लेकिन जिस पैमाने में समतल से पहाड़ पर खाद्य सामग्रियों की आवक होती है, वह पर्याप्त नहीं है. राजनीति विश्लेषकों की मानें, तो पहाड़ पर आंदोलन का दौर जल्द नहीं थमता है, तो पहाड़ पर खाद्य संकट विकराल रूप धारण करेगा. इसकी एक वजह और यह है कि एक तरफ जहां अलग राज्य गोरखालैंड के लिए पहाड़ पर लगातार हिंसक आंदोलन हो रहा है वहीं, गोरखालैंड के विरोध में समतल क्षेत्र में भी आवाज बुलंद होने लगा है. गोरखालैंड विरोधी आंदोलनकारी अब समतल खासकर सिलीगुड़ी से पहाड़ पर जानेवाले खाद्य सामग्री पर भी जबरन रोक लगाने के मूड में हैं.
पहाड़-समतल की राजनीति पर गहरी पकड़ रखनेवाले प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक उदय दुबे अपने वर्षों के तजुर्बे के आधार पर कहते हैं कि पहाड़ समस्या नहीं निपटने पर इसका खामियाजा केंद्र और राज्य सरकार को ही भुगतना पड़ेगा. क्योंकि अगर पहाड़ पर खाद्य सामग्रियों को जाने से जबरन रोका गया, तो यह मानवाधिकार का उल्लंघन होगा. इसके लिए जिम्मेवार केंद्र और राज्य सरकार ही होगी.
दार्जिलिंग में रहनेवाली एक गृिहणी आराधना देवी अग्रवाल ने बताया कि लगातार गोरखालैंड आंदोलन की वजह से किसी के घरों में भी अन्न का एक दाना तक नहीं बचा है. किसी के पास भी खाने-पीने का कोई सामान नहीं है. खाद्य सामग्री और दवाइयों की आपूर्ति न होने से खासकर बच्चों, वृद्धों और मरीजों को समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. बच्चों के लिए दूध आदि की बड़ी समस्या हो गयी है. श्रीमती अग्रवाल का कहना है कि बीच-बीच में आंदोलनकारियों की ओर से खाद्य सामग्रियों की आपूर्ति की जाती है. लेकिन यह पहाड़ के समस्त लोगों की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त नहीं है. उन्होंने बताया कि अब तो हमारी यानी पूरे पहाड़वासियों की जिंदगी केवल आलू पर ही टिकी है.