इस दौरान मीडिया को संबोधित करते हुए कृष्णा प्रसाद शर्मा ने कहा कि दार्जीलिंग को सिक्किम में विलय करने की मांग वर्षों पुरानी है. दार्जिलिंग पार्वतीय क्षेत्र सिक्किम का ही हिस्सा है, इसका इतिहास गवाह है. ऐतिहासिक समझौते के तहत 1841 साल तक दार्जीलिंग सिक्किम को लगान देता था. बाद में फिरंगियों ने दार्जीलिंग को सिक्किम से अलग कर दिया. तभी से दार्जीलिंग बंगाल का हिस्सा हो गया है. लेकिन बंगाल सरकार ने कभी भी दार्जीलिंग पर्वतीय क्षेत्र का चहुमुखी विकास नहीं किया, बल्कि उसे राजनैतिक अखाड़ा बना कर रख दिया गया है. श्री शर्मा का कहना है कि अगल गोरखालैंड राज्य बनाने की आवाज को दबाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हिटलरशाही पर उतर आयी हैं, जो सही नहीं है.
जगत चौहान ने कहा कि दार्जीलिंग के विकास को लेकर पूरे जिले को सिक्किम में वापस विलय करने के लिए गोरखा राष्ट्रीय कांग्रेस का एक प्रतिनिधि दल ने हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री के अलावा अन्य कई मंत्रियों से भी मुलाकात की थी. उन लोगों ने इस मांग को जायज ठहराया था. श्री चौहान ने केंद्र व राज्य (बंगाल-सिक्किम) सरकारों को चेतावनी दी है कि हम लोकतांत्रिक तरीके से दार्जीलिंग का सिक्किम में विलय करवायेंगे. अगर बातचीत से नहीं बनी बात तो गांधीवादी तरीके से लड़ेंगे.