ओल्ड मालदा के साहापुर इलाके में सुकुल परिवार की दुर्गापूजा में बकरे व कबूतरों की बलि चढ़ाई जाती है. बलि का मांस भक्तों में बांटने का पुराना नियम प्रचलित है. सुकुल परिवार के एक सदस्य श्यामल सुकुल ने बताया कि देवी दुर्गा की यहां तांत्रिक मत से पूजा की जाती है. पहले भैंस के पाड़ा की बलि का प्रचलन था, लेकिन अब यहां बकरी व कबूतरों की बलि दी जाती है. देवी प्रतिमा को 1600 तोले सोने-चांदी के जेवरात से सजाया जाता है.
इंगलिशबाजार शहर के दुर्गाबाड़ी इलाके के आदि कंसबनिक संप्रदाय के की पूजा में पूरी एवं संदेश भोग लगाने की प्रथा है. शहर के पुड़ाटूली इलाके के सेन परिवार की दुर्गा पूजा में गाय का दूध, केला, साबू दाना एवं खिंचड़ी अन्न भोग के तौर पर दिया जाता है. सेनबाड़ी की पूजा में षष्ठी में पांच मन दूध से देवी का स्थान धोने का प्रचलन है. बांध रोड इलाके में कुंडूबाड़ी की पूजा में बांग्लादेश से मिठाइयां लाकर चढ़ाया जाता है. माना जाता है कि 115 वर्ष की इस पूजा की शुरुआत बांग्लादेश के कंसर्ट शहर में है. 1959 में कुंडू परिवार के वरिष्ठ सदस्य मालदा आकर यह पूजा शुरू की. लेकिन बांग्लादेश के लालमोहन व रसगुल्ला देवी दुर्गा को भोग के रूप में निवेदन किया जाता है. कुंडू परिवार के परिवार के कुछ लोग पूजा के समय पासपोर्ट व वीसा के जरिए बांग्लादेश से मालदा में पहुंचकर परिवार की पूजा में शामिल हुए.
ओल्ड मालदा ब्लाक के बाचामारी कालोनी के सेनबाड़ी की दुर्गा पूजा करीब तीन सौ वर्ष पुरानी है. इस पूजा में तांबे की थाली में पान, सुपारी व बकरे का मांस का भोग लगाया जाता है. सेन परिवार की संधिपूजा में केवल काले रंग के बकरे की बलि चढ़ाई जाती है. चांचल के राजबाड़ी की दुर्गा पूजा में खिचड़ी व मिक्स सब्जी से देवी को भोग लगाया जाता है.