हाइकोर्ट की टिप्पणी कोलकाता. कलकत्ता हाइकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि किसी को झूठे आपराधिक मामले में फंसाने की धमकी देना को तब तक आत्महत्या के लिए उकसाना माना नहीं जा सकता, जब तक कि पीड़ित को आत्महत्या के लिए उकसाने वाला कोई स्पष्ट कार्य न किया जाये. हाइकोर्ट के न्यायाधीश अजय कुमार मुखर्जी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसी कोई सामग्री नहीं है, जिससे पता चले कि पीड़ित के पास आत्महत्या करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. इसके अलावा किसी को झूठे आपराधिक मामले में फंसाने की धमकी देना, पीड़ित द्वारा आत्महत्या के लिए उकसाने का दर्जा नहीं देता. शिकायत में आरोप लगाया गया है कि पीड़ित/मृतक ने कई मौकों पर याचिकाकर्ताओं को उनकी अवैध गतिविधियों को करने से रोकने की कोशिश की, लेकिन मृतक को समय के साथ पता चला कि कई पुलिस अधिकारी भी ऐसी अवैध गतिविधियों और याचिकाकर्ताओं के अवैध कारोबार में शामिल हैं, जिन्होंने पीड़ित को झूठे मामलों में फंसाने की धमकी दी. पीड़ित कई बार पुलिस स्टेशन गया, लेकिन उसे कोई राहत नहीं मिली. याचिकाकर्ताओं ने किराये के मकान को असामाजिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया. शिकायतकर्ता ने उनसे मकान खाली करने का अनुरोध किया, तो उन्होंने उन पर शारीरिक और मानसिक अत्याचार करना शुरू कर दिया, जिसके कारण पीड़ित ने आत्महत्या कर ली. उन्होंने तर्क दिया कि जांच के दौरान अभियोजन पक्ष ने मकान में कथित अवैध गतिविधियों के बारे में कोई दस्तावेज पेश नहीं किया और न ही याचिकाकर्ताओं को उनके किराये के मकान से बेदखल करने के लिए कोई कार्यवाही शुरू की गयी. दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत की गयीं प्रस्तुतियों पर विचार करने पर अदालत ने पाया कि वर्तमान मामले में ऐसा कोई सकारात्मक कार्य नहीं था. अदालत ने कार्यवाही को रद्द कर दिया.
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