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नेवले के शिकार व तस्करी पर अंकुश लगाने की तैयारी

कमलकन्नन ने कहा कि यह वन्यजीव प्रवर्तन एजेंसियों को जब्त की गयी वस्तुओं में नेवले के बालों की पहचान करने और अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने में काफी मदद करेगा.

कोलकाता. भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआइ) के वैज्ञानिकों ने भारतीय नेवलों की सभी प्रजातियों के लिए एक व्यापक बाल-आधारित पहचान प्रणाली प्रकाशित की है, जो नेवलों की तस्करी और उनके अवैध शिकार पर अंकुश लगायेगी. यह अध्ययन जेडएसआई के वैज्ञानिक एम कमलकन्नन की संकल्पना है और उन्होंने ही इसका सह-नेतृत्व किया है. उन्होंने बुधवार को कहा कि यह शोध पूरी तरह से बालों की आकृति विज्ञान पर आधारित प्रजाति-स्तरीय पहचान प्रणाली है जो एक महत्वपूर्ण फॉरेंसिक कमी को पूरा करता है. कमलकन्नन ने कहा कि यह वन्यजीव प्रवर्तन एजेंसियों को जब्त की गयी वस्तुओं में नेवले के बालों की पहचान करने और अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने में काफी मदद करेगा. उन्होंने कहा, ‘यह अध्ययन भारत में नेवलों की प्रजातियों की पहचान के लिए एक उपयोगी और किफायती संदर्भ के रूप में भी काम करेगा.’ भारत में नेवलों की छह प्रजातियां छोटा भारतीय नेवला, भारतीय ‘ग्रे’ नेवला, भारतीय भूरा नेवला, सुर्ख नेवला, केकड़ा खाने वाला नेवला और धारीदार गर्दन वाला नेवला पाया जाता हैं. शोध दल ने कहा कि ये छोटे मांसाहारी स्तनधारी जीव कृन्तकों, सांपों, पक्षियों और विभिन्न अकशेरुकी जीवों की आबादी को नियंत्रित कर अहम पारिस्थितिक भूमिका निभाते हैं. उन्होंने बताया कि अपने पारिस्थितिक महत्व के बावजूद इन्हें तस्करी और अवैध शिकार का सामना करना पड़ता है. इनका शिकार मुख्य रूप से उच्च गुणवत्ता वाले पेंट ब्रशों में इस्तेमाल होने वाले उनके बालों की मांग की वजह से हो रहा है. कानूनी संरक्षण को मजबूत करने के लिए नेवलों की सभी छह प्रजातियों को भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के तहत सर्वोच्च संरक्षण श्रेणी अनुसूची-1में रखा गया है. इन उपायों के बावजूद प्रवर्तन एजेंसियों को जब्त की गयी वस्तुओं में नेवले के बालों की पहचान करने में अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. आधुनिक पेंट ब्रश प्रसंस्करण में बालों के रोम आदि को हटा दिया जाता है, जिससे कोई न्यूक्लियर डीएनए नहीं बचता. जेडएसआई की निदेशक धृति बनर्जी ने कहा, ‘रासायनिक प्रसंस्करण और क्षरण के कारण माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए पुनर्प्राप्ति भी अक्सर असफल हो जाती है. ऐसे मामलों में ट्राइको-टैक्सोनॉमी (बालों के आधार पर प्रजातियों की पहचान का विज्ञान), प्रजातियों की पहचान के लिए एक व्यावहारिक, त्वरित और गैर-विनाशकारी विधि है.’ उन्होंने कहा, ‘यह अध्ययन हमारी वन्यजीव फोरेंसिक क्षमताओं को और मजबूत करेगा तथा भारत की मूल जैव विविधता की रक्षा करने में अग्रणी एजेंसियों की सहायता करेगा.’ अनुसंधान में विदेशी सहयोगी एवं कोरिया गणराज्य के पुक्योंग राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के डॉ शांतनु कुंडू ने कहा, ‘सूक्ष्म विश्लेषण और सांख्यिकीय मॉडलिंग का हमारा संयोजन वैज्ञानिक रूप से ठोस आधार प्रदान करता है. ये निष्कर्ष भविष्य में आणविक या डीएनए-आधारित दृष्टिकोणों के पूरक भी हो सकते हैं, जिससे प्रजातियों की पहचान में सटीकता और बढ़ेगी.’ जेडएसआई के प्रवक्ता ने सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि हर साल अनुमानतः एक लाख नेवले मारे जाते हैं, तथा मात्र एक किलोग्राम उपयोगी बाल प्राप्त करने के लिए लगभग 50 जानवरों की जरूरत होती है. ये ब्रश भारत में बेचे जाते हैं और तस्करी कर मध्य पूर्व, अमेरिका और यूरोप के बाजारों में भेजे जाते हैं.

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