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पांच मन दूध से धोया जाता है देवी का स्थान

मालदा. प्राचीन रीति के मुताबिक आज भी मालदा के राजबाड़ी व प्रचीन संभ्रांत परिवारों की परंपरागत दुर्गा पूजाओं में कबूतर, बकरे की बलि चढ़ाने और कमल के पत्ते पर खीर का प्रसाद देने की प्रथा है. कहीं प्रचीन नियम के तहत बांग्लादेश से मिठाइयां लाकर देवी को अर्पित की जाती हैं, तो कहीं घर की […]

मालदा. प्राचीन रीति के मुताबिक आज भी मालदा के राजबाड़ी व प्रचीन संभ्रांत परिवारों की परंपरागत दुर्गा पूजाओं में कबूतर, बकरे की बलि चढ़ाने और कमल के पत्ते पर खीर का प्रसाद देने की प्रथा है. कहीं प्रचीन नियम के तहत बांग्लादेश से मिठाइयां लाकर देवी को अर्पित की जाती हैं, तो कहीं घर की महिलाएं ही नारियल का लड्डू, मालपुआ तैयार कर देवी दुर्गा को भोग लगाती है.

ओल्ड मालदा के साहापुर इलाके में सुकुल परिवार की दुर्गापूजा में बकरे व कबूतरों की बलि चढ़ाई जाती है. बलि का मांस भक्तों में बांटने का पुराना नियम प्रचलित है. सुकुल परिवार के एक सदस्य श्यामल सुकुल ने बताया कि देवी दुर्गा की यहां तांत्रिक मत से पूजा की जाती है. पहले भैंस के पाड़ा की बलि का प्रचलन था, लेकिन अब यहां बकरी व कबूतरों की बलि दी जाती है. देवी प्रतिमा को 1600 तोले सोने-चांदी के जेवरात से सजाया जाता है.
हबीबपुर ब्लॉक के मिश्रबाड़ी में बकरे का मांस दुर्गा पूजा में भोग के रूप में दिया जाता है. वहीं तालुकदार व राय परिवार की दुर्गा पूजा में कमल के पत्ते में खीर, मिठाई, चावल व सब्जी का भोग लगाया गया. इंगलिशबाजार शहर के दे परिवार में सात तरह की सब्जी, कुम्हड़े की सब्जी, घी की पूरी का देवी दुर्गा को भोग लगाया जाता था. हबीबपुरके कानतुरका गांव में राय बाड़ी में दुर्गा पूजा में घर की महिलाएं लड्डू, मालपुआ बनाकर भोग लगाती हैं. हबीबपुर के तिलासन गांव के रायबाड़ी की दुर्गा पूजा में देवी मां को भोग लगाने के पहले लाइसेंसी बंदूक से पांच राउंड हवाई फायरिंग की जाती है. रायबाड़ी के दो सौ वर्ष पुरानी इस पूजा का यह विशेष महत्व है. यहां शिव, गौड़ निताई, राधाकृष्ण व महावीर की पूजा करने के बाद ही देवी दुर्गा की पूजा शुरू की जाती है.

इंगलिशबाजार शहर के दुर्गाबाड़ी इलाके के आदि कंसबनिक संप्रदाय के की पूजा में पूरी एवं संदेश भोग लगाने की प्रथा है. शहर के पुड़ाटूली इलाके के सेन परिवार की दुर्गा पूजा में गाय का दूध, केला, साबू दाना एवं खिंचड़ी अन्न भोग के तौर पर दिया जाता है. सेनबाड़ी की पूजा में षष्ठी में पांच मन दूध से देवी का स्थान धोने का प्रचलन है. बांध रोड इलाके में कुंडूबाड़ी की पूजा में बांग्लादेश से मिठाइयां लाकर चढ़ाया जाता है. माना जाता है कि 115 वर्ष की इस पूजा की शुरुआत बांग्लादेश के कंसर्ट शहर में है. 1959 में कुंडू परिवार के वरिष्ठ सदस्य मालदा आकर यह पूजा शुरू की. लेकिन बांग्लादेश के लालमोहन व रसगुल्ला देवी दुर्गा को भोग के रूप में निवेदन किया जाता है. कुंडू परिवार के परिवार के कुछ लोग पूजा के समय पासपोर्ट व वीसा के जरिए बांग्लादेश से मालदा में पहुंचकर परिवार की पूजा में शामिल हुए.

ओल्ड मालदा ब्लाक के बाचामारी कालोनी के सेनबाड़ी की दुर्गा पूजा करीब तीन सौ वर्ष पुरानी है. इस पूजा में तांबे की थाली में पान, सुपारी व बकरे का मांस का भोग लगाया जाता है. सेन परिवार की संधिपूजा में केवल काले रंग के बकरे की बलि चढ़ाई जाती है. चांचल के राजबाड़ी की दुर्गा पूजा में खिचड़ी व मिक्स सब्जी से देवी को भोग लगाया जाता है.

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