कोलकाता.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े एक अनुभवी और स्पष्टवादी नेता शमिक भट्टाचार्य को पश्चिम बंगाल इकाई का नया अध्यक्ष नियुक्त किया है. यह नियुक्ति 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले प्रदेश इकाई में नयी ऊर्जा का संचार करने और उसे एक मजबूत चुनावी शक्ति बनाने की भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है. 61 वर्षीय भट्टाचार्य की बंगाल भाजपा प्रमुख के रूप में नियुक्ति को दशकों की उनकी मौन प्रतिबद्धता, वैचारिक निष्ठा और व्यक्तिगत अनुशासन का परिणाम माना जा रहा है. सियासी सफर और अनुभव : अविवाहित शमिक भट्टाचार्य का राजनीतिक सफर 1970 के दशक के मध्य में शुरू हुआ, जब एक स्कूली छात्र के रूप में उन्होंने हावड़ा के मंदिरतला क्षेत्र में आरएसएस की शाखाओं में भाग लेना शुरू किया. संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) में शामिल हो गये, जिसने संघ परिवार के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में उनके राजनीतिक जीवन का आगाज किया. भट्टाचार्य पश्चिम बंगाल में भाजपा से तब से जुड़े हैं, जब पार्टी राज्य में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रही थी. 2018 तक प्रदेश में भाजपा की संगठनात्मक उपस्थिति या चुनावी प्रासंगिकता बहुत कम थी. इसके बावजूद भट्टाचार्य पार्टी के प्रति वफादार रहे. धीरे-धीरे 1990 के दशक में तपन सिकदर के कार्यकाल में एबीवीपी से भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) तक उनका कद बढ़ा. अगले तीन दशकों में उन्होंने अध्यक्ष पद को छोड़कर, प्रदेश महासचिव, उपाध्यक्ष और मुख्य प्रवक्ता सहित लगभग हर प्रमुख संगठनात्मक पद संभाला. भाजयुमो में रहते हुए उनकी दोस्ती राहुल सिन्हा से हुई, जो बाद में 2009 में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बने. तथागत रॉय की अध्यक्षता में उन्हें प्रदेश महासचिव नियुक्त किए जाने पर भट्टाचार्य का महत्व और बढ़ा.चुनावी यात्रा और कद में वृद्धि
शमिक भट्टाचार्य का शुरुआती चुनावी सफर मिला-जुला रहा. 2006 में वह श्यामपुकुर विधानसभा सीट और 2014 में बशीरहाट लोकसभा सीट पर चुनाव हार गये. हालांकि, 2014 में ही उन्होंने बशीरहाट दक्षिण विधानसभा उपचुनाव जीतकर सभी को चौंका दिया और क्षेत्र से भाजपा के पहले विधायक चुने गये. भाजपा, जिसका 1999 से 2001 के बीच बंगाल विधानसभा में केवल एक विधायक था (टीएमसी के साथ गठबंधन के कारण उपचुनाव में मिली जीत के बदौलत), उसने भट्टाचार्य के निर्वाचन को एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा. हालांकि, भट्टाचार्य 2019 में लोकसभा चुनाव और 2021 में विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज नहीं कर सके. इसके बावजूद, 2016 में अपनी सीट गंवाने के बाद भी भाजपा में शमिक भट्टाचार्य का कद बना रहा. 2021 के विधानसभा चुनावों के बाद उनकी विश्वसनीयता और बढ़ गयी, जब ममता बनर्जी की टीएमसी से हार के बावजूद भाजपा बंगाल में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरी.शुभेंदु से तालमेल और भविष्य की उम्मीदें : दिलचस्प बात यह है कि शुभेंदु अधिकारी के साथ शमिक भट्टाचार्य के मधुर संबंधों को भी उनकी पदोन्नति का एक कारण माना जा रहा है. केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिए पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता के बीच बेहतर तालमेल बना रहे. शमिक भट्टाचार्य की साफ छवि, संघ की पृष्ठभूमि और संचार कौशल के कारण भाजपा को बंगाल में पासा पलटने की उम्मीद है. उनकी नियुक्ति को प्रदेश इकाई में ध्यान, सामंजस्य और जोश वापस लाने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है, जिसने कभी बंगाल पर शासन करने का सपना देखा था.
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