कोलकाता. विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता आलोक कुमार ने बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में हुई हिंदुओं की नृशंस हत्या, उपद्रव, आगजनी, हिंसा, लूटपाट और बड़े पैमाने पर पलायन की घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को कहा है कि विरोध प्रदर्शन तो देश भर में होते हैं लेकिन, हिंसा और हिंदुओं पर हमले व्यापक पैमाने पर बंगाल में ही क्यों होते हैं! उन्होंने मुर्शिदाबाद की संपूर्ण घटना की राष्ट्रीय जांच एजेंसी एनआइए से जांच की मांग करते हुए कहा कि मालदा में राहत शिविरों में रहने को मजबूर हिंदू समाज की सहायता के लिए आगे आने वाली संस्थाओं को सेवा से रोकना भी एक अमानवीय कृत्य है. महानगर के अलीपुर स्थित भाषा भवन में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए विहिप अध्यक्ष ने राज्य की परिस्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदुओं पर जगह-जगह हो रहे जिहादियों के हमलों पर मौन साधे राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी यह तो कहती हैं कि ये हमले पूर्व नियोजित थे जिनमें विदेशी बांग्लादेशियों का हाथ है और यह मामला अंतरराष्ट्रीय है किंतु, फिर भी वे घटना की एनआइए से जांच की मांग क्यों नहीं करतीं? हमारा मानना है कि पीड़ित हिंदुओं को न्याय मिलना चाहिए और हमलावर जिहादियों को कठोर दंड. जिनकी संपत्ति लूटी गयी है, जलायी गयी है या खंडित की गयी है उसकी अविलंब भरपाई हो और राज्य में हिंदुओं को सुरक्षा मिले. आलोक कुमार ने यह भी कहा कि किसी ना किसी मुद्दे पर देश भर में विरोध प्रदर्शन तो होते ही रहते हैं किंतु, उन प्रदर्शनों के नाम पर हिंदुओं पर हमले और उनकी नृशंस हत्याएं पिछले कुछ वर्षों में बंगाल में एक चलन सा बन गई है. यह सरकारी उदासीनता व ऐसे अतिवादी और सामाजिक तत्वों को सत्ताधारी दल के प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन के बिना संभव नहीं है. अतः इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि विरोध चाहे किसी से भी हो प्रदर्शकारी हिंदुओं को ही टारगेट क्यों करते हैं? मुर्शिदाबाद से मालदा में निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हिंदू समाज की दुखती रग पर मरहम लगाने या उन्हें सांत्वना देने की बात तो दूर, सरकार द्वारा उन पीड़ित हिंदू बहन, बेटियों, बच्चों, बुजुर्गों व अन्य लोगों की सहायतार्थ जो समाज सेवी संगठन आगे आए थे, उनको भी खाना, पानी, भोजन या अन्य प्रकार की जीवन की जरूरी सुविधा देने का प्रयास कर रहे थे, उस पर भी शासन का कहर टूट पड़ा. कल से उनको भी सहायता करने से शासन ने मना कर दिया गया है. वे कहते हैं कि राहत सामग्री हमें दो. हम सामग्री बाटेंगे. यह किस तरह का व्यवहार है? क्या यह मानवीय जीवन मूल्यों से एक खिलवाड़ नहीं! यदि शासन को खुद ही बांटना होता तो फिर समाज सेवी संस्थाएं को आगे ही क्यों आना पड़ता.
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