चमकदार कमरे, लिफ्ट की व्यवस्था के साथ भवन के अंदर नियम- कानून बहुत बढ़ गया है, लेकिन स्वास्थ्य परिसेवा का स्तर पहले जैसा ही है. सबसे बड़ी बात है कि पुरानी बिल्डिंग में मौजूद इमरजेंसी से किसी मरीज को पीछे से दूर के किसी सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में ले जाने की व्यवस्था नहीं है. दिन में सबकुछ सामान्य लगने के बावजूद रात को सुपर स्पेशलिटी अस्पताल ले जाने के मामले में मरीज के परिवार आतंकित हो जाते हैं. क्योंकि दो सौ मीटर की इस सड़क में कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है. साथ ही मरीज की भरती के बाद सुपर स्पेशलिटी अस्पताल परिसर में रात गुजारने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है.
यहां तक कि परिजनों के लिए बैठने तक की कोई व्यवस्था नहीं है. हमेशा मवेशी अस्पताल परिसर में घुस जाते हैं. न ही कचरा फेंकने के लिए कोई डस्टबिन है. मरीज के परिजनों सागरिका राय व मिलन मंडल ने बताया कि डस्टबिन नहीं रखे जाने से खून से सना बैंडेज व अन्य कचरा अस्पताल के एक कोने में ही जमा किया जा रहा है. इस वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है. इस वजह से प्राय ही कुत्ते मंडराते जा रहे थे. जिला मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी सुकुमार दे ने बताया कि हाल ही में यह अस्पताल बना है. बाकी व्यवस्था करने में वक्त लगेगा. इसबीच बालूरघाट सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के लिए 50 लाख रुपये आवंटित किया गया है.
इस राशि से वेटिंग शेड, डस्टबिन, सौंदर्यीकरण के लिए पार्क व आसपास के इलाके को साफ-सुथरा बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की गयी हैं. हाउसिंग कांस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट से चारमंजिला भवन बनाकर हस्तांतरित किया जायेगा. इस भवन में मरीजों के परिजन बहुत ही कम रुपयों में रात गुजार सकेंगे. साथ ही इनके लिए भोजन की व्यवस्था भी उपलब्ध होगी.