पहाड़ के करीब 80 हजार चाय श्रमिक बेरोजगार हो गये हैं. पहाड़ के साथ देश की अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ने की संभावना है. यहां बता दें कि दार्जिलिंग चाय का एक बड़ा बाजार विदेशों में हैं. दार्जिलिंग चाय विदेशी मुद्रा अर्जन का एक प्रमुख माध्यम है. जबकि इस बार फर्स्ट फ्लश और सेकेंड फ्लश दार्जिलिंग चाय का उत्पादन नहीं हो सका है.
चाय बागानों में 75 दिन काम नहीं होने से थर्ड फ्लश चाय उत्पादन पर भी संशय है. इस वर्ष दार्जिलिंग चाय का उत्पादन रत्ती भर भी नहीं हुआ है. इससे इस वर्ष दार्जिलिंग चाय का निर्यात नामुमकिन जैसा है. दार्जिलिंग चाय उद्योग की स्थिति देखकर विदेशों में इसकी मांग गिरने की भी संभावना जातायी जा रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी बाजार में दार्जिलिंग चाय नहीं मिलने पर दूसरे देश चाय बाजार पर कब्जा कर लेंगे. जिसका दार्जिलिंग चाय उद्योग पर गहरा असर पड़ेगा. विदेशों में दार्जिलिंग चाय से देश की पहचान भी बनती है.
इसके अतिरिक्त दार्जिलिंग चाय निर्यात कर विदेशी मुद्रा अर्जित होती है. दार्जिलिंग चाय उद्योग पर गहरा रहे संकट का एक व्यापक असर देश की अर्थ व्यवस्था पर पड़ेगा. फिर भी केंद्र सरकार इस समस्या समाधान के लिए पहल नहीं कर रही है. इस समस्या को लेकर चाय श्रमिक संगठनों के ज्वाइंट फोरम ने आवाज उठायी है. मंगलवार को सिलीगुड़ी में एक बैठक की गयी. बैठक के बाद ज्वाइंट फोरम के संयोजक जिआउल आलम ने बताया कि दार्जिलिंग चाय उद्योग को फिर से पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र सरकार को एक आर्थिक पैकेज देने की आवश्यकता है. अलग राज्य की समस्या पर राज्य सरकार और आंदोलनकारियों के बीच विचार-विमर्श का दौर शुरू हो चुका है. अब दार्जिलिंग चाय बागानों के मालिकों व श्रमिकों को भी आगे आना चाहिए.