमल गुरूंग को कमजोर कर गयीं. लेप्चा,तामंग आदि जाति के लिए कई योजनाओं की घोषणा की गयी,जिससे इस जाति के लोग विमल गुरूंग से अलग होते गए और गोजमुमो की शक्ति कम होती गयी. ऐसी स्थिति में श्री गुरूंग अपनी शक्ति को एक बार फिर से सहेजने की कोशिश में लग गए हैं.उनके वर्तमान कदम को इसी रूप में देखा जा रहा है.
विश्षलेकों का आगे कहना है कि यदि दाजिर्लिंग लोकसभा सीट से विमल गुरूंग भाजपा उम्मीदवार को जीत दिलाने में कामयाब हुए तब तो वह काफी राहत की स्थिति में होंगे. लेकिन यदि तृणमूल उम्मीदवार जीत गया तो एक तरह से श्री गुरूंग के राजनैतिक कैरियर पर ही विराम लग जायेगा. वह कई तरह की परेशानियों में घिर सकते हैं. उनके उपर गोरखालैंड आंदोलन के दौरान दर्जनों एफआईआर दर्ज हैं. इनमें अभागोली नेता मदन तामंग की हत्या का मामला भी शामिल है.
चुनाव परिणाम के बाद यदि एक पर एक ये मामले खुलने लगें तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए. समझा जा रहा है कि श्री गुरूंग चुनाव परिणाम के बाद एक संयुक्त गोरखालैंड आंदोलन की तैयारी में लग गए हैं. क्योंकि उनके पास अब इस आंदोलन के सिवा कोई चारा नहीं है. राज्य सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ उनकी दूरी इतनी बढ़ गयी है कि इसमें इसमें सुधार के आसार कम ही हैं. वह आने वाले दिनों में पहाड़ पर गोरखालैंड समर्थक अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं से भी मिल सकते हैं.
इस बीच, गोजमुमो के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि श्री राई भले ही अलग पार्टी के हैं लेकिन उनका मकसद भी अलग गोर्खालैंड राज्य हासिल करना ही है. ऐसे में यदि वह गोर्खालैंड के लिए गठित होने वाले किसी संयुक्त मंच के साथ जुड़ते हैं तो इसमें खराबी कहां है. इससे पहले भी जब यहां ज्वाइंट एक्शन कमेटी का गठन हुआ था तो वह साथ ही थे.