पीठ ने पूछा- प्रकटीकरण का उद्देश्य और याचिका की वैधता क्या है?
संवाददाता, कोलकाताउच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा से उनकी उस याचिका पर सवाल किये, जिसमें भारत में वैकल्पिक निवेश कोष (एआइएफ), विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआइ) और उनके मध्यस्थों के अंतिम लाभार्थियों तथा पोर्टफोलियो के सार्वजनिक खुलासे को अनिवार्य करने की मांग की गयी थी. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर करके संदेह के आधार पर जांच नहीं की जा सकती. पीठ ने महुआ मोइत्रा से पूछा, “आप सार्वजनिक खुलासे की मांग कर रही हैं, लेकिन उस प्रकटीकरण का उद्देश्य क्या है? आप इस जानकारी का क्या करेंगी? क्या यह याचिका सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत है? अनुच्छेद 32 के तहत ऐसी याचिका नहीं दायर की जा सकती जो सूचना के अधिकार जैसी प्रकृति की हो.”शीर्ष अदालत ने महुआ मोइत्रा की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण से याचिका में संशोधन करने और मामले में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के जवाब को चुनौती देने को कहा. इससे पहले भूषण ने दलील दी कि एआइएफ और एफपीआइ के माध्यम से एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया है, लेकिन न जनता और न ही सेबी को पता है कि आखिरकार इन निवेशों को कौन नियंत्रित करता है. उन्होंने आरोप लगाया कि कई फर्जी कंपनियों का इस्तेमाल स्वामित्व को छिपाने के लिए किया जाता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता केवल इसलिए जानकारी चाहते हैं, ताकि कुछ पता लगाया जा सके और याचिका दायर की जा सके.
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