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सीईओ के खिलाफ सीएम के बयान के वक्त मुख्य सचिव भी थे मौजूद

आयोग का मानना है कि मुख्यमंत्री के इस तरह के बयान के दौरान मुख्य सचिव की बैठक में मौजूदगी अनुचित थी और उन्हें तत्काल उस बैठक से बाहर चले जाना चाहिए था. चुनाव आयोग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, आयोग ने इस पर गंभीर आपत्ति जतायी है और इसे सेवा शिष्टाचार के विरुद्ध बताया है.

कोलकाता.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी (सीईओ) मनोज अग्रवाल को लेकर दिये गये विवादित बयान का मुद्दा गहराता जा रहा है. मुख्यमंत्री जब यह बयान दे रही थीं, उस समय राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत भी बैठक में मौजूद थे, जिसे लेकर निर्वाचन आयोग ने असंतोष जताया है. आयोग का मानना है कि मुख्यमंत्री के इस तरह के बयान के दौरान मुख्य सचिव की बैठक में मौजूदगी अनुचित थी और उन्हें तत्काल उस बैठक से बाहर चले जाना चाहिए था. चुनाव आयोग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, आयोग ने इस पर गंभीर आपत्ति जतायी है और इसे सेवा शिष्टाचार के विरुद्ध बताया है.

नेता प्रतिपक्ष ने सीएम के खिलाफ दर्ज करायी है शिकायत : इस घटना को लेकर विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने शुक्रवार को मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय में एक औपचारिक शिकायत दर्ज करायी. उन्होंने अपने पत्र में मुख्यमंत्री के बयान को लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया और कहा मुख्यमंत्री सीधे तौर पर आयोग को धमकी दे रही हैं. गौरतलब है कि इससे पहले मुख्यमंत्री ने राज्य सचिवालय में संवाददाता सम्मेलन के दौरान सीईओ मनोज कुमार अग्रवाल पर आरोप लगाया था कि सीईओ भ्रष्टाचार में लिप्त हैं और अति सक्रियता दिखा रहे हैं.

सीईओ कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि इस स्तर के अधिकारी के खिलाफ बिना प्रमाण सार्वजनिक रूप से भ्रष्टाचार का आरोप लगाना उचित नहीं है. लोकपाल कानून के तहत किसी सरकारी अधिकारी पर भ्रष्टाचार का आरोप तभी लगाया जा सकता है, जब उसके समर्थन में लिखित साक्ष्य मौजूद हों. यदि आरोप झूठा पाया गया, तो आरोप लगाने वाले को जेल और जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है. अधिकारी के मुताबिक, मुख्य सचिव को इस प्रावधान की जानकारी होनी चाहिए थी और ऐसे में उन्हें बैठक छोड़ देनी चाहिए थी.

इस बीच, शुभेंदु अधिकारी द्वारा सीईओ को दी गयी शिकायत की प्रति चुनाव आयोग को भेज दी गयी है. सीईओ कार्यालय ने स्पष्ट किया कि नियमों के तहत जो भी शिकायत प्राप्त होती है, उसे आयोग के दिल्ली कार्यालय को अग्रेषित किया जाता है और इसी प्रक्रिया के तहत शुभेंदु अधिकारी की चिट्ठी भी भेजी गयी है.

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