ओबीसी प्रमाण पत्र मामला. कोर्ट में सरकार ने भूल स्वीकारी, दिया भरोसा
वर्चुअल माध्यम से सुनवाई के दौरान उपस्थित रहे मुख्य सचिव
संवाददाता, कोलकाताओबीसी प्रमाण पत्रों के मामले में कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश का पालन करने में विफल रहने की बात स्वीकारते हुए राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत ने बुधवार को न्ययाधीश के सामने गलती मान ली. उन्होंने आश्वासन दिया कि भविष्य में अब ऐसी भूल नहीं होगी. हाइकोर्ट ने इस मामले में वर्ष 2010 के बाद यहां जारी किये गये ओबीसी प्रमाण पत्रोंं को रद्द करने का आदेश दिया था. कहा था कि इन प्रमाण पत्रों का नये सिरे से कोई उपयोग नहीं कर सकता. लेकिन आरोप है कि हाइकोर्ट के आदेशों का पालन नहीं हुआ और इसे लेकर हाइकोर्ट ने राज्य के मुख्य सचिव को उपस्थित होकर जवाब देने को कहा था. बुधवार को मुख्य सचिव मनोज पंत वर्चुअल माध्यम से सुनवाई में उपस्थित हुए और इस मामले में गलती स्वीकार की. उन्होंने अदालत को आश्वस्त किया कि भविष्य में अब ऐसी गलती नहीं होगी. बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य सचिव को अदालत के तीखे सवालों का सामना करना पड़ा. अदालत ने पूछा कि जब इस मामले में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इन ओबीसी प्रमाण पत्रों का नये सिरे से कहीं भी प्रयोग नहीं किया जा सकता. तो फिर सरकारी नियुक्तियों में इस ओबीसी प्रमाण पत्र का उपयोग कैसे हुआ? अदालत के कड़े रुख के बाद मुख्य सचिव ने गलती स्वीकार की और भरोसा दिलाया कि भविष्य में ऐसा दोबारा नहीं होगा. हाइकोर्ट में सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल को-ऑपरेटिव सोसाइटी की भर्तियों को लेकर भी सवाल उठे. आरोप है कि सरकार ने ओबीसी प्रमाणपत्रों के संबंध में अदालत के निर्देशों की अनदेखी कर भर्ती प्रक्रिया के लिए विज्ञापन जारी कर दिया और चयन सूची भी तैयार कर ली. उल्लेखनीय है कि हाइकोर्ट ने पहले ही आदेश दिया था कि 2010 के बाद जारी किये गये ओबीसी प्रमाणपत्र अमान्य होंगे और इन्हें सरकारी नौकरियों में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इसके बावजूद राज्य सरकार पर आरोप लगा कि वह इन प्रमाणपत्रों के आधार पर नियुक्ति प्रक्रिया चला रही है. बुधवार को न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की खंडपीठ ने मुख्य सचिव से पूछा कि हमने अपना आदेश स्पष्ट रूप से दिया था, फिर भी इसे नजरअंदाज कर भर्तियां कैसे जारी रहीं? क्या राज्य सरकार या मुख्य सचिव के पास इस पर कोई नियंत्रण नहीं है? न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने सुनवाई के दौरान कहा कि 2010 से पहले जिन लोगों ने ओबीसी प्रमाणपत्र प्राप्त किया था, उनके लिए किसी तरह की रोक नहीं है. फिर सरकार इसे हाइकोर्ट के आदेश की वजह से रुकी हुई नियुक्ति बता रही है, यह सही नहीं है. उन्होंने मुख्य सचिव से कहा कि आप सबसे बड़े अधिकारी हैं, फिर भी आपके ही अधीनस्थ आपकी बात नहीं मान रहे. हमें आपको अदालत में बुलाना पड़ा, यह अपने आप में निराशाजनक है. अगर आपकी बात नहीं मानी जायेगी, तो फिर किसकी मानी जायेगी? मुख्य सचिव ने अदालत को आश्वस्त किया कि वह इस मामले में पूरी तरह सतर्क रहेंगे. न्यायाधीशों ने मुख्य सचिव से पूछा कि अगर कोई आपके आदेशों को नहीं मानता, तो क्या आप उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करेंगे? कम से कम उन अधिकारियों को बुला कर पूछताछ तो करें कि उन्होंने अदालत के निर्देशों का पालन क्यों नहीं किया?मुख्य सचिव ने अदालत से कहा : जब तक मामला लंबित तब तक ओबीसी प्रमाण पत्रों से नियुक्तियों पर रहेगी रोक
मुख्य सचिव ने अदालत को आश्वासन दिया कि हाइकोर्ट के आदेश के अनुसार अब कोई भी अंतिम निर्णय नहीं लिया जायेगा. जहां भी भर्ती प्रक्रिया चल रही थी, उसे रोक दिया गया है. सरकार की सभी भर्तियों पर रोक लगा दी गयी है और जब तक यह मामला अदालत में लंबित है, तब तक ओबीसी प्रमाण पत्रों के आधार पर कोई नियुक्ति नहीं होगी. अगर कहीं कोई गलती हुई है, तो हम उसे सुधार लेंगे.
क्या है मामला :
22 मई 2024 को हाइकोर्ट ने राज्य में जारी 12 लाख ओबीसी प्रमाण पत्रों को अमान्य घोषित कर दिया था. अदालत ने साफ कहा था कि 2010 के बाद जारी सभी प्रमाण पत्र रद्द माने जायेंगे और इनका इस्तेमाल सरकारी नौकरियों या किसी अन्य सरकारी योजना में नहीं किया जा सकता. राज्य सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनाती दी थी. फिलहाल, यह मामला सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ में लंबित है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है